Monday, December 23, 2024
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अपना शहर मंगरूआ -शहर के मोहल्लों के बारे में

अपना शहर मगरुवा —

शहर के मुहल्लों के बारे में

आज अचानक अाई बी एन के संपादक वसीम भाई मेरे स्टूडियो पर चले आये हाल चाल पूछने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा की मगरू भाई आजकल नही दिख रहे है , मैंने कहा हां आजकल वो बहुत कम दिखाई दे रहे है इतना ही कहा था की हम दोनों ने देखा मगरू भाई मस्ती से गेट खोलकर अन्दर प्रविष्ट हुए उन्होंने पूछा का हो वसीम साहब का हाल बा , वसीम भाई ने कहा सब बढिया हवे , मगरू ने हंसके कहा वसीम साहब एक बात हवे की तू आजकल खबर कायदे के दे हवा और निर्भीक पत्रकारिता करत हवा बधाई । उ छोड़ा आज तोहके बतावत हई शहर के मोहल्ला के बारे में —————
मगरू भाई ने कहा दत्ता बाबू अउर वसीम बाबु सूना आज तोहके हम आजमगढ़ नगर के मोह्ल्लन के बारे में बताइब हमे भी उत्सुकता बनी , फिर मगरू भाई शुरू हुए 10 अक्तूबर 1809 ई. को अवध के नवाब सआदत अली और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच संधि हुई थी | फलस्वरूप आजमगढ़ चकला परगना माहुल और परगना मऊनाथ भजन कम्पनी के अधिकार में मिलल | 1820 में सगड़ी , घोसी मुहम्मदाबाद , नत्थूपुर ,मऊ के गाजीपुर कलक्ट्री में शामिल कए लेवल गएल | 18 दिसम्बर 1832 के आजमगढ़ स्वतंत्र जिला इन सब के मिलाकर बनावल गएल | 1835 में यहाँ कलेक्ट्री – अउर दीवानी बनल और 1836 में जिला के प्रथम कलेक्टर मिस्टर तामसं जी ने यहाँ का पदभार ग्रहण किया | तबसे 1950 तक आजमगढ़ नगर के व्यापक विस्तार भएल इस समय नगर में सीमान्त ग्रामो को समेट कर 40 मुहल्ले बने थे अब तो बहुत से नये मुहल्ले बन गये |
कोट किला — आजमगढ़ के किले के कारन इस मुहल्ले का नाम कोट – किला है | 1665 से पहले यह फुलवरिया गाँव था | बाद में यह बाज बहादुर और सीताराम मुहल्लों का हिस्सा था | बाद में यह स्वतंत्र मुहल्ला बना | राय परिवार के लोग यहाँ रहते थे |
जालंधरी — आजमशाह के प्रथम सेनाध्यक्ष जालन्धर सिंह का यही निवास था | कोट चौक से उत्तरी सडक की बाई और यह मुहल्ला आबाद है | यहाँ अभी कुछ अति प्राचीन मकान उस समय की याद दिलाते थे पर अब सब आधुनिक हो गया है |
बाजबहादुर — दुसरे सेनाध्यक्ष बाजबहादुर का इस मुहल्ले में निवास था , जो किले से सटा पश्चिमं तरफ अवस्थित है | इसमें पुरानी बस्ती चौरसिया लोगो की है अब धनी – बुद्धिजीवी मुस्लिम वर्ग के यहाँ पर मकानात है | यहाँ सुव्यवस्थित मस्जिद भी मौजूद है |
गुलामी का पूरा — आजमगढ़ के राज्यकाल में बड़ी संख्या में सेवक थे जिन्हें तत्कालीन चलन के अनुसार ”गुलाम ” कहा जाता था | उनके लिए किले से उत्तर एक गाँव प्रदान किया गया | इसे ही गुलामी का पूरा कहा गया | अब इसकी शक्ल आधुनिक हो गयी है , लेकिन डीह बाबा का स्थान उस पुरातन का स्मृति चिन्ह है |
सीताराम — सेठ सीताराम यहाँ धनी खेती – व्यापारी थे | गल्ले के बड़े व्यापारी थे | बाद में राजा आजमशाह ने इन्हें धानपूर्ति अधिकारी बना लिया और ऊँचा ओहदा दिया | जहाँ इनका निवास तथा व्यापार केंद्र था उसे पूरा सीताराम कहा गया | पहले यह बड़ा मुहल्ला था , फिर दुसरे मुहल्लों के सीमाक्न से कम हो गया |
फराशटोला — मुगलकाल में फर्शी हुक्के का चलन था , हुक्का फर्श पर रहता था और पिने की कपडे पर ( निगाली ) खूब बड़ी सर्पाकार होती थी | इसे सुन्दर रेशमी कढाई का डिजाइन देने वाले कारीगरों को ”फर्राश ” कहा जाता था | सत्रहवी शताब्दी में यहाँ इसका कारोबार होता था | अब यह धंधा लुप्त हो चूका पर इस नाम से बस्ती बस गयी |
आसिफगंज __ आजमशाह – अजमतशाह के जमाने में मुख्य बाजार कटरा था | बाद में आसिफ जहाँ ने चुनाव करके यह मुहल्ला आबाद किया और चौक रोड की मरम्मत कराया , तब से यह मुख्य मार्केट के रूप में प्रचलित है |
तकिया — चकलेदारी प्रथा के समय अमिला परगना से पहुचे हुए एक फकीर यहाँ आये | वे सिद्ध पुरुष थे | चकला क्षेत्र में ही चौक पर उनकी गद्दी स्थापित की गयी जहाँ से वे उपदेश देते थे , इससे यह क्षेत्र तकिया के नाम से मशहूर है |
पहाडपुर — आजमशाह के प्रिय सेनापति उदय सिंह का बेटा पहाड़ सिंह बढयापार – म्हुवापार के दुश्मनों के साथ युद्ध में यही पर शहीद हुए थे आजमशाह ने पलटकर उन्हें जीत लिया और स्मृति के रूप में इस क्षेत्र को पहाडपुर नाम दिया |
पाण्डेय बाजार — पुरोहित गौरीशंकर पाण्डेय ( गौरी शंकर घात ) के निवास के लिए जो स्थल दिया गया था वह कटरा से यहाँ तक फैला हुआ था , इसी से इसे पाण्डेय बाजार कहा गया |
हीरापट्टी – प्रथम स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिवीर बाबु परगन सिंह के पूर्वजो का बसाया गाँव है | शायद इनमे से किसी का नाम बाबु हीरा सिंह था अब यह आधुनिक मुहल्ला हो गया है |
अराजीबाग— | मौलाना शिबली नोमानी विन्द्वल की यह बाग़ की अराजी थी जिस पर 1883 में एक स्कुल पुराना नाम जार्ज स्कुल बना बाद में यह शिबली मंजिल और कालेज बना |
अनन्तपुरा — जिला फतेहपुर ने कायस्थ मुंशी अनंत प्रशाद आज्म्शाही में खजांची थे | उन्हें यहाँ पर रहने तथा गुजारे के लिए जमीन दी गयी थी |कटरा — अजमतशाह ने यहाँ सबसे पहले बाजार बसाया और छोटी छोटी दुकाने बनवाई यही सबसे पुराना बाजार है | आसिफगंज बसने के बाद जब चौक मंडी की मेंन रोड बनी तब यह बाजार ढीला पड़ गया लेकिन आज भी काफी अच्छी मार्केट है |
कुंदीगढ़ टोला – पुराने कब्रिस्तान से सटा मुहल्ला कभी कुम्भ्कारो की बस्ती थी | चांदी का महीन वर्क बनाने के लिए चमड़े के बीच में रखकर कुटा ( कुंदी) की जाती थी तब फैलकर कागज की शक्ल में वह हो जाया करती थी | मशीनीकरण के बाद यह रोजगार खत्म हो गया |अब यह व्यवस्थित मुहल्ला है |
बदरका — पंडित गौरीशंकर पाण्डेय के भांजे बद्री दुबे को यह स्थल दिया गया था | पहले बद्री का पूरा कहा जाता था लेकिन अंग्रेजी काल में इसे बद्रिका कहा गया जो बदरका हो गया | यहाँ ईद की नमाज का सबसे बड़ा स्थल है | इसे अजमत शाह ने शुरू किया था |

अनन्तपूरा — जिला फतेहपुर ने कायस्थ मुंशी अनन्त प्रसाद आजमशाही में खजांची थे उन्हें यहाँ पररहने तथा गुजारे के लिए जमीन दी गयी थी |

अजमतपुर कोडर — मतभेद हो जाने पर अजमतशाह अलग होकर पश्चिमी हिस्से के कोडरगाँव में रहने लगे जो नदी किनारे था | यहाँ बड़ा तालाब था जिसमे बुनकर आम लोगो के पहनने के लिए अतलस नामक मोटा वस्त्र बनाते – धोते थे | इसे अतलस का पोखरा आज भी कहा जाता है |
कुर्मीटोला—- पुराने समय में इस जाति की बहुत सी बस्ती रही होगी यहाँ पर |
गुरुटोला — आजमशाह ने गुरु बलदेव मिश्र के वंशजो को यह गाँव दिया था जब घोड़े सहित अजमतशाह दोहरीघाट में डूब गये | इनके हितार्थ गुरुघाट के मंदिर बनवाये गये | तब यहाँ नदी बहती थी | बाद में धारा बदल गयी | तब से इसका नाम गुरुटोला पडा |
सदावर्ती —– व्यवसायी बच्छराज खत्री का यहाँ सदाव्रत ( गरीबो को भोजन-वस्त्र का दान ) चलता था | खत्री बहुल मुहल्ले से ही इसे अलग किया गया और सदावर्ती मुहल्ला कहा गया आजमशाही काल में
मातबरगंज — शेरशाह सूरी द्वारा स्थापित सराय फत्ते खा ( आज का म्युनिस्पल मार्केट का ड़ोमडखाना पर जो डाकिये चिठ्ठी संदेश लाकर लेते देते थे उन्हें मातबर कहा जाता था | बाजार बनने के बाद गंज लग गया
एलवल — 1994 की भीषण बाढ़ के बाद 1800 ई. में आजमगढ़ जब गोरखपुर में मिला दिया गया , तब बनारस के जिलाधिकारी ने आजमशाह के समय पूर्वी बाँध को कंकड़ से पाटकर मजबूत बनवाया | इसके ई. आलवेल का कैप पुलिस चौकी के पीछे था | इस स्थल के आसपास को आलवेल साहब का अहाता कहा जाता था जो बाद में एलवल हो गया |

रैदोपुर — यह ठाकुरों बाहुल्य इलाका रहा है जिन्हें राव कहा जाता था आदर से | उन्ही राव को प्रदान की गयी जमीन को मिलकर रावदापुर कहा गया जो बाद में रैदोपुर हो गया |

दलालघाट — यह मुहल्ला नही है सीताराम मुहल्ले का एक स्थल है जहाँ चकलेदारी में गाजी मियाँ का दुलदुल घोडा सजाया जाता था | उसी दुलदुल घाट से द्लालघाट बन गया |

सब्जीमंडी — यह भी मुहल्ला नही है | गुरुतोला सदावर्ती के बीच चौक का स्थल सब्जीमंडी कघ गया | 1950 तक टीन शेड में सब्जीमंडी थी बाद में इसे प्राइमरी स्कुल बना दिया गया अब लोग इसे पुरानी सब्जीमंडी कहते है |
सिविल लाइन — अंग्रेजी शासन के कचहरी टाउनहाल ब्रिटिश शासन का कार्यालय को समेट कर सारे शहरों की तर्ज पर इसे अफसरी इलाका सिविल लाइन कहा गया |

मडया — नदी के किनारे इस मुहल्ले में कभी मछली और तरकारी की खरीद की बड़ी मंडिया थी इससे इसका नाम मडया पडा |

सिधारी – नदी पार दक्षिण में उन अपावन ब्राह्मणों को बसाया गया था जो मरण कर्म में अन्नदान लेने आते थे , उसी सिद्धारी से सिधारी बना |

हरिबंशपुर – आजमगढ़ में किला बनवाने के सन्दर्भ में हरिवंश सिंह ने यहाँ टाइल पर अस्थायी निवास बनवाया ( जिलाधिकारी आवास ) इसके इर्द गिर्द स्थल आज भी हरिबंशपुर नाम से जाना जाता है |

कालीनगंज — आजमशाही में अजमतगढ़ नैनीजोर के ठाकुरों ने इस स्थल पर कब्जा कर अपनी कोठिया बनवाई , इनका वैमनस्य गौतम वंश राजवंश से था | उनकी तुलना में ये स्वंय को कुलीन कहते थे | उसी कुलीन से बिगड़कर कालीन हो गया | उस युग में वेश्या – रखैल का चलन था बाद में उनका मालिकाना हो गया |

शेष तिवारी पुर कर्तालपुर मुसेपुर बलरामपुर पुराजोधी दलसिंगार कोल पाण्डेय चक बाजबहादुर चक गौरी नाम आधारित है |लेखक- सुनील दत्ता स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस छायाकार

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