हमने बिहार चुनाव से पहले भी जितने चुनाव राज्यों के विधान सभा के लिए हुए हैं उनमें राष्ट्रीय स्तर के नेता, चाहे वह किसी भी पार्टी के हों राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे अवश्य उठाते हैं चाहे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हों ,राहुल गांधी, सोनियां गांधी हो गृहमंत्री अमित शाह हों अथवा राजनाथ सिंह हों। शायद उनकी ये ज़रूरी भी होता हो कि, वो राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं तो राष्ट्र स्तर से नीचे स्थानीय मुद्दों पर अंत में दो चार मिनट बात कह कर अपनी पार्टी के लिए वोट मांगकर चल देते हैं। लेकिन कहीं -कहीं यह दांव उल्टा पड़ जाता है। स्थानीय लोगों की परेशानी की बात न कह कर राष्ट्रीय बातें स्थानीय लोगों के लिए जले पर नमक छिडकने के समान हो जाती है। और जिसने स्थानीय लोगों की कमजोर नस पकड़ कर उसे जनता के बीच रखा, विजयी होता है। उदाहरण के लिए पंजाब में लोग ड्रग्स से परेशान थे, उस पर वार किया वर्तमान मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने। आज पंजाब की सत्ता उनके हाथ में है। पश्चिम बंगाल में इन्ही स्थानीय मुद्दों को उठाकर ममता बनर्जी मुख्य मंत्री बनी हैं भाजपा के दिग्गज नेता विधान सभा के हर चुनाव मेंराम मंदिर मुद्दा, धारा 370,बाहरी घुस पैठियों कोदेश से बाहर करने की बात, एन सी आर, भारत पाकिस्तान की बात करते हैंऔर विपक्ष को देशद्रोही और अपने को देशभक्त बताते हैं । इसी प्रकार विपक्ष खासकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 2014 के बाद जितने भी विधानसभा के चुनाव हुए(2019 का लोकसभा चुनाव भी), उनमें अडानी अम्बानी ,चीन और पाकिस्तान सीमा पर मारे गए सैनिकों की बात करते हैं, ईवीएम मशीन से बेईमानी की बात करते हैं । लगभग हर चुनाव में यही सुनने को मिलता है। लेकिन उन्हीं नेताओं में जो सबसे पहले स्थानीय जनता की दुखती रग को पकड़ कर उसके ईलाज की बात करता है जनता को सबसे ज्यादा वही अपना लगने लगता है। शायद बिहार में भी यही होने जा रहा है शायद तेजस्वी यादव ने सबसे पहले बेरोजगारी और किसानों की कर्ज माफी की बात की। उन्होंने यहाँ तक कहा कि हमारी सरकार आने पर पहली कैबिनेट की बैठक में 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का प्रस्ताव पारित करेंगे। एन डी ए ने इसका मजाक शुरू में उड़ाया, बाद में जब तेजस्वी यादव की जनसभा में भारी भीड़ नौजवानो की उमड़ने लगी अपने मेनीफेस्टो में 19 लाख नौकरी देने का वादा कर अपनी स्थिति और हास्यास्पद बना ली ।फिर करोना की वैक्सीन बिहार में मुफ्त देने का भी ऐलान कर दिया। इससे भी एन डी ए की बहुत किरकिरी कराई कि जो पता नहीं कब बनेगा इसके बाद में एन डी ए ने भी तेजस्वी यादव का अनुसरण किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। अब 10 नवम्बर को यह स्पष्ट होगा कि उंट किधर करवट बदलेगा । तब शायद सभी पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं की समझ में आयेगा कि लोकल स्तर के मुद्दे कितने कारगर और जनता को झकझोरते हैं। ।सम्पादकीय -News 51.in