सबसे पहले दिल्ली विधान सभा के हालिया चुनाव की बात करते हैं जिसका 5 फरवरी को मतदान और 8 फरवरी को मतगणना होनी है इसबार सबसे बढियां मौका कांग्रेस के लिये अपनी दमदार प्रदर्शन से दिल्ली में पुनर्वापसी का था क्योंकि अरविंद केसरीवाल का 10 वर्षों के कामकाज से जनता के बडे़ वर्ग में असंतोष भी था और शुरूवित भी कांग्रेस ने 23 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के साथ कर दी थी लैकिन चालाक केजरीवाल ने सबसे पहले तो काफी पहले ही दिल्ली की सभी 70 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की न केवल घोषणा कर दी बल्कि जनता के सभी वर्गों के हितों के लिये घोषणाओं की झडी़ लगा दी हालांकि इनमें से अधिकतर की घोषणाओं को वह पिछले विधान सभा चुनाओं में भी कर चुके थे कुछ पूरी किए कुछ अधूरी रहीं और केजरीवाल और भाजपा दोनों प्रचार में भी जुट गये और यहीं कांग्रेस एक बार फिर अनिर्णय का शिकार हो गयी कि(इंडिया गठबंधन के सहयोगी) के विरूद्ध प्रचार करें या नहीं जब तक अनिर्णय की स्थिति से उबरें तबतक काफी देर हो चुकी थी मतदान में मात्र 10 दिन बचे थे, माना 22 जनवरी को गले में इंफेक्शन के चलते राहुल गांधी बीमार थे लेकिन प्रियंका गांधी , खड़गे तो प्रचार की शुरूआत कर सकते थे । सेनापति विहीन कांग्रेस की लडा़ई दूसरी पंक्ति के नेता( कन्हैया कुमार, इमरान प्रतापगढी,सचिन पायलेट और बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं ने प्रचार की कमान जरूर थाम रखी थी)लेकिन सचिन पायलेट, इमरान प्रतापगढी और कन्हैया कुमार सरीखें नेताओं ने भरपूर जान फूंकी और मुस्लिम इलाकों में तो इमरान प्रतापगढी ने तो कांग्रेस में जान ही फूंक दी, लेकिन सबसे ज्यादा लाभकारी निर्दलीय पप्पू यादव ने तो बिहारीयों में अपनी मेहनत से जान फूंक दी। 27 जनवरी से राहुल , प्रियंका और खरगे जी भी प्रचार में जी जान से जुटे ,लेकिन काफी देर हो चुकी है और जनता मन बना चुकी होती है अगर अब तो कांग्रेस 5-7 सीट जीत ले तो बडी़ बात होगी । हालांकि कांग्रेस ने भाजपा और आम आदमी पार्टी के साथ लडा़ई को त्रिकोणीय बना ही दिया है अब कांग्रेस के लिये यही जीत होगी कि वह अपने वोट प्रतिशत को 4 से बढाकर 14-15 प्रतिशत तक ले जाय । सम्पादकीय-News51.in