अपना शहर मगरुवा
कामरेड अजित तुम बहुत याद आते हो
आज मन हुआ की दीवानी कचहरी घूम आऊ सो मैं चला गया वहाँ पहुचकर सीधे मैं कामरेड सच्चिदा राय के कमरे में गया तो वह कामरेड अनिल राय , कामरेड अरुण सिंह और भी अन्य लोग बैठकर बार के चुनाव की चर्चा कर रहे थे | कुछ देर बाद वहाँ पर मगरू भाई भी आ गए उन्होंने छेड़ दी कामरेड अजित की बात अजित सिंह का नाम आते ही वहाँ पर बैठे सारे लोग अजित की यादो में खो गए कामरेड सच्चिदा भाई लगे बताने कि कामरेड अजित बहुत ही मेधावी और कम्युनिस्ट मूवमेंट के समर्पित नेता रहे है उनके बड़े किस्से है एक बार की बात है कामरेड अजित अपने धुनकी में लुंगी और शर्त पहने मुंह में शिव पानवाले का पान घुलाते हुए पुरानी कोतवाली की तरफ जा रहे थे | प्रभु चाय वाले के यहाँ पर भाई वीरेन्द्र मिश्र जी झक्कास सिल्क का कुरता पहने अपने लोगो के बीच अपना भाषण चालु किये थे तभी उनकी नजर कामरेड अजित सिंह पर पड़ गयी कामरेड को सुनाते हुए लगे कहने कि देखिये यह आदमी पागल है लुंगी – कुरता में चौक पर टहल रहा है , जब वीरेन्द्र मिश्रा लगातार यही बात बोल रहे थे अचानक कामरेड अजित ने अपने पान के पीक से उनका कुरता रंग दिया वीरेन्द्र भाई लगे चिल्लाने तब कामरेड अजित ने कहा तुम ही तो बोल रहे थे मैं पागल हूँ | तभी कामरेड अरुण सिंह बोल पड़े गजब थे अजित सिंह एक बार का किस्सा है नेता विजय प्रकाश सिंह ने हमारे साथ राजनीति कर दिया हमे कोपरेटिव बैंक ला चेयरमैनी से हाथ धोना पडा था उस दिन कामरेड उस दिन अपने में नही थे दूसरे दिन जब मैंने उनसे पूछा तो लगे कहने आपके पलटने पे मैं दुखी होऊ की विजय प्रकाश सिंह के जितने पे खुशिया मनाऊ जब मैं विजय प्रकाश सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया उसी के एक दिन पहले विजय प्रकाश सिंह मुझसे मिलने आये और कहे की सबसे आखरी में दस्खत करिएगा मैं तो दस्तखत बना चूका था इस बात को बताने के लिए मैंने कामरेड का चुनाव किया उन्ही के माध्यम से मैंने यह खबर विजय प्रकाश तक भेजी | कामरेड अनिल राय लगे बताने कि गजब के थे कामरेड अजित जानते है अजित उस समय कक्षा छ के विद्यार्थी थे उनके पिता उस समय नगर पालिका जौनपुर के इ ओ थे अजित वही पढ़ते थे | अजित के पापा काफी शौक़ीन थे खाने पिने के उस जमाने में अग्रेजी शराब के बोतल पर कारक लगी होती थी कामरेड अजित सुई के सीरिंज से असली माल निकलकर पानी मिला देते थे पर एक बात है कामरेड अजित जैसा नेता मिलना मुश्किल है अगर अजित को यह लत नही लगती तो आज अजित बहुत बड़े नेता होते | लेखक- सुनील कुमार दत्त (कबीर), स्वतंत्र पत्रकार एवं दस्तावेजी फोटो छायाकार