भाजपा और कांग्रेस ये दोनों ही मात्र राष्ट्रीय पार्टीयां इस देश में हैं इसके अलावा अन्य पार्टीयां क्षेत्रीय हैं जब- जब कांग्रेस देश में कमजोर हुई है उसे हराने के लिए पूर्व में भी क ई पार्टीयों ने क ई बार मोर्चा बनाया। क ई बार हराने में भी सफल रहे। क ई बार धर्म निरपेक्षता के नाम पर भाजपा रहित मोर्चा, जिसे तीसरा मोर्चा का नाम दिया गया, बना और फिर भाजपा के साथ सरकार बनाई। लेकिन हर बार कांग्रेस मजबूत होकर दुबारा सत्ता में आई है। कांग्रेस को छोड़कर भारत में जितनी अपने को धर्म निरपेक्ष कहलाने वाली पार्टीयां हैं सभी ने समय-समय पर भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाई उन्हीं में एक ममता बनर्जी की पार्टी भी है अब भाजपा स्वयंम काफी मजबूत होकर केंद्र की सरकार चला रही है और कांग्रेस कमजोर स्थिति में है तो सभी तथा कथित धर्म निरपेक्ष पार्टियों को ऐसा लग रहा है कि फिर कांग्रेस रहित तीसरा मोर्चा बना कर भाजपा को हराया जा सकता है। अपने को तथा कथित राजनितिक रणनितिकार कहने वाले प्रशांत किशोर क ई दलों के रणनीति कार होते हुए वर्तमान में ममता बनर्जी के साथ जुड़े हैं ।2014 में कांग्रेस की सरकार से जनता भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त थी तो जनता ने नरेंद्र मोदी की वादों और भाषण शैली प्रभावित होकर भाजपा को जिताया था उसमें प्रशांत किशोर का कोई मतलब नहीं था लेकिन भारतीय मीडिया ने जीत में उनका योगदान बताया बाद में भाजपा ने उन्हें भाव देना बंद कर दिया। इसी तरह क ई पार्टीयों से होते हुए कांग्रेस नेतृत्व पर अपने डोरे डाले लेकिन कांग्रेस ने जब उनकी बातों को सुना तो उनकी महत्वकांक्षा से कांग्रेस नेतृत्व भड़क गया सभी डिसीजन अपने हाथ में लेना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी के बाद अब ममता बनर्जी के साथ हैं और उनकी महत्वकांक्षा को भड़का कर कांग्रेस पार्टी से खासकर नेहरू गांधी परिवार से बदला लेना चाहते हैं ।ममता बनर्जी दो तीन छोटे राज्यों के कुछ कांग्रेस में नाराज नेताओं को अपने दल में शामिल करा कर बहुत बड़ी कामयाबी मान रही हैं और बंगाल की कामयाबी से इस समय अपने को राष्ट्रीय राजनीति में दस्तक देने का प्रयास कर रही है इसी कड़ी में घूम-घूम कर विपक्षी दलों के नेताओं से भी मिल कर कांग्रेस विहीन तीसरे मोर्चे को बनाने का प्रयास कर रही हैं अब यहाँ विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या वह तीसरे मोर्चे को बना कर भाजपा को लाभ पहुंचाने का कार्य तो नहीं कर रही हैं क्योंकि पूर्व में भी वह भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना चुकी हैं। हालांकि अधिकतर पार्टी नेताओं ने ममता से मुलाकात के बाद कांग्रेस विहीन मोर्चे को बनाने की बात को सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है कि कांग्रेस के बिना विपक्ष की लड़ाई असम्भव है। शिवसेना, शरद पवार ने ममता को दोटूक जबाब दे दिया है। गलती कांग्रेस नेतृत्व की भी है। उन्होंने भाजपा हराने के लिए दिल्ली और पश्चिम बंगाल सरीखे राज्यों में जमकर चुनाव लड़ने की बजाय केजरीवाल और ममता बनर्जी को वाक ओवर दे दिया जिसका खामियाजा कांग्रेस को अब भुगतना पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी को सभी राज्यों में अपना वजूद बनाए रखने के लिये बिना बड़े दलों से गठबंधन किए सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार पूरी ताकत से लड़ाएं। हार जीत की परवाह छोड़ कर सभी राज्यों में अपना संगठन मजबूती से खड़ा करें और 2024 की लोकसभा चुनाव की तैयारीयां शुरू करें। उन्हें भाजपा के मजबूत संगठन से सीख लेनी होगी। स्थानीय नेतृत्व को उभारने की आवश्यकता पर ध्यान देना होगा। जहाँ बहुत जरूरी हो वहीं छोटे दलों से गठबंधन करें। कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि उसी के परम्परागत वोटर ही तथाकथित सम्भावित तीसरा मोर्चा बनाने वाले दलों के पास भी छिटके हुए हैं। अब देखना यह है कि क्या ममता बनर्जी की महत्वकांक्षा भाजपा के लिए वरदान साबित होने जा रही है।