अतीत के झरोखे से आजमगढ़
गौतम वंश की अंतिम कड़ी जहाँयार खां
राजसत्ता के भी अजीब और अनोखे खेल हुआ करते है , ऐसे सिंहासन पर कौन बैठना चाहेगा जिस राजसिंहासन पर खून , , कत्ल , हिंसा का भविष्य हो , ढेर साड़ी अनसुलझी समस्याए हो मच्च्र्रो की तरह भिनभिनाती दुश्मन हो और प्रजा सन्नाटे सी खामोश रहती हो | आजम खां के छोटे भाई थे जहाँयार खां जो स्वभाव से विनम्र , अंतर्मुखी और धर्म प्रयाण थे | बड़े भाई के राजकाज में वे प्राय: अलग ही रहते थे | भाई की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें लगता था की आजमशाही पचासों साल चलेगी इसलिए अपनी दिनचर्या में व्यस्त वे किले में ही रहते और प्रबंध इत्यादि में वे बहुत रूचि नही दिखाते थे | भाई की हत्या से वे भीषण रूप से आहत हो गये | अवध के नवाब का करार ज्यो का त्यों था , उन्हें उम्मीद थी कि उत्तराधिकारी शासन को उसी परिवारी पर चलाते रहेंगे जैसा अजमशाह द्दितीय ने बना रक्खा था | गद्दी नशीनी के लिए वे अन्य मनस्क थे लेकिन उनके समय के कुछ चुनिन्दा रईसों और व्यापारियों ने सहयोग देने का वादा किया और गौतम राजवंश की कड़ी को टूटने से बचाने को कहा , तब किसी तरह जहाँयार खां राजी हुए | उत्तराधिकारी के तत्कालीन नियमानुसार प्रजा ने उन्हें राजा घोषित कर दिया और सुचना अवध के नवाब के पास भेज दी गयी |
लेकिन जहाँयार खां के दब्बू स्वभाव की बात नवाब तक पहुच गयी थी और उन्हें संदेह हुआ कि जहाँयार खां राज्य की जिम्मेदारी उठा नही पायेंगे | वसूली की गति मंद थी और जहाँयार खां बहुत बड़े दानी थे | उन्होंने हनुमानगढ़ीके महंत तुलसीदास को 25 बीघा माफ़ी मंदिर खर्च के लिए दे दिया | ह्र्जुन मिश्र को 51 बीघा माफ़ी प्रदान किया | राज्य में कर्जदारी फिर सर उठाने लगी थी वे नियम – कानून की अवहेलना हो रही थी तब आजमशाह की हत्या की जांच के बहाने नवाब ने अपने वजीर इलिच खां को भेजा | इलिच ने गंभीरता से राज्य प्रबन्धन का अवलोकन किया | हत्या की जांच को दरकिनार करके वह राज्य – संचालन के विषय में गहराई से सोचने लगा | आजमगढ़ जागीर के विस्तार तथा सञ्चालन योग्यता की परख में उसने जहाँयार को अनुपयुक्त पाया गौतम वंश राजवंश एक प्रकार टूट चूका था | मौजूदा परिस्थिति में कोई उत्तराधिकारी ऐसा नही था जिसे राज्य की बागडोर सौपी जा सकती | आजमशाह की हत्या हुए अभी सात – आठ महीने ही हुए थे की इलिच खां ने जागीर को च्क्लेदारी प्रथा को सौपने का प्रस्ताव कर दिया | यह एक प्रकार से गौतम राजवंश का घोर अपमान था इससे जहाँयार खां टील्मिला उठे | 1772 ई० में आजमशाही जागीर को चकलो को समर्पित करने की घोषणा हुई और उसी वर्ष एक रात जहाँयार खां किले से गायब हो गये | वे कहा गये , किधर गये इसकी काफी खोजबीन की गयी लेकिन वे ज़िंदा या मुर्दा नही मिले | किला सूना , बेजान और भुतहा हो गया | बाद के उत्तराधिकारियों को इतिहासकारों ने भुला दिया वंश रह गया उनका इतिहास वक्त की थपकी पाकर सो गया | दौलत खां से प्रारम्भ होकर गौतम राजवंश की दर्दनाक कहानी जहाँयार खां तक आकार पूर्ण विराम पा गयी |
प्रस्तुती सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक
असन्दर्भ – आजमगढ़ का इतिहास – राम प्रकाश शुक्ल निर्मोही
सन्दर्भ – विस्मृत पन्नो पर बिखरा आजमगढ़ – हरिलाल शाह