Monday, December 23, 2024
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पुण्यतिथि -सचिन देव बर्मन। सफल होगी तेरी आराधना

सफल होगी तेरी अराधना

प्रेम का पुजारी हूं मैं

पूण्य तिथि पर :सचिन देव बर्मन

” काहे को रोये सफल होगी तेरी अराधना
दिया टूटे तो ये है माटी जले तो ये ज्योति बने

एक ऐसे सुर साधक व संगीत का चमकता ध्रुव तारा आकाश में पूर्णिमा के चाँद के साथ एक ही बार चमकता है त्रिपुरा के शाही घराने में चमका वो तारा सचिन देव बर्मन के रूप में सचिन दा का बचपन खेतो में लहलहाते सतरंगी आभा से सुनहले चमकते रंगों के बीच गेहू और धान की बालियों में गुजरता हुआ बढ़ता जा रहा था साथ ही गाँव के हम उम्र बच्चो के साथ धुल और मिटटी में जब भी खेलने जाते तो उनके कानो में गाँव के एक बूढ़े किसान के गाने की आवाज आती और वे खेल में ही उस गीत से अनायास जुड़ जाते | उस बूढ़े बाबा किसान के गाये गीत सचिन दा में रच बस गया था और वो अपने जीवन के बसंत पार करते हुए भी उस गीत को न भूल पाए और वो गीत सचिन दा के साथ ही उनके जीवन का प्रवाह बन गया और उनके अन्दर के संगीत के सात सुरों की लय को जगा दिया | और इसके साथ ही वो इस संगीत के महासागर में आ गये | इन्ही मार्मिक सुरों के छाव में महान संगीतकार सचिन देव बर्मन ने संगीत की दुनिया में कदम रखा | एक अक्तूबर सन 1906 में जन्मे कुमार सचिन देव बर्मन के दादा त्रिपुरा के महाराजा थे उनके पिता एक कुशल चित्रकार ,कहानीकार ,रंग शिल्पी , के साथ शात्रीय संगीत के ख्याति लब्ध संगीतज्ञ थे | शास्त्रीय संगीत की पहली तालीम सचिन दा ने अपने पिता से प्राप्त किया | सचिन दा ने लोक संगीत की विधा को अपने महल में रहने वाले दो मुलाजिमो से हासिल किया जिनके नाम माधव् और अनवर था | बचपन से ही बर्मन दा को बंगाल के मधुर लोक संगीत से गहरा लगाव था जिसकी झलक उनके गाये गीतों में साफ़ नजर आता है |
” ओरे माझी मेरे साजन है उस पार मैं मन मार हूँ इस पार
ओ मेरे माझी अबकी बार ले चल पार
मेरे साजन है उस पार ”
सचिन दा ने इस गीत के माध्यम से उस सुहागन नारी के अन्तर मन की व्यथा को अपने स्वर से ऐसा सहेजा है कि लगता है ये व्यथा स्वंय सचिन दा का हो और वो उसमे डूब गये है | लहरों से जूझते माझी की पुकार ने सचिन दा की आत्मा पर गहरा असर किया |
नतीजा आज भी जब सचिन दा की आवाज आती है तो दिल को छू लेने वाली पुकार की तरह गुजती है |
पिता से शिक्षा प्राप्त करने के बाद सचिन दा ने कलकत्ता में उच्च शिक्षा में दाखिला लिया | सचिन दा के पिता चाहते थे कि दादा वकील बने पर सचिन दादा विदेश में पढ़े और वकील बने | पर सचिन दादा का पूरा मन सुरों के सत– रंगी जाल में फंस चुका था | लिहाजा वो के सी दे के शागिर्द बन गये और इसके साथ ही रेडियो के लिए गीत गाने लगे |
1932 में उनकी मदभरी आवाज को पहली बार रिकार्ड में सुनाई दिया धीरे — धीरे इस आवाज का नशा लोगो के जेहन में बसता गया | सचिन दादा लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत गायक के रूप में लोकप्रिय होते चले गये |
इसी दौरान उन्हें सौभाग्य से उस्ताद फैयाज खान , अलाउद्दीन खान और अब्दुल करीम खान , जैसे शास्त्रीय सुर स्तम्भों की सोहबत मिल गयी |
उसके कुछ दिनों बाद बंगला फिल्म में अपने आवाज का हुनर दिखाने का मौक़ा फिल्म ” बंदनी ” से मिला जिसके संगीतकार व मशहूर कवि क्रांतिकारी काजी नजरुल इस्लाम के निर्देशन में गीत गाया |
” जैसी राधा ने माला जपी श्याम की ”
ठीक वैसे ही उनकी संगिनी ने जपी उनके लिए 1938 में उनकी शागिर्द मीरा दास गुप्ता सचिन दादा के जीवन में प्रवेश की मीरा दास की अहम भूमिका रही सचिन दा के जीवन में उनके संगीत निर्देशन में गीत गया और सहायक संगीत निर्देशिका के रूप में सहयोग करना | 1939 में इस सुर संगम के मिलाप से राहुल प्राप्त हुए | राहुल देव बर्मन स्वंय बड़े संगीतकार थे | इसी दरमियाँ सचिन दादा ने अपने संगीत का दायरा बढाया और हिन्दी गीतों में कदम रखा |
” प्रेम का पुजारी हम है रस के भिखारी
हम है प्रेम के पुजारी
” तारो भरी रात थी
अपनी गली आबाद थी
बचपन की भोली बात थी
पहली — पहली मुलाक़ात थी “”
”वो न आये फलक , उन्हें लाख हम बुलाये
मेरे हसरतो से कह दो , कि वे ख़्वाब भूल जाए ”
” याद करोगे याद करोगे एक दिन हमको यद् करोगे
तडपोगे पर याद करोगे ”
” चल री सजनी अब क्या सोचे
कजरा न बह जाए रोते रोते ”
” सुन मोरे बन्धु रे सुन मोरे मितवा
सुन मोरे साथी रे
होता सुखी पल मैं तू अमरलता तेरी
तेरे गले माला बन के पड़ी मुस्काती रे ”
डा के गाये गीत जीवन के यथार्थ और संवेदन शीलता के चिरं को दर्शाता है जब सचिन दादा माँ की व्याख्या करते है अपने सुरों से
” मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
शीतल छाया तू दुःख के जंगल में
मेरी राहो के दीये तेरी दो अंखिया
गीता से बड़ी तेरी दो बतिया ”
तो सचिन डा सम्पूर्ण नारी जगत के उन सारे संवेदनाओ को उकेरते है \ आज के ही दिन यह निराला सुर साधक अपने अनन्त यात्रा पे चला गया और छोड़ गया अपना स्वर यह कहते हुए ” बिछड़े सभी बारी — बारी अरे देखे जमाने की यारी
क्या लेके मिले अब दुनिया से
आँसू के सिवा कुछ पास नही
यहाँ फूल — फूल थे दामन में
यहाँ काटो की भी आस नही
मतलब की दुनिया है सारी
बिछड़े सभी बारी — बारी —————
ऐसे महान संगीत सुर साधक को उनके पूण्य तिथि पर शत शत नमन

-सुनील दत्ता —- स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

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