Sunday, December 22, 2024
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अतीत के झरोखों से आजमगढ भाग- 9आजम शाह -अजमत शाह

अतीत के झरोखे में आजमगढ़ — vol – 9

आजमशाह — अजमतशाह
उत्तरी सीमा पर सरयू ( घाघरा ) के उस पार बढयापार – महुबापार का स्टेट काफी पहले से मेहनगर का दुश्मन था | हरिबंश सिंह के भाई जयनरायन सिंह उर्फ़ खडग सिंह पहले इस क्षेत्र के कब्जेदार राजाओं को युद्ध में परास्त कर चुके थे – पराजय का वह घाव आज तक सुखा नही था , उन्होंने देवारा इलाके में बहुत दूर तक कब्जा जमाना प्रारम्भ कर दिया | नदी के आस – पास ( बनकट तेनुआ बिजरवा ) घने जगल में सेनापति उदयसिंह ने सरयूपार की सेना से लड़कर युद्ध जीत लिया | इस युद्ध में उनका जवान बेटा पहाड़ सिंह भी शामिल था , संयोग से उसे कुछ दुश्मनों ने घर लिया , पहाड़ सिंह वहाँ से दक्षिण की तरफ भगा और तमसा के पश्चिम की घनी बाग़ में मार डाला गया | देवारा क्षेत्र की जमीन पुन: कब्जे में तो आई लेकिन पहाड़ सिंह की मौत ने बहुत बड़ा घाव कर दिया – मेहनगर के राजवंश पर | आजमशाह , यद्धपि तब बहुत अनुभवहीन थे , उन्होंने कोई युद्ध नही किया था लेकिन अजमतशाह के साथ मिलकर उन्होंने पहाड़ सिंह का बदला लेने की ठानी | उदयसिंह के निर्देशन में उन्होंने नयी रणनीति तय की , सेना को पुनर्व्यवस्थित किया | सरयू पार के राजाओं को हमले की तारीख से आगाह भी कर दिया गया था – इससे शत्रु दर गये और उत्तर – पूर्व देवरिया – पडरौना की तरफ भाग गये आजमशाह ने पीछा नही छोड़ा और नारायणी नदी के इलाके में दुश्मनों को घेर लिया | दोनों भाइयो ने अपूर्व रणकौशल दिखाया और पहचान – पहचान करके पहाड़ सिंह के हत्यारों की हत्या की | वे युद्ध से लौटे और जिस स्थान पर पहाड़ सिंह को मारा गया था , वही स्मृति स्थल घोषित करके एक मुहल्ला बसाया जिसका नाम आज पहाडपुर है | इस युद्ध में जहाँ आजमशाही रुतबा बढ़ा , वही टप्पा अठैसी के 28 गाँवों के ठाकुरों का मनोबल गिरा | उन्होंने सगठित होकर कब्जेदारी को बधा दिया मेहनगर की दुरी इनको दबाने में बाधक रही | बीमार भवानी कुवँर ने हरिबंश सिंह की स्थगित किला – निर्माण की योजना याद दिलाई और जोर दिया कि जागीरदारी के मध्य में कही किला बनवाया जाए आजम – अजमत ने पूर्व सैन्य वृत को जैसा का तैसा रहने दिया और दो नये सेनापतियो का चुनाव किया | 1 – जलंधर सिंह 2- बाजबहादुर खा | ये बड़े रणबाकुरे और तेज दिमाग के थे – ऐसा नारायणी नदी के युद्ध में देखा गया था और तमसा तट की हरिबंश सिंह की कोट ( बड़ापुल ) पर डेरा जमाया | आजमशाह स्वंय घोड़े पर बैठकर उचित भूमि का जायजा लेते रहे |
प्रस्तुती – सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक

सन्दर्भ – आजमगढ़ का इतिहास – राम प्रकाश शुक्ल ‘निर्मोही ‘

विस्मृत पन्नो पर आजमगढ़ -हरिलाल शाह

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