Monday, December 30, 2024
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अपना शहर मंगरूआ – हर क्षेत्र में लपोकियों की बहुतायत

अपना शहर मंगरूआ

हर क्षेत्र में लपोकियो की बहुतायात

बहुत दिनों से सोच रहा था चौक जाऊ सब्जी मंडी होते हुए मुन्ना का पान घुलाते ,आज अचानक मन बना कि चलते है देखते है इस वक्त क्या – क्या बदला है अपने शहर में , दुनिया आधुनिकता की ओर अग्रसर है | अपना शहर भी बदल रहा नये – नये माल शाप खड़े हो गये है , प्राधिकरण ने जो नक्शा पास किया मानक का कोई ध्यान ही नही रखा है , इन बड़े माल शापों में पार्किंग नही है इनके कारण शहर जाम में फंस जाता है | मैं अपनी मोपेड उठाकर निकल गया अपने पुराने अड्डे ( बाटा शो रूम के बगल में विजय रुई वाले के रॉक पे जाकर बैठा | वही बगल में मगरुवा मिल गया | मगरुवा आज कल रिक्शा चला रहा है कभी – कभी मस्ती में रिक्शा खीचता है , कभी पल्लेदारी भी करने लगता है लगा पूछने दत्ता बाऊ बहुत दिन बाद देखात हउआ ? मैंने कहा हां यार नई आर्थिक नीति ने सबका व्यापार बैठा दिया है | का करी अपना सुनाओ उसने बोला याद है बाऊ यही सिन्धी होटल के बगल में लारी चाय के होटल कईले रहने का मस्त जमाना रहे उ यहाँ बड़े कांग्रेसी , कम्युनिस्टी , समाजवादी अउर जिला के बड़े खेलाडी आवे अउर बैठे , याद करा इहा स्व बृज भूषण लाल श्रीवास्तव स्व काम ० तेजबहादुर सिंह जयबहादुर सिंह ,झारखंडे राय , बाऊ राम कुवर सिंह सीताराम अस्थाना , रामधन जी , मुक्तिनाथ उपाध्याय डी के दत्ता बी के दत्ता शाह शमीम और भी बहुत सारे नेता लोग अलग अलग समय में बैठते थे | उस समय दो या तीन पत्रकार थे बैरागी जी , पूरी जी और धर्मनाथ गुप्ता जिनकी प्रकाश आर्म्स स्टोर थी इसके साथ ही उस समय दैनिक आज के जिला संवाददाताथे वेस्ली कालेज के हिंदी के अध्यापक बाऊ मुखराम सिंह जी उस समय पत्रकारिता का जमाना था , बाद में महेश्वरी पाडे ने अख़बार देवल दैनिक निकला जो आजमगढ़ की पहली हिंदी दैनिक थी जो चर्चित रही | चौक में अख्खड़ समाजवादी विचारक बड़े भाई विनोद कुमार श्रीवास्तव मिल गये वो लगे बताने जानत हउआ की हमरे बाऊ जी स्व बृज भूषण लाल श्रीवास्तव लरिया के बना देहने सरवा के दुई दुकान करूंउने एक थे कचहरी में दुसर इहा पर लगने बतावे कि राज नरायण के भक्त बच्चा बाबु के सहायक जैसे लोग आजकल जयपाल रेड्डी के नाम से प्रख्यात है उनके विशेष गुणों में वो दिशासूल लोगो को ही अपने हाथो से बनाकर खाना खिलाते है भइया मगरुवा बोललस इह बात मगरुवा बोललस इह एक ऐसन नेता हउये चकाचक कुरता पहिने एक नेता जी देवी के बड़ा भक्त है उ मंदिरे के पास खड़ा होकर आते – जाते देवियों पे गहरी नजर डालेंते उनक्जे कुछ पुराने मित्र उनके घूरने की इस अदा पे उन्हें घुरा सिंह के नाम से पुकारते भी है लारी की दुकान टूटने के बाद स्व कैलाश रुगता की दुकान पर बैठकर बराबर उनको घूरते हुए आप देख सकते है | अब का बताई मगरू भइया तोहके पिछले समय में पूरा शहर अउर गल्ली सब एक दम सीमेंट के बनल रहनी तब नामी – गिरामी लोग नगरपालिका के चेयरमैंन होत रहने बच्चा बाऊ ( त्रिपुरारी पूजन प्रताप सिंह ) के पिता जी बाऊ सूर्य कुमार सिंह बीस साल रहने चेयरमैन — ओकरे बाद उनकर माता जी श्रीमती भगवती देवी सात साल ड्योढी से अध्यक्ष के कार्य भार देखनी जमाना रहे भइया सबेरे – सबेरे भैसा गाडी कुल कूड़ा उठा ले , झाड़ू वाली सब शहर चिक्कन कर दे | आज इह स्थिति ह शहर के तीन – तीन मंत्री जी लोगन के रहले के वावजूद शहर के सडक पर चलल दुर्गति ह | कूड़ा से पूरा शहर बज – बजात ह पहिले के जमाने में जमादार रहने अब ठीकेदार कुडादार हउये फरक त पड़ी ना अब अपने दीनू भइया के ले ला तभी वहा बैठा रामदुलार पल्लेदार बोल पड़ा का बताई आपके साहब आज के चेयरमैन ‘’मुते ने कम हिलावे ने जादा ‘’सरवा आप देख आई जालंधरी बाजबहादुर गुलामी के पूरा सब जगह कूड़ा बिखरल बा सडक पे अउर गल्ली में अब इहके का बतावल जाई उसका सवाल सही था मैं करता क्या तब फिर वो बोल पड़ा आप त पत्रकार हउआ हमने कहा हाँ उसने पूछा काहे न आप लोगन लिखता कैसे लिखबा आप लोगन के बड़ा व्यापार बंद हो जाई दुनिया गरीबे के सतावे ले ओकर सुधि बहुत कम जनी लेवे ने | ओ समय कम्युनिस्ट पार्टी के बोलबाला रहे इहे चन्द्रजीत यादव नया – नया वकील बनल रहने दीवानी कचहरी में अउर कम्युनिस्ट पार्टी के नौजवान सभा के नेता रहने उनकी दोस्ती कोट मुहल्ले में कामरेड आले हसन और हरी कोयले जामा मस्जिद वाले से रहे | चन्द्रजीत यादव शुरू से थोडा नफासत पसंद नेता रहने उ भी आवे इहा सिन्धी के होटल पर चौक पर अलग अलग तीन राजनितिक गोल बैठत रहे |सिन्धी होटल पर साम्यवादियो की लारी के होटल पर मध्य मार्गियो की और प्रभु पंडित सनबीम से पहिले चाय की दुकान थी वहा पर समाजवादी खेमा बैठता था कभी कभी सारे दलों के लोग बैठ लिया करते थे इहा सूड फैजाबादी अउर प्रगतिशील शायर कैफ़ी भी अपनी महफिल जमाते थे सूड के हाथी का जन्म ठीक बाटा शो रूम के सामने समाजसेवी श्याम अग्रवाल की दुकान पर हुआ जो आज हमारे जिले के हास्य व्यंग के एक लौते कम उम्र के कवि है | एक बुजुर्ग पत्रकार से एक वामपंथी ने पूछा कि आजकल अखबारों में आपके लेख नही आ रहे है तो उन्होंने तपाक से जबाब दिया जब से बिना किसी अख़बार में रहे लपोकी अपने को पत्रकार बताते है और प्रेस क्लब उन्हें पदाधिकारी भी बना रखा है तबसे पत्रकारिता से मन उचाट हो गया है | लेखक- सुनील कुमार दत्त (कबीर) -स्वतंत्र पत्रकार, दस्तावेजी फोटो छायाकार

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