इधर क ई दिनों से देखा जा रहा है कि लगभग सभी क्षेत्रीय दल विपक्षी एकता का राग तो अलाप रहे हैं लेकिन लगे हाथों कांग्रेस को यह नसीहत भी दे रहे हैं कि जो दल जहां मजबूत है वहां वह लडे़ और लगभग दो-ढाई सौ ऐसी सीटें है जहां भाजपा और कांग्रेस सीधी लडा़ई में है वहां कांग्रेस लडे़ यानि जहां क्षेत्रीय दल मजबूत है वहां कांग्रेस अपने उम्मीदवार न उतारे और सारी कसरत 23 जून को पटना में होने वाली विपक्ष( क्षेत्रीय दलों) की बैठक का लब्बो लुआब यही हैइसमें भी विपक्षी एकता के नाम पर सबसे ज्यादा भाग-दौड़ करने वाले दल क्षेत्रीय ही हैं, न कि कांग्रेस । उसपर भी तुर्रा यह कि ममता बनर्जी ने हाल ही में उपचुनाव जीते एकमात्र कांग्रेस विधायक को तोड़कर तृण मूल में मिला लिया है और अब चाह रही है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस न लडे़ ।यही हाल केजरीवाल का है ,जब राहुल गांधी को सजा दो साल की हुई और बंगला भी छीन गया तो केजरीवाल या उनकी पार्टी की तरफ से एक शब्द नहीं कहा गया, बल्कि अंदर खाने वह खुश ही थी अब अध्यादेश पर कांग्रेस का समर्थन भी चाहती है, यही हाल अखिलेश यादव का है जो अभी तक कांग्रेस को घास नहीं डाल रहे थे,अब विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं । सही मायने में येसभी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढे क्षेत्रीय दल कांग्रेस के ही वोटों के सहारे फल-फूल रहे हैं और अब उन्हे यही चिंता खाए जारही है कि अगर ऐसे ही कांग्रेस मजबूत होती जाएगी ,जैसा हिमांचल और कर्नाटक में हुआ तो यह उनके लिए बुरा होगा और उनके वोटर अगर कांग्रेस की तरफ वापस चले गये, तो उनकी राजनीति ही समाप्त हो जायेगी इसीलिए कांग्रेस को आगे बढने से रोकने के लिए विपक्षी एकता की आड़ में यह बैठक विपक्षी एकता के नाम पर बुलाई गयी है। अब आप गौर करें तो ओबैसी और मायावती के बयानो से साफ हो गया है कि इनकी दिलचस्पी भाजपा को कोसने के बजाय कांग्रेस विरोध पर ज्यादा है जनता यह समझ गयी है इसीलिए हालिया चुनावों मे ओबैसी और मायावती की पार्टी पहले वाला कमाल नहीं दिखा पा रही है, क्योंकि कांग्रेस काही वोट ये पाते थे अब यह सम्भव नहीं हो पा रहा है।अब इस सारी कवायद पर कांग्रेस क्या रवैया अपनाती है ,यह ज्यादा महत्वपूर्ण है,23 जून का इंतजार सभी को है ? सम्पादकीय-News51.in