कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आगामी दिनों में सम्भवतः दुबारा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर आसीन होने वाले हैं और अक्सर हम उनकी तुलना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से होती है तो क्यों उन्हें नरेंद्र मोदी के मुकाबले हल्का मान लिया जाता है और क्यों कहा जाता है कि वह कांग्रेस को मजबूत नहीं कर पा रहे हैं इन सभी प्रश्नों का उत्तर हम खोजने का प्रयास तथ्यात्मक तरीके से करने का प्रयास कर रहे हैं क्यों प्रशांत किशोर जैसे लोग उन्हें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के मुकाबले कहीं नहीं देखते ,क्यों भाजपा उनकी बातों को मजाक में उड़ाने का प्रयास करती है क्यों क ई अन्य विपक्षी पार्टी, जो स्थानीय स्तर पर अपने -अपने क्षेत्रों में मजबूत हैं कांग्रेस को मजबूत होने देना नहीं चाहती हैं और इन सब बातों के लिए राहुल गांधी को दोषी ठहराती हैं इन प्रश्नों का उत्तर भी जानना आवश्यक है। पहली बात तो विपक्ष के नेता जो क्षेत्रीय पार्टीयों में क ई अलग -अलग प्रांतों में मजबूत हुए हैं उनमें लगभग सभी क्षेत्रीय दल कांग्रेस के परम्परागत वोटों को विभिन्न कारणों से जो कांग्रेस से छिटके हैं उन्हीं वोटरों के बल पर आज अपने -अपने क्षेत्रों में मजबूत हैं इस कारण वो कभी नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस दोबारा से उनके क्षेत्रों में मजबूत होने पाये। दूसरी बात राहुल गांधी से मुलाकात में प्रशांत किशोर ने क ई मांग अपने हक में कांग्रेस में शामिल होने से पहले मांगी थी जिसमें एक मांग यह भी थी कि उनके द्वारा लिए गये फैसले ही अंतिम माने जायं अर्थात उन्हें फ्री हैंड दिया जाय जो कांग्रेस आला कमान के लिए सम्भव नहीं था इसी कुढन के बाद प्रशांत किशोर कांग्रेस के और खास तौर पर गांधी नेहरु परिवार के विरूद्ध लगातार बयान बाजी कर रहे हैं। ममता बनर्जी की वर्षों से दबी महत्वकांक्षा उभारने का कार्य प्रशांत किशोर ने किया है। तीसरी बात राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मोदी की तुलना की, तो यह सच है कि प्रधान मंत्री मोदी के ओजस्वी पूर्ण और आडम्बर युक्त किंतु चतुराई से स्थानीय मुद्दों (समय और परिस्थिति के हिसाब से स्थानीय भाषा और मुद्दों के साथ अपनी कमजोरियां छिपा कर उसमें धर्म की चासनी मिला) अपने भाषण देते हैं इस मामले में राहुल गांधी मोदी जी के मुकाबले कमजोर नजर आते हैं। कभी- कभी कहाँ क्या बोलना है क्षेत्रीय लोगों की परेशानी उनकी समस्याओं के बारे में उनकी कमजोर नसों और भावनाओं को उभारने के बजाय अंतरराष्ट्ररीय समस्या पर बोलने लगते हैं। जैसे अभी राजस्थान में कांग्रेस की महंगाई और बेरोजगारी की रैली में हिंदु और हिंदुत्व पर बोलने लग जाना, बिहार विधान सभा के पिछले चुनाव में चीन द्वारा भारत की सीमा में अतिक्रमण पर बोलना, डोकलाम पर बोलना, सलमान खुर्शीद के किताब में आर एस एस के हिंदुत्व को तालिबानी वाले बयान पर अपना हिंदुत्व का बयान (भाजपा के ऐजेंडे पर) देना आदि। इसके पहले पिछले गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव में उन्होंने स्थानीय मुद्दों पर और प्रधानमंत्री मोदी की जुमले बाजी पर हमला कर रैलियों में मजाक उड़ाया था उसके सकारात्मक परिणाम कांग्रेस के पक्ष में मिले थे राजस्थान में महंगाई और बेरोजगारी वाली रैली में प्रियंका गांधी, सचिन पायलट और अशोक गहलौत समेत सभी वक्ताओं ने अपने भाषण बेरोजगारी, महंगाई और किसान समस्या पर केंद्रित रखा था यहाँ तक कि बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने परिपक्वता दिखाते हुए चुनाव में अपना ध्यान रैलियों में सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी और किसानों और महिला सुरक्षा पर केन्द्रित रखा था जिसके कारण राजद ने लगभग चुनाव जीत ही लिया था लेकिन कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के कारण सत्ता नहीं मिल पाई थी। तीसरी बात राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मोदी की तुलना उनके क्षमता को लेकर है तो यह कहना जल्दबाजी होगी कि राहुल गांधी कार्यक्षमता में मोदी जी के आगे नहीं टिक सकते, क्योंकि अभी तक राहुल गांधी को कार्य करने का मौका नहीं मिला है।़़किंतु यह भी सच है कि जनता की लड़ाई और उनकी समस्याओं में बेखौफ लड़ते हैं और सरकार के गलत कामों पर अपनी प्रतिक्रिया स्पष्ट देते हैं उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल से जनता की समस्याओं की लड़ाई सड़क पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी आगे रहकर लड़ रहे हैं लेकिन कमजोर संगठन के चलते उसका लाभ सपा को मिल रहा है। रही बात कांग्रेस के क ई बड़े नेता अन्य दलों में, खासकर भाजपा में शामिल हो गए हैं तो यह भी कोई बड़ी बात नहीं। कारण जो भी नेता अन्य दलों में गये हैं तो उन सभी के अपने -अपने कारण हैं सबसे बड़ा कारण उनसभी का कांग्रेस की विचारधारा से कोई लेना देना नहीं था उन्हें सत्ता का सुख चाहिए था या फिर पार्टी में उपेक्षित थे कोई बड़ा पद नहीं मिल रहा था या सत्ता दल द्वारा दिया गया आश्वासन। इस लिए बड़े नेताओं द्वारा अन्य दलों में जाना भी महत्वपूर्ण है महत्व पूर्ण यह है कि अपने सक्षम नेताओं और जनता में पैठ रखने वाले नेताओं आगे लाकर उनका सही उपयोग करके कांग्रेस को मजबूत करना होना चाहिए। राहुल गांधी को कांग्रेस की संगठन शक्ति पर ध्यान देना आवश्यक है। और अपने भाषणों पर विशेष ध्यान देना होगा और यह शीघ्र ही कहाँ क्या बोलना है, सिखना होगा, क्षेत्रीयता को ध्यान में रखकर सम-सामयिक विषयों पर बोलना आवश्यक रूप से जानना होगा। इस लिए यह कहना मुश्किल है कि राहुल गांधी कांग्रेस की मजबूत कड़ी हैं या कमजोर कड़ी,लेकिन यह सच है कि फिलहाल राहुल गांधी ही कांग्रेस को आगे ला सकते हैं।