ये महलो ,ये तख्तो ये ताजो की दुनिया
ये इंसा के दुश्मन समाजो की दुनिया ————
एक ऐसा फिल्म चितेरा जिसने हिन्दी सिनेमा का कैनवास बदल दिया ——— गुरुदत्त
पर्दे पर उभरती ये तस्वीरे इतनी उदास क्यों ? क्यों प्यासा रहा वो कलाकार , वो कवि वो चितेरा और उसकी कविताएं और कृतियाँ क्यों किसी अँधेरी रात में ” ओस की बूंद ” उभर आई | अगर ये फूल कागजी थे तो मुरझाये क्यों ? चकाचौध उजाले में वो साये कैसे इस शोरो गुल में ये सन्नाटा क्यों ? किस सोच में था वो फिल्म चितेरा क्या चाहता था वो चाहत , इज्जत ” अगर ये दुनिया मिल भी जाती तो क्या होता |
क्यों मिटाता गया वो अपनी हस्ती और खुद को |
गुरुदत्त का सिनेमा और उनकी जाति जिन्दगी आपस में घुल — मिल गये थे | आज ये कहना नामुमकिन है कहा कथा खतम हुई और कहा आत्मकथा शुरू हुई |
जब वो हँस मुंख थे तो उनकी फिल्मे जिन्दादिली के खुशरंग थे , जब वो उदास हुए तो उनकी फिल्मो ने उदासी की चादर ओढ़ ली | इन्ही कश-म कश ने भारिटी सिनेमा को ऐसी फिल्मे दी जो आज भी मील का पत्थर बनी हुई है |
9 जुलाई 1925 में कर्नाटक के बेगलुर शहर में एक मध्यवर्गीय ब्राम्हण परिवार में जन्मे गुरुदत्त मूल नाम ” बसंत कुमार शिवशंकर राव पादुकोण था | उनकी पूरी शिक्षा दिशा कलकत्ता में हुई गुरुदत्त का रुझान बचपन से ही नृत्य और संगीत में था | उनके इसी शौक ने उनको प्रेरित किया और वे अपने चाचा के माध्यम से छात्रवृत्ति हासिल किया और अल्मोड़ा स्थित उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर में दाखिला ले लिया | जहा उन्होंने उस्ताद उदय शंकर जी से नृत्य सीखा |उदय शंकर जी से पांच वर्ष नृत्य की शिक्षा प्राप्त करने के बाद गुरुदत्त ने टेलीफोन विभाग में नौकरी करते हुए अपने सफर को आगे बढाते हुए पुणे के प्रभात स्टूडियो में बतौर नृत्य निर्देशक काम शुरू किया |
1946 में गुरुदत्त ने प्रभात स्टूडियो की निर्मित फिल्म ” हम एक है ” से बतौर कोरियोग्राफर अपने साइन कैरियर की शरुआत की |
वही पर उनकी मुलाक़ात देवानंद जी से हुई देवानंद जी उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने गुरुदत्त जी से कहा कि हम जब भी फिल्म बनायेगे तो आपको मौका देंगे | आखिर वो दिन भी आ गया जब देवानद ने इनको 1951 में फिल्म ” बाजी ” का निर्देशन सौपा गुरुदत्त की ” बाजी ” ने उस वक्त इतनी सफलता अर्जित की वो फिल्म सुपरहिट हुई और बतौर निर्देशक गुरुदत्त फ़िल्मी दुनिया में स्थापत हो गये |
फिल्म बाजी के निर्देशन के माध्यम से उन्होंने भारतीय सिनेमा में नया आयाम स्थापित किया और बहुत से नूतन प्रयोग भी किये | उस समय के बड़े फिल्ममेकर महबूब , विमल राय राजकपूर के साथ ही एक नया नाम उभरकर फ़िल्मी जगत के आकाश में तारे की तरह चमका और वो नाम था गुरुदत्त का 1953 में प्रदर्शित फिल्म ” बाज ” के साथ ही गुरुदत्त ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा | इसके बाद ” सुहागन ” आर — पार ‘ मिस्टर एंड मिसेज 55 ” 12 ओ क्लाक ” सौतेला भाई ” भरोसा ” बहूरानी ” साझ और सवेरा ” पिकनिक ” जैसी फिल्मो से गुरुदत्त ने अपने अभिनय को स्थापित किया इसके साथ ही ” प्यासा ” ” साहिब बीबी और गुलाम ” ” चौदवही का चाँद ” ” जैसी कलात्मक फिल्मो से गुरुदत्त ने समाज की फैलती विकृतियों को फिल्म के कैनवास पर उकेरा वही इन फिल्मो के माध्यम अपने अभिनय को जीवंत कर दिया जो आज भी मील का पत्थर है |
गुरुदत्त ने 1953 में प्रख्यात गायिका गीता राय से शादी कर ली | उनका वैवाहिक जीवन अच्छा चल रहा था | इसी दरम्यान फिल्म सी आई डी से वहीदा रहमान ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा | और गुरुदत्त का रुझान वहीदा रहमान की तरफ होने लगा जिसके चलते उनका परिवार टूटा | इसके साथ ही गुरुदत्त भी अन्दर — अन्दर टूटते चले गये | गुरुदत्त एक बेहद संजीदा कलाकार फिल्ममेकर थे | उनके अन्दर का रोमांस जहा एक परफेक्ट दुनिया कोत्लाश्ता रहा , वही दूसरी ओर एक कलाकार सच्चाई की दुनिया से निराश होता चला गया |
तंग आ चुके है कश म कशे हिंदगी से हम
टुकरा न दे जहा को कही बेदिली से हम
हम गमजदा है लाए कहा से ख़ुशी के गीत
देगे वही जो पायेगे इस जिन्दगी से हम |
गुरुदत्त की प्रतिभा को उनके जीते जी सम्मान प्राप्त नही हुआ पर उनके जाने के बाद उनकी फिल्मो को और उनको इस निर्मोही और स्वार्थी समाज ने कदर की |
आज उनका जन्म दिन है हम उनको शत – शत नमन करते है |
सुनील दत्ता ———– स्वतंत्र पत्रकार और समीक्षक