23 जून को पटना में हुई 15 दलों की बैठक( आम आदमी पार्टी को छोड़कर) लगभग 14 दलों में लगभग यह आम सहमति बन गयी है कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक साझा प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में खडा़ होगा, इसमें 15 वां दल जयंत चौधरी का लोकदल भी शामिल है, वहीं यह विपक्षी दलों का एक ही पक्ष है जो दिख रहा है, दूसरा पक्ष ये भी है कि मायावती की बसपा और केजरी वाल की आम आदमी पार्टी दोनों इन विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ने पर उतारू है ये हर राज्य में जहां कांग्रेस मजबूत है और जहां विधानसभा चुनाव होने हैं जैसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ और तेलंगाना में कांग्रेस का खेल बिगाड़ने पर उतारू हैं केजरीवाल चाहते हैं कि कांग्रेस भाजपा द्वारा लाने वाले अध्यादेश का विरोध करे और दिल्ली पंजाब में कांग्रेस अपना प्रत्याशी न उतारे, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मजबूती से केजरीवाल की दोनों मांगे मानने से इंकार कर हर जगह दो-दो हाथ करने का साफ इशारा कर दिया है, सूत्रों की मानें तो मायावती भी सभीउन राज्यों में जहां विधान सभा चुनाव होने हैं, गठबंधन की शर्त पर ही यूपी में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन करने को तैयार हैं अन्यथा वह भी कांग्रेस का खेल अन्य राज्यों में अपना प्रत्याशी उतार कर बिगाड़ सकती हैं । लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने अभी तक कोईजबाब नहीं दिया है, क्योंकि बसपा की तरफ से अभी कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं आया है।अब शेष 14 दलों में मात्र सीटों के बंटवारा का प्रारूप और अन्य बातें शिमला की अगली बैठक में होनी है और इन दलों में उद्धव ठाकरे की शिवसेना को छोड़कर कांग्रेस का पहले से एलांयश था। इस विपक्ष के एकता की बैठक से ऐसा नहीं है कि भाजपा के माथे पर नहीं पडा़ है खासकर देश में राहुल गांधी की जनता में बढती स्वीकार्यता और उनके दिये गये पांच गारंटी कोपार्टी द्वारा राज्यों में सत्ता मे आने के बाद लागू करने से उनकी विश्वसनीयता बहुत ज्यादा बढ जाने से( चाहे हिमांचल हो या कर्नाटक,राज स्थान और छत्तीसगढ हो) भाजपा ने भी अपने पुराने साथियों और नये साथियों की तलाश शुरू कर दी है।ऐसा नहीं है कि आम चुनाव से पहले सिर्फ भाजपा के खिलाफ लड़ रही पार्टियां ही कांग्रेस के नेतृत्व में एक जुट हो रही हैं कांग्रेस के खिलाफ भी क ई क्षेत्रीय पार्टियां भी भाजपा के साथ जुड़ रही हैं जिन्हे कांग्रेस याउनके साथी दलों से खतरा महसूस हो रहा है , जैसे कर्नाटक में हाशिये पर सिमटती पूर्व प्रधानमंत्री देवगौडा़ की जेडीएस, पंजाब में अकाली दल जिसका अस्तित्व भी खतरे में आ गया है।इन दोनों दलों की बातचीत भी भाजपा से शुरू हो चुकी है, बिहार में जीतन राम मांझी पहले ही महागठबंधन छोड़कर भाजपा के साथ आ चुके हैं ,आंध्र प्रदेश में बनवास काट रहे टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडु की मुलाकात भी अमित शाह से हो चुकी है,तेलंगाना में कांग्रेस की बढती ताकत से घबराये तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के बेटे केटीआर ,जो राज्य सरकार में मंत्री भी हैं,क ई दिनों से दिल्ली में अमित शाह से मिलने के लिए डेरा डाले बैठै हैं,डरे हुए तो आम आदमी पार्टी के केजरीवाल भी हैं,लेकिन वह खुलकर भाजपा के साथ नहीं जा सकते वरना कांग्रेस का वो सारा वोट उनसे छिटक जाएगा, वैसे ही उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में।370 लगाए जाने का समर्थन करने की केजरीवाल की जो लताड़ लगाई है उससे अल्पसंख्यकों में उनके प्रति दूरी को बढा ही दिया होगा। यही बात पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ है वहभी कांग्रेस के बढते ग्राफ से भयभीत हैं, लेकिन वह भी मजबूर हैं अन्यथा कभी का भाजपा के पाले में।जा चुकी होती।यूपी में क ई दल भाजपा का साथ पाने के लिए तैयार बैठे हैं, यही हाल बिहार में ऐसे कुछ दल भाजपा के साथ।आने वाले समय में साथ आ सकते हैं ,उडी़सा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी पहले से ही भाजपा के साथ हैं । सम्पादकीय-News51.in