सडको का विकास
विस्तार और भूमि अधिग्रहण
देश में चारो तरफ सडको का विस्तार किया जा रहा है | 2 लेंन की सडको को 4 लेंन में , 4 लेन की सडको को 6 लेंन 8 लेंन की सडको में कही – कही तो उसे 14 लेंन की सडको में बदला जा रहा है | उदाहरण प्रधानमन्त्री जी ने दिल्ली – डासना – मेरठ एक्सप्रेस वे कही जाने वाली सडक को 14 लेंन की सडक के रूप में विकसित विस्तृत किये जाने की घोषणा की है | 31 दिसम्बर को की गयी इस घोषणा को प्रधानमन्त्री जी ने दिल्ली – मेरठ के लोगो के लिए नये साल का तोहफा बताया है | देशवाशियो को सडको के विकास – विस्तार का यह तोहफा पिछले 10 – 15 सालो से मिल रहा है | बिना मांगे मिल रहा है क्योकि आती – जाती रही सभी सरकारे देश के आधुनिक एवं तीव्र विकास के लिए आधारभूत ढाचे के विकास के नाम पर सडको के विकास – विस्तार में कोई कोर – कसर नही रहने देना चाहती है | क्योकी देशी व विदेशी पूंजी के निवेशक धनाढ्य कम्पनिया आधारभूत ढाँचे के मुकम्मल किये जाने की मांग जोर – शोर से उठाती रही है | खासकर वाहन उद्योग में लगी कम्पनिया तो अधिकाधिक संख्या में 2 पहिया , 4 पहिया या 6 पहिया वाले वाहनों के अपने अंधाधुंध उत्पादन एवं बिक्री – बाजार को बढावा देने के लक्ष्य से सडको की कमी को ही यातायात में लगते जाम के लिए तथा तेज गति वाली गाडियों की धीमी रफ़्तार के लिए जिम्मेदार ठहराती रही है |
केन्द्रीय – प्रांतीय सरकारों पर सडको के विकास विस्तार के लिए सर्वाधिक दबाव डालती रही है | प्रचार माध्यमि तंत्र द्वारा भी वाहन उद्योग पर कुछ रोक – नियंत्रण लगाये जाने की नही अपितु सडको के अधिकाधिक विकास विस्तार की चर्चाये एवं मांगे उठाई जाती रही है | सडको के इस विकास विस्तार से जन साधारण के लिए भी यातायात में कुछ सुविधा जरुर होगी लेकिन पैदल , सायकिल या दो पहिया , तिपहिया वाहन से लेकर जन साधारण किस्म के चौपहिया वाहनों के लिए , मवेशियों के लिए यह सुविधा कई असुविधाओ एवं क्षतियो के साथ ही मिलेगी | क्योकि तेज रफ़्तार एवं उच्च तकनीक वाले वाहन उन्हें कुचल देने और उन सडको से बाहर रहकर आवागमन करने के लिए मजबूर करते जायेगे | जैसा कि कई एक्सप्रेस वे पर व्यवहारत साधारण यातायात बाहर भी हो गये है |
सडको के इस अंधाधुंध विकास व विस्तारीकरण स्वभावत सडको के दोनों तरफ बसे गाँवों , कस्बो में रहकर अपना जीवन – यापन करने वाले किसान , दुकानदारों एवं छोटे – मोटे धंधो – व्यवसायों में लगे लोग ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते रहे है | उन्ही के खेतो , मकानों – दुकानों आदि का अधिग्रहण कर उन्हें वहा से विस्थापित किया जा रहा है |
उनके जीविकोपार्जन के साधनों सम्बन्धो को काटा – घटाया व खत्म किया जा रहा है |
इसके वावजूद सडको के किनारे लोगो द्वारा कही से कोई विरोध – प्रतिरोध नही हो रहा है | 10-12 साल पहले जैसा विरोध तो अब बिलकुल नही है | लेकिन क्यो ? क्योकि जनसाधारण न केवल पूरी तरह से असंगठित है बल्कि सडको के साथ – साथ बढ़ रहे देश के आधुनिक विकास के प्रचारों तथा उस क्षेत्र के और पूरे देश के सभी लोगो का देर – सबेर विकास होने के प्रचारों से प्रभावित भी है | विकास के प्रचारों की चल रही इस आँधी के अलावा जनसाधारण का खासा हिस्सा सरकारों द्वारा बढाकर दिए जा रहे मुआवजे की रकमों से भी प्रभावित होकर इसका कोई विरोध नही कर पा रहा है | मुवाजे के लाखो रूपये के लोभ के चलते वह न तो इस आधुनिक व तीव्र विकास में अपने स्थायी रोजी – रोजगार की समयबद्द मांग ही उठा पा रहा है |
सरकारे यही चाहती भी है | इसीलिए वे पूर्वांचल जैसे पिछड़े क्षेत्र में भी कई लेंन की सडको का तो विकास कर रही है पर इस क्षेत्र के जनसाधारण के साधारण या औसत पढ़े – लिखे लोगो के स्थायी रोजी – रोजगार का कोई विकास नही कर रही है | न ही उद्योग धंधो का विकास हो रहा है नही इस क्षेत्र के उपजाऊ कृषि भूमि तथा अन्य क्षेत्रो के मुकाबले कही कम गहराई में मौजूद भूजल की उपलब्धता के वावजूद कृषि का ही विकास कर रही है | उसे उपेक्षित छोड़े हुए है |
अत: इन क्षेत्रो में चार या आठ लेंन की सड़के बन जाने से आवागमन का विकास – विस्तार पर्यटन – यातायात का विकास विस्तार उदाहरण सारनाथ से लुम्बनी तक पर्यटन – यातायात का विकास – विस्तार | औद्योगिक मालो सामानों के उच्चस्तरीय व्यापार बाजार का मॉल शाप आदि का विकास विस्तार भले ही हो जाए लेकिन जनसाधारण के रोजी रोजगार का कोई स्थायी विकास नही हो पाना है | बहुसंख्यक लोगो के रोजी रोजगार में टूटन जरुर आना है | काम धंधे या नौकरियों की तलाश में उनका दूसरे क्षेत्रो में पलायान बढ़ जाना है | सडको के साथ किनारे टाउनशिप के विकास और उसके लिए और ज्यादा भूमि अधिग्रहण के जरिये उनके रोजी – रोजगार का विनाश और ज्यादा तथा तेजी के साथ बढ़ते जाना है |
मुआवजे के रुपयों से ज्यादातर लोग अपनी रोजी – रोटी का पहले जैसा स्थायी प्रबंध ( बेशक निम्न या औसत स्तर के रूप में ही प्रबंध ) शायद ही कर पाए | उससे ज्यादातर लोगो के पुश्त दर पुश्त से चल रहे जीवन का प्रबंध तो असम्भव ही है | फिर भूमि अधिग्रहण का मुआवजा भी जमीन मालिको को ही मिलना है | उनकी जमीन या दुकानों को किराए पर लेकर जीविका चलाने वाले को तो कुछ नही मिलने वाला है | देश प्रदेश के जन साधारण के विकास की , खासकर पूर्वांचल के पिछड़ेपन व विकास की इन स्थितियों आवश्यकताओ को देश – व प्रदेश की सरकारे बखूबी जानती है | इसके वावजूद वे सडको के अंधाधुंध विकास को आगे बढाते हुए पूर्वांचल जैसे पिछड़े क्षेत्रो तक में उत्पादन व रोजगार को बचाने – बढाने का कोई प्रयास नही कर रही है | मुआवजे की रकमों का लालच के साथ किसानो और अन्य ग्रामवासियों को जमीन छोड़ने के लिए हर तरह का दबाव डालती जा रही है | हालाकि सडको का विकास – विस्तार फ्लाई ओवरों के रूप में खम्भों पर बनी सडको के रूप में तथा आवश्यकता अनुसार अंडरग्राउंड सडक के विकास के रूप में किया जा सकता था |
कृषि भूमि के साथ दुकानों – बाजारों एवं आवासों को काफी हद तक बचाया जा सकता है | सडको के कई मंजिला निर्माण के जरिये चार लेंन की सडको को छ से आठ लेंन की सडको में बदला जा सकता है | उसमे किसी को विस्थापित करने या उसे मुआवजा देने की भी जरूरत नही पड़ती | मुआवजे के रूप में दी जा रही रकम से या उसे और बढाकर फ्लाई ओवरों या खम्भों पर सडक का निर्माण किया जा सकता था | नीचे की मंजिल से ट्रको- टैक्टरो को तथा उपर की मजिल से सवारी गाडियों को दौड़ाकर सडको को लम्बे दिनों तक टूटने से बचाया जा सकता है | लेकिन यह काम तभी हो पाता जब किसानो एवं जनसाधारण हिस्सों की जीविका व जमीन बचाने की चिंता की जाती | उसके लिए नीतिया व योजनाये बनाई जाती | यहाँ तो मामला सब उल्टा ही चल रहा है | देश व प्रदेश की सभी सरकारे नीचे के बहुसंख्यक जनसाधारण को साधनहीन भूमिहीन बनाकर उनके ससाधनो जमीनों को धनाढ्य कम्पनियों को सौपते जाने का काम कर रही है | खुद सरकार के मालिकाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों को देश व प्रदेश की धनाढ्य कम्पनियों को सौपने का काम करती जा रही है | इसी प्रक्रिया के अंतर्गत जन साधारण को मुआवजे की रकम का लालच दिखाकर उनसे जमीन आवास एवं जीविका को छिना जा रहा है | उन्हें साधनहीन बनाया जा रहा है | जमीनों दुकानों आवासों को बचाकर अन्य तरीकों से सडक के विकास – विस्तार को उपेक्षित किया जा रहा है | यह प्रक्रिया केवल जनसाधारण के एक हिस्से को ही साधनहीन बनाये रखने तक ही सीमित होने वाली नही है | वह धनाढ्य कम्पनियों के मालिकाने की बढती भूख के साथ निरंतर बढने वाली है | इसीलिए जनसाधारण को मुआवजे की रकमों के लालच में फसने की जगह अपने स्थायी आवास और जीविकोपार्जन को बचाने के लिए सोचने व संघर्ष करने की आवश्यकता है | क्योकी मुवाअजे की रकम उसके लिए शिकार फसाने वाले चारे जैसा ही साबित होना है | देश – विदेश की धनाढ्य कम्पनियों की सेवक बनकर उनका साथ दे रही सभी राजनितिक पार्टिया की सरकारी की यही रणनीति है |
सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक