पिता पिता के स्नेह की आंखों में, पल्लवित होती मैं बड़ी हुई..! पिता की हाथों की हथेली पर, कदम ,चलते बढते मैं खड़ी हुई!पिता के बाहों के आसमान में, मैं पंख फैलाते स्वच्छंद, आजाद उड़ी..! पिता के आशीष छांव में, मैं निडर, निर्भिक हमेशा रही!पिता के मानस हृदय के बने घोंसले में, मैं बुरी नज़रों से बचती रही…! पिता ही वो है जिनके संरक्षण में, हम बेटियाँ महफूज रहीं…! पिता ही तो वो है जिनके साथ से ,हम बेटियाँ समाज में जी रहीं ..! पिता ही वो है जिनके प्यार- सम्मान से ,हम बेटियाँ अपना जीवन बचा पा रहीं…! पिता ही वो है जिनके दुलार से, हम बेटियाँ हक से पढ लिख रहीं…! उनके सुरक्षा कवच के साये में, हम बेटियाँ बिना भेदभाव के, कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं..! समाज में हमें भी है जीने का हक, इस अधिकार के साथ जी रहीं…! पिता ही तो वो है जिनके हिम्मत देने से, हम बेटियाँ बेबाक बोल रहीं…! पिता ही तो वो है जिनके, हौंसले बढाने से, बिंदास हो साईकिल, स्कूटी, मोटर साईकल सडकों पर दौड़ा रहीं..! दूसरी कविता ——————- पापा। घनी अंधेरी रातों में, पापा रोशनी का वो टुकड़ा हैं जो उन अंधेरों को काट कर, हमारे जीवन में उजाला लाते हैं…! हमारे अंदर का डर जब, हमें डराता है, भय से घिरे हम सहमें रहते हैं, पापा डर को भगा, हमारे अंदर हिम्मत पैदा करते हैं..! घड़ी परीक्षा की ,जब भी जीवन में आए पापा हर वक्त, साथ खड़े दिखते आए, पापा के जीवन में रहने, हमेशा उपस्थिति से नामुमकिन काम भी, पापा के रहने से मुमकिन हो जाए…! जीवन में हर पड़ाव पर आए, आंधियों से टकरा जाते हैं पापा!चट्टान से खड़े रहकर, सब दर्द सह जाते हैं पापा , दर्द और कठिनाइयों के मेलजोल का नाम ही तो है पापा …! अपनी हर पीड़ा ,जज्बात को नहीं दिखाते समर्पण का नाम है पापा..! जिंदगी की राह में आए हर मुश्किलों का हल हैं पापा!अनिश्चितता के बादल के उपर, निश्चिंतता का साया बन, मडराते हैं पापा.! हर पल, हर वक्त, बन पहरेदार, पहरेदारी करते हैं पापा..! उपस्थित रहते हैं जीवन में, साए की तरह साथ रहकर हर दुखः, कष्टों में, हमें अपनी दुवावों से बचाते हैं, जिनकी छाया में हम बच्चे रहते, सुरक्षा का एहसास दिलाते, उस एहसास का नाम है पापा..! बेझिझक हर बात को बताना, कहना सिखलाते हैं डर को भगा, साहस के साथ रहने को कहते हैं.! खामोशी को ना पालने की हिदायत के साथ, खुलकर बात चीत करने को कहते हैं अच्छे विचार ग्रहण करने को, अच्छी बातें अपनाने को कहते हैं..! विफलता का कड़वा स्वाद चीखना, सफलता का मीठा स्वाद चीखना ,दोनों के ही स्वाद में तृप्ति का सुख है, यह पाठ हमेशा पढाते हैं पापा…! पापा का अपना अलग ही अंदाज होता है, हम सबके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है….! रचना —एकता प्रकाश, पटना(अनिसाबाद) प्रस्तुति – सुनील दत्ता