Sunday, September 8, 2024
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कृषि कानूनों को रद्द करना सरकार का चुनाव में भारी नुकसान की आशंका से या किसानों को कृषि कानून के फायदे न समझा पाने के कारण

अंततः सरकार को किसानों की तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का निर्णय लेना ही पड़ा। दर असल सरकार ने किसानों के इस आंदोलन को शुरू में बहुत हल्के में लिया था उनका अंदाज़ा था कि अधिकतर किसान कुछ समय के पश्चात पस्त होकर बैठ जाएंगे और शुरू में सरकार ने दमनकारी कदम भी उठाए जिनमें पानी की बौछार, लाठीचार्ज और भारी पुलिस बल की तैनाती शामिल रही। इन सब के अलावा भी सरकारी पार्टी की तरफ से उन्हें किसान न बता कर आतंकवादी, खालिस्तानी और न जाने क्या क्या कहा गया साथ ही किसानों के गुटों में फुट भी डालने का प्रयास किया गया। लेकिन नतीजा उल्टा ही हुआ किसानों का आंदोलन और मजबूत होता गया। सरकार का यह अंदाज भी गलत रहा कि किसानों का यह आंदोलन दो ढाई प्रांतों तक सीमित रहेगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब तक, लेकिन किसानों के एक साल तक बिना टूटे, बिना झुके लड़ाई लड़ी और आगे भी पूरे भारत में इसे फैलाने तथा 5 राज्यों में होने वाले चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान की आशंका ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को सोचने और इसे वापस लेने के अलावा अब कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था सैकड़ों की संख्या में किसानों की आंदोलन के समय हुई मौत ने भी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाने का कार्य किया। भाजपा के नेताओं ने भी अपनी चिंता से नेतृत्व को समय -समय पर अवगत कराने का काम किया। इधर गृहमंत्री अमित शाह के आजमगढ और वाराणसी के दौरों में जनता की निषक्रियता और पूर्वांचल ऐक्सप्रैस वे के उद्घाटन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में जनता की उदासीनता ने भाजपा नेताओं को चिन्ता में डाल दिया। आज सुबह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इन कृषि कानूनों को यह कहते हुए वापस लेने की घोषणा की कि हम इन कानूनों के बारे में लोगों को ठीक से समझा नहीं पाये। संसद सत्र में इन तीनों बिलों को वापस लिया जाएगा। इस पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विट कर कहा है कि देश के अन्नदाताओं ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया। जय हिंद, जय हिंद का किसान, इसी प्रकार सभी विपक्ष के नेताओं ने भी अपनी -अपनी बात कही। दर असल भाजपा इस कानूनों को रद्द कर विपक्षी दलों को कोई बड़ा हथियार नहीं देना चाहती। इधर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी और मायावती की बढ़ती सक्रियता से भी भाजपा की नींद उड़ी हुई है पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग सौ सीटों पर विपक्ष नजर गड़ाये हुए है पंजाब और उत्तराखंड में भी पार्टी को जो फीडबैक मिल रहे हैं उत्साह जनक नहीं हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सत्ता किसी भी तरह से भाजपा अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहेगीयही कारण है जिसके कारण कृषि कानून रद्द करना आवश्यक था ताकि किसानों का गुस्सा कम किया जा सके। अभी किसानों के नेताओं से जब इस संबंध में उनका प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के कृषि कानून वापस लेने की घोषणा पर उनकी राय मीडिया ने जानना चाहा तो किसान नेताओं का कहना था कि अभी वह जाने वाले नहीं अभी सरकार ने एम एस पी पर कुछ नहीं कहा है ।दर असल पंजाब में भी अकाली दल और कैप्टन अमरिन्दर सिंह के साथ मिल कर भाजपा चुनाव लड़ना चाहती है लेकिन ये दोनों दल कृषि कानूनों के चलते हिचक रही थीं अब साथ मिल कर लड़ने का मौका भी मिल जायेगा इसके अलावा इस आंदोलन की आग तेलंगाना, मध्य प्रदेश, और अन्य राज्यों में भी फैलती जा रही थी। हालांकि इस एक साल तक चले आंदोलन और उनके कारण हुई मौतों और किसानों की परेशानियों का भी कोई जवाब सरकार के पास नहीं है देखना है इतनी किरकिरी कराने के बाद क्या भाजपा कृषि कानूनों को वापस लेकर राजनितिक नुकसान की भरपाई कर पाती है या नहीं अभी तक एम एस पी पर भी सरकार को फैसला लेना होगा। हालांकि मीडिया इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बता रही है लेकिन 5 राज्यों में चुनाव बाद ही पता चलेगा कि इस फैसले का कितना फायदा होगा । सम्पादकीय

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