Sunday, September 8, 2024
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अतीत के झरोखों से आजमगढ -आजमगढ शहर का उदभव

अतीत के झरोखो से आजमगढ़ –

आजमगढ़ शहर का उदभव

आजमशाह के द्वारा आजमगढ़ नगर को व्यवस्थित बाजार का पहला स्वरूप दिया गया | इन्होने कटरा का निर्माण कराया | कटरा ऐसी दुकानों को कहते है जो काट – काट कर छोटे – छोटे रूप में बनाई जाती है और एक लाइन में विभिन्न वस्तुओ की दुकाने होती है | पहले पहल दुकाने यही बनी | इससे आगे सब्जी के दूकानदार अपनी दुकाने लगाते थे | चकलेदारो के शासन में मुख्य मार्ग प्रमुख हो गया और दुकाने इसके इर्द गिर्द बनने लगी | सब्जीमंडी पर सब्जी की दुकाने बीसवी शताब्दी के शुरू तक थी वैसे आज भी इस जगह को सब्जीमंडी ही कहते है , लेकिन यह कोई मुहल्ला नही है |
नगर के विकास की इस योजना में एक बात ऐसी हो गयी कि आजम – अजमत के रिश्ते में थोड़ी खटास आ गयी | पाण्डेय बाजार पुरोहित गौरी शंकर पाण्डेय को आवंटित था लेकिन तब वह पाण्डेस पुरवा था जो कोडर तक फैला हुआ था | उसके उत्तर आजमबाग़ था जो बाद में अराजीबाग हो गया | गौरीशंकर ने पाण्डेयपुर का पश्चिमी हिस्सा अपने मामा के लड़के बद्री दुबे को लिख दिया | पाण्डेयपुरवा का बद्री को दिया हुआ भाग बद्री का पुरवा कहा जाता था ( यही बाद में ”बदरका ” कहा जाने लगा | इसके एक बड़े प्लाट पर अजमत खा ने ईदगाह के लिए दिया , पुराना ईदगाह होबर्ट स्कूल ( अब गंगाराम जू हां स्कूल ) के सामने पश्चिम कर्बला के मैदान में था | इस पर नाराज होकर आजमशाह ने कोल पाण्डेय में से दो चक दो लोगो को आवंटित कर दिया 1- गौरी ( शंकर ) चक 2- चक बाजबहादुर | इस बात को आजमशाह उस समय उल्ट नही सके जब वे सत्ता में आये कयोकी आजमशाह की जितनी दुखद मृत्यु हुई थी उससे जनता बहुत दुखी थी और लम्बे समय तक लोग आजमशाह के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नही थे | परिवार में तनाव आ गया था और अजमतशाह अलग रहने की बात सोचने लगे | उन्होंने उत्तरी भाग का स्थान पसंद किया जिसकी दुरी आजमगढ़ से बहुत ज्यादा नही थी | इस स्थान पर अजमतगढ़ की नीव पड़ी , अजमतशाह पंडित बलदेव मिश्र के साथ यहाँ रहने लगे जो एक छोटी रियासत के रूप में हुई |
गौतम राजवंश से चिपके हुए अभिशाप से आजमशाह भी नही बच पाए 1677 में आजमशाह मृत्यु को प्राप्त हो गये | और अजमत शाह 1680 से अजमतपुर कोडर में रहने लगे, ग्यारह वर्षो में कुछ लापरवाही से और कुछ औरंगजेब के प्रति दुर्भावना से खिराज की रकम बाकी रह गयी जमा नही हुई | औरंगजेब ने फौजदार छबीले राय को खिराज वसूलने के लिए भेजा तो अजमत शाह वे हरिबंशपुर की कोट में छिप गये छबीले राय ने उन्हें घेर लिया , तब छल से उन्होंने कोट में बुलाकर स्वागत सत्कार कर दुसरे दिन रकम देने का वायदा किया रात्री में फाटक बंद करा ताला लगवा दिया और पलायित हो गये | इसकी सुचना दिल्ली तक पहुची तो इलाहबाद का सूबेदार हिम्मत खा को भेजा गया उसने अजमत शाह को घेर लिए युद्ध में अजमत शाह की हार हुई और वे अपने चारो बेटो और गुरु बलदेव मिश्र के साथ घोड़े से उत्तर को भागे | उस पार तो दुश्मनों का इलाका था अत: घोड़े सहित नदी में कूद पड़े और डूब गये लाश बरामद हुई और करतालपुर में उन्हें मिटटी दी गयी | शाही सेना हरिबंशपुर लौट आई और कैद छबीले राय को मुक्त किया इस घटना की सुचना दिल्ली तक गयी इस पर औरंगजेब को बहुत गुस्सा आया खिराज तो वसूल नही हुआ , फौजदार छबीले राय को धोखा देकर कैद किया गया , अजमत खा के जानशीन चारो 1-बेटे इकराम खा 2-महावत खा 3-सरदार खा 4- नौबत खा भी भाग गये | आजमशाह के प्रति जो नृशंस व्यवहार औरंगजेब ने किया था , अजमतशाह ने उसकी भरपाई कर ली भले ही उनकी जान चली गयी चारो लडको ने फिर लौटकर अजमतगढ़ जाना उचित नही समझा वो आजमगढ़ क्षेत्र में आकर भूमिगत हो गये | इस जमाने में कई गाँवों को मिलकर बल्कि विस्तारित खंड को ”करियात” के नाम से जाना जाता था | आजमगढ़ का सम्पूर्ण हिस्सा ‘करियात ‘ फुलवरिया कहा जाता था जो निजामबाद तक फैला था आबादी कम थी और अपने प्रजा के प्रति बलिदान की भावना जबर्दस्त थी इसलिए मुगल सैनिक टोह नही लगा पाए अजमत शाह के बेटो का शाही सेना की एक टुकड़ी अब हरिबंशपुर में तैनात थी किसी मुखबिर ने अंतत: उन लोगो का पता दे ही दिया | तब सेना ने गाँवों को घेर लिया | इकराम खा और महावत खा तो निकल भागे पर सरदार खा और नौबत खा पकड लिए गये उन्हें कैद कर लिया गया शरण देने वाले चार गाँव पर शाही सेना ने बड़े जुल्म किये घर – पशु और फसलो को तबाह कर दिया | जब इकराम खा ने पुन: जागीर सम्भाली तब इन गाँवों का नामकरण शरणागतो के नाम पर रक्खा | जहा वे आश्रय पाए थे उसे आज भी इक्राम्पुर ( एकरामपुर ) कहा जाता है | महावत खा के छिपने के गाँव को महावतपुर ( आज सरलता और शब्द रूचि के चलते इसे मोहब्बतपुर कहा जाता है सरदार खा के छिपने की जगह वाले गाँव को स्र्दाराराज्पुत और नौबत खा के आशर स्थल को नौबतपुर कहा जाता है | ये सभी गाँव शाहगढ़ के आस पास ही है |

प्रस्तुती सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक
सन्दर्भ – आजमगढ़ का इतिहास – राम प्रकाश शुक्ल निर्मोही
—— विस्मृत पन्नो पर बिखरा आजमगढ़ – हरिलाल शाह

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