Sunday, December 22, 2024
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नेहरू जी के जीवन में पैसा और उसकी चमक, दिखावा की हकीकत

जिस नेहरू के विषय में पब्लिक डोमेन में सिर्फ यही है की अकूत पैसे के साथ प्रदर्शन भरपूर था उनके जीवन में। उसी नेहरू के साथ बापू के पत्रों की सीरीज पढ़ के अजीब आश्चर्य हो रहा है ? बापू द्वारा लिखे गए इस चिट्ठी में नेहरू जी से सेल्फ डिपेंड होने की बात हो रही है। पिता मोतीलाल से सहयोग न लेने के निर्णय पर बात हो रही है। जरूरत होने पर संगठन के अंदर तनख्वाह पाने वाला कार्यकर्ता बनने की बात हो रही है।
नेहरू जी के बारे में पब्लिक के माथे में जो घुसाया गया है , सच्चाई उसके बिलकुल उलट दिखाई दे रही है।

” प्रिय जवाहर,

हम विचित्र समय में रह रहे हैं। शीतला सहाय अपना बचाव कर सकते हैं ? आगे की घटनाओं से मुझे परिचित रखना। वह क्या है ? वकील है ? उनका कभी क्रांतिकारी प्रवृत्तियों से कोई संबंध रहा है ? कांग्रेस की बात यह है कि उसे जितना सादा बना दिया जाए उतना अच्छा है ताकि जो कार्यकर्ता रह गए हैं वे उसे संभाल सके।
मैं जानता हूँ तुम्हारा बोझ अब बढ़ेगा। परंतु तुम्हें अपने स्वास्थ्य को किसी भी तरह खतरे में नहीं डालना चाहिए। मुझे तुम्हारी तंदुरुस्ती की चिंता है। तुम्हें बार बार बुखार आना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। काश तुम स्वयं और कमला थोड़ी छुट्टी ले लेते।
पिताजी का पत्र मेरे पास आया है। बेशक जहां तक उनकी मान्यता है उतनी दूर तक जाना मैं हरगिज़ नहीं चाहता। मैं पिताजी की आर्थिक सहायता देने के लिए किसी से कहने की बात सोचता तक नहीं। किंतु किसी मित्र या मित्रों से जो तुम्हारी सार्वजनिक सेवाओं के बदले में तुम्हारी सहायता करना अपना सौभाग्य समझे कहने में मुझे कोई संकोच ना होगा।
मैं तो आग्रह करूंगा कि तुम्हारी जो स्थिति है और रहेगी उसके कारण यदि तुम्हारी आवश्यकताएं असाधारण ना हो तो तुम्हें सार्वजनिक कोष से तनख्वाह ले लेनी चाहिए। मेरा अपना तो दृढ़ मत है कि कोई व्यवसाय करके या अपनी सेवा सुरक्षित रखने के लिए किसी मित्र को अपने लिए रुपए जुटा देने देकर तुम सामान्य कोष की वृद्धि ही करोगे। तुरंत कोई जल्दी नहीं है। किंतु इधर-उधर परेशान ना हो कर किसी अंतिम निश्चय पर पहुंच जाओ। तुम कोई व्यवसाय करने का फैसला करो तो भी मुझे आपत्ति नहीं होगी। मुझे तो तुम्हारी मानसिक शांति चाहिए। मैं समझता हूं कि किसी व्यवसाय के प्रबंधक की हैसियत से भी तुम देश की सेवा ही करोगे। मुझे विश्वास है जब तक तुम्हारे किसी भी निश्चय से तुम्हें पूर्ण शांति मिलती होगी तब तक पिताजी को कोई आपत्ति नहीं होगी।

“सस्नेह,
तुम्हारा बापू
30 सितंबर, 1925

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