आज के नए भारत की युवा पीढी और हमारे समय में हम जैसे तत्समय युवा रहे नौजवानोंकी पीढी के मध्य सोच में भारी बदलाव आ चुका है । पहले का नौजवान सदैव दुविधा में रहता था, उसकी सोच भ्रमित रहती थी और समाज तथा मां-बाप, घर -परिवार, रिश्तेदार क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, जैसा भय। वे इसीकारण सदैव अपनी इच्छाओं को कुचलने पर मजबूर हो जाते थे, लड़कियों की स्थिति और भी बदतर होती थी वे तो अपनी इच्छा या विचार व्यक्त भी नहीं कर पाती थीं यहां हम जब आधुनिक भारत की युवा पीढी की बात कर रहे हैं तो उसमे युवक और युवतियां दोनों शामिल हैं आज के युवा स्पष्ट सोच, स्पष्ट विजन के साथ अपनी जिंदगी की बात करते हैं इसके लिये उनके अंदर कोई झिझक या मन में कोई फिक्र या गिल्टी नहीं होती है न ही यह डर कि, मां-बाप परिवार या रिश्ते दार या समाज उनके बारे में क्या सोचेंगे ।वे अपने कमिटमेंट के लिए परिवार, समाज की परवाह नहीं करते हैं पसंद का जीवन साथी मिलने पर (वह चाहे किसी भी धर्म, जाति या प्रदेश का क्यूं नहो) वह अपने -अपने परिवार से साफ -साफ बता देते हैं अगर परिवार राजी होता है तो ठीक, नहीं तो कोर्ट मैरिज करने में भी उन्हें कोई झिझक नहीं होती फिर तो अमूमन आज के मां-बाप भी एक रिशेप्शन कर रिश्ते को सामाजिक मान्यता भी दे देते हैं। आज के माता-पिता भी उतने कट्टर पंथी विचारों के नहीं रह गये, जितना पहले हुआ करते थे। पहले की युवाओं को मांता-पिता लोन लेने को पाप मानते थे उनका मानना था कि लोन पाटते -पाटते एक अर्सा गुजर जायेगा। अब की युवा पीढी जाब पाने के पश्चात ही शादी करता है फिर पति -पत्नी (कपल) किराये के मकान में रहने के बजाय (भले ही इसके लिए लोन ही क्यों न लेना पड़े) अपने मकान में रहना पसंद करता है, प्राइवेसी उनकी प्रमुखता होती है फिर महीने की किश्त प्लानिंग कर जमा करते रहते हैं और तो और बच्चे भी प्लानिंग के तहत ही होते हैं एक बच्चा के बाद अमूमन कम से कम चार वर्षों का गैप रखते हैं। उनकी प्रतिबद्धता और प्रमुखता बच्चे की अच्छी और कान्वेंट में शिक्षा की रहती है। आजसे 25-30 वर्ष पूर्व की युवा की जिंदगी कैसे जीना है, कोई सोच या प्लानिंग नहीं होती थी नतीजतन जिंदगी यूं ही कट जाती थी। अपने बच्चों को ही नहीं पूरे परिवार का ध्यान देना आवश्यक होता था। माता -पिता की पसंद से ही शादी होती थी अपनी पसंद को दिल में दबाए जिंदगी कट जाती थी क्या बदलाव आया है। ध्यान देने की बात ये है कि सभी की सोच में बदलाव आया है। बेटे-बहू, सास-ससुर, लड़की और लड़के के माता -पिता और ननद, देवर, जेठ, समाज हर तबके में, हर रिश्ते में बदलाव आया है पहले लड़की वाले कमजोर पक्ष और लड़के वाले मजबूत पक्ष होते थे अब सभी रिश्ते बराबरी के हैं अब लड़की के माता -पिता या भाई बहन क ई-क ई दिनों तक बेटी के घर रह कर आते हैं, पहले लड़की के घर का पानी पीना भी पाप माना जाता था। सारी पुरानी मान्यताएँ समाप्त हो चुकी हैं भले ही इसका कारण जो हो, यह एक सुखद परिवर्तन का एहसास है।
लेखक- संपादक News51. In -अशोक कुमार श्री वास्तव