उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा। प्रियंका गांधी ने अपनी ओर से पूरा जोर लगाया। संगठन मजबूत करने का भरपूर प्रयास किया ।रैलियां और सभाओं में भारी भीड़ भी जुटी, लेकिन वोट परशेंटेज और खराब रहा।लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे के साथ 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट भी वादे के मुताबिक पार्टी की तरफ से मिला लेकिन महिलाओं का वोट ज्यादा भाजपा को मिला। जिन दलितों और कमजोर और पीड़ित वर्गों की लड़ाई प्रियंका गांधी ने लड़ी वह वोट भी कांग्रेस को नहीं मिला। कारण तलाश करने पर पता चला कि तीन प्रमुख कारण इतनी बुरी हार का रहा। पहला कांग्रेस पार्टी का संगठन में जातिगत और धार्मिक समीकरण की भारी कमी, दूसरा 32 साल के बाद पूरे प्रदेश में पहली बार सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी है, लगभग 80प्रतिशत जिलों में कांग्रेस का संगठन मृतप्राय हो चुका था उन सभी को तत्काल पूरी तरह से जिंदा कर पाना आसान नहीं है, तीसरा यह चुनाव विशेष कर उत्तर प्रदेश का चुनाव दो विचार धारा पर लड़ा गया। एक भाजपा समर्थक और दूसरा भाजपा को जो दल हरा सकता है, के बीच लड़ा गया। मेरी क ई लोगों से बात हुई, सभी ने ये स्वीकार किया कि वे कांग्रेस को वोट देना चाहते हैं, लेकिन वो भाजपा को हरा नहीं पाएगी उसे सपा गठबंधन ही हरा पाएगी क्यों वोट खराब किया जाय। इसी चक्कर में सपा का वोट 11प्रतिशत बढा और सीटें भी बढी और कांग्रेस की घटी। पार्टी की हार -जीत से पार्टी की मेहनत और सक्रियता पर उंगली उठाना सही नहीं है इस बात को समझना होगा कि 32 साल से निष्क्रय संगठन को मात्र चार महीने में लड़ने लायक बना पाना आसान नहीं। 70 जिलों में कांग्रेस को गठबंधन मे सीटें ही लड़ने को नहीं मिली थी। अगर कांग्रेस को लोकसभा चुनाव 2024 में कुछ अच्छा करना है तो इसी संगठन को जातिगत मजबूती देते हुए इसी टेम्पो को और सक्रियता को बनाये रखना होगा और गुटबाजी और एक दूसरे पर दोषारोपण का कठोरता और समझदारी से समाप्त करना होगा। सब कुछ प्रियंका गांधी की मेहनत और सक्रियता से ही कुछ नहीं होगा। संगठन को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी।