एक साधक के लिए शिव स्वयं में एक शास्त्र है——
शिव की प्रतिमा को जब देखता हूँ तो स्तब्ध रह जाता हूँ। एक पूरे चित्र में सारा अध्यात्म समाया हुआ है।
भगवान शिव अद्भुत हैं जिन्होंने प्रथम बार ध्यान और समाधि के सूत्र दिए लेकिन आज हम शिव की भक्ति तो करते हैं लेकिन जो अमूल्य खजाना उन्होंने मनुष्य जाति को सौंपा है हमने उसे विस्मृत कर दिया है।
भगवान शिव स्वयं भी ध्यान और समाधि में लीन रहते हैं, और माता पार्वती को कहते हुए उन्होंने ध्यान और अध्यात्म के सूत्र दिए हैं।
शिव के इन सूत्रों की ओशो ने अपनी प्रवचनमाला ‘शिव सूत्र’ और ‘तंत्र सूत्र’ में बहुत सुन्दर व्याख्या की है। शिव की प्राचीनतम और ओशो की आधुनिकतम वाणी का यह सुन्दर मिलन अकथनीय है।
भगवान शिव का जीवन सन्यासी और साधक दोनों के लिए प्रेरणादायक और आदर्श है। शिव सन्यस्त हैं, दो बच्चे हैं, कुछ छोड़कर भी नही भागे हैं ,सृष्टि के संचालन में भी त्रिदेवो के साथ अपना उत्तरदायित्व निभाते रहे हैं।
साधक के लिए वह स्वयं ही शास्त्र हैं–
कैलाश भीतर सहस्रार चक्र का प्रतीक है
और मानसरोवर भीतर के निराकार का प्रतीक है जो संत ध्यान और समाधि में डूबकर भीतर निराकार मानसरोवर में लीन रहते हैं उनको हमने परमहंस कहा है।
माता पार्वती श्रद्धा की मूर्ति हैं।
नंदी बैल है जो मन का प्रतीक है और इस मन के नंदी पर शिव सवार हैं।
वासुकी सर्प कुंडली का प्रतीक है
और शिवनेत्र ध्यान का प्रतीक है।
भांग भीतर की खुमारी का प्रतीक है।
नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात।
तांडव उनके उत्सव और उनकी मस्ती का प्रतीक है।
शिव का डमरू उस अनहद के संगीत का प्रतीक है जो दिन रात हमारी चेतना और इस ब्रह्मांड में गूँज रहा है
और चंद्रमा आत्मा के प्रकाश को इंगित कर रहा है। मृगछाला और भभूत शिव के वैराग्य की उदघोषक हैं। जटा जूट उनके तप का प्रमाण हैं
और त्रिशूल उनकी शक्ति का धोतक है
लेकिन शिव केवल शक्तिशाली ही नही हैं उनकी करुणा भी अपरम्पार है, जगत के कल्याण के लिए वह विष तक पी गए। शिव जिस अमृत को पी रहे हैं गंगा उसका प्रतीक हैं।
भगवान शिव के इस अद्भुत रूप को देखकर मै विस्मित रह जाता है जिसको महाकाव्य भी नही पाए, ऋषियों की वाणी भी जिसको अभिव्यक्त नही कर पायी।
उस सत्य की झलक शिव के रूप में सहज अभिव्यक्त है।
इसलिए आओ शिव का कहा माने यही सच्ची श्रद्धा है, ध्यान के मार्ग पर चले –
अज्ञात साधक—–