अहिंसा का देवदूत – बादशाह खान
वास्तव में अफगानिस्तान की सीमा से लगे अविभाजित भारत के सीमांत प्रांत में बादशाह खान उनके द्वारा बनाई गयी खुदाई खिदमतगार सगठन ने जो उपलब्द्धि हासिल किया था वह देश ही नही पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी मिशाल थी आज इतना लम्बा समय बीतने के बाद भी यह प्रेरणा का एक स्रोत बना हुआ है | महात्मा ने लिखा है ” सीमांत प्रांत मेरे लिए एक तीर्थ रहेगा , जहां मैं बार – बार जाना चाहूँगा | लगता है कि शेष भारत सच्ची अहिंसा दर्शाने में भले ही असफल हो जाए ; तब भी सीमांत प्रांत इस कसौटी पर खरा उतरेगा ….|
सीमांत प्रांत एक ऐसा क्षेत्र था जो हिंसा से बुरी तरह त्रस्त था | एक तरह अंग्रेज शासको का अन्याय व उत्पीडन था तो दूसरी तरफ पठान कबीलों की आपसी हिंसा थी | बदले की भावना से बड़े – बड़े अपराध होते | पर हिंसा के इस क्षेत्र में भी बादशाह खान ने यह सपना देखा और जिया कि वो बड़ी संख्या में आम लोगो को अहिंसा की राह पर ले आये उन्होंने आम आदमी के जीवन मूल्यों में बुनियादी सुधार किया अहिंसक सघर्ष से अंग्रेजो शासको के अन्याय व अत्याचार का भी विरोध किया | इस तरह यह अन्याय से लड़ने के साथ जीवन – मूल्यों में बदलाव का एक अद्भुत प्रयोग किया था उन्होंने जो हिंसा की जमीन में अहिंसा के फुल उगाना चाता था |
कल्पना कीजिये कि उस समय जब विरोध की जरा सी आहात सुनते ही विदेशी शासक किसी भी व्यक्ति को जेल में डाल देते और कई अत्याचार करते थे उस समय यह कार्य कितना कठिन रहा ओगा कि गाँव – गाँव में जाकर लोगो को नये तरह के संघर्ष नये तरह के जीवन मूल्यों के लिए तैयार करना कितना कठिन रहा होगा पर बादशाह खान ने न केवल यह साहस किया , अपितु उन्होंने इसमें आश्चर्यजनक हद तक सफलता को प्राप्त भी किया | महात्मा गांधी ने कहा था , ‘ बाद्शाह खान ” मैं आपको मुबारकबाद देता हूँ | मैं यही प्रार्थना करूंगा की सीमांत के पठान न केवल भारत को आजाद कराए बल्कि सारे संसार को अहिंसा का अमूल्य संदेश भी देवे …..” बादशाह खान की सफलता का एक बड़ा आधार यह था कि उनके अपने कार्य के प्रति और अपने लोगो के लिए बहुत गहरी निष्ठा थी | उन्होंने कहा था , ”मैं इन बहादुर , देशभक्त लोगो को उन विदेशियों के आतंक से निकालना चाहता हूँ जिन्होंने इनके स्वाभिमान को टेस पहुचाई है |…. मैं इनके लिए एक ऐसे आजाद संसार का निर्माण करना चाहता हूँ , जहाँ यह शान्ति से रह संके, जहां ये हँस सके और खुश रहें | मैं इन ओगो के कपड़ो पर से खून के धब्बे मिटाना चाहता हूँ .. मैं इनके घरो को खुद अपने हाथो से साफ़ करना चाहता हूँ कि ये पहाड़ी लोग कितने खुबसूरत और सभी है …..|
एक सच्चे जन आन्दोलनकारी में यह सामर्थ्य होना चाहिए कि उपरी परत को हटाकर वह अपने लोगो में छुपे हुए गुणों को पहचानकर व फिर इन गुणों को प्रेरित और जागृत कर उन्हें दे कार्यो के लिए तैयार कर सकें | यही बादशाह खान और उनके बहादुर साथियो ने खुदाई खिदमतगार संगठन के माध्यम से किया | दुनिया हैरानी इ देखती रह गयी जो क्षेत्र हिंसा की बड़ी पहचान रखता था वहां से खबरे आई की अब लोग यहाँ अंहिंसा को मानने लगे है | खुदाई खिदमतगारो का यह संघर्ष बहुत प्रेरक था जो हिन्दू -मुस्लिम एकता की एक बड़ी मिशाल भी कायम किया |सभी धर्मो में सद्भावना स्थापित करना खुदाई खिदमतगारो का एक मुख्य उद्देश्य था | बादशाह खान ने कहा , ”मजहब तो दुनिया में इंसानियत , अमन , मोहब्बत , प्रेम , सच्चाई और खुदा की मखलूक की खिदमत के लिए टा है … जमाते तो सेवाओं के लिए बनाई जाती है और हर एक का दावा भी यही है | फिर आपस में झगड़ा क्यों हो ?
सुनील दत्ता — स्वतंत्र पत्रकार – दस्तावेजी प्रेस छायाकार