Tuesday, December 10, 2024
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लहू बोलता है -सैयद शाहनवाज कादरी ने स्वदेशी आंदोलन के समय कहा था

लहू बोलता भी हैं — सैय्यद शाहनवाज कादरी

स्वदेशी आन्दोलन –
स्वदेशी आन्दोलन का मकसद था ब्रिटेन में बने सामानों का बाईकाट करना और भारत में बने सामानों को बढावा देकर ब्रिटेन को नुकसान पहुचाना | इससे हिन्दुस्तानियों को अपने रोजगार का मौक़ा भी मिला | उसी दौरान बंगाल के बटवारे के खिलाफ माहौल गरम होने लगा था | बंगाल के आसपास ये दोनों आन्दोलन एक साथ चले | इससे अंग्रेजी हुकूमत को काफी नुक्सान हुआ | इस आन्दोलन की कामयाबी को देखते हुए इसके लिए बनाई गयी कमेटियो को महात्मा गांधी के कहने पर जंगे – आजादी के मूवमेंट को तेज करने के लिए कांग्रेस के साथ शामिल कर दिया गया | इस आन्दोलन को मौलाना अबुल कलाम आजाद , अरविन्द घोष , रविन्द्र नाथ टैगोर बाल गंगाधर तिलक की मुश्तरका कयादत माना जाता है | दिल्ली और आस – पास के इलाको में सैय्यद हैदर रजा की कयादत ने इस आन्दोलन को बखूबी अंजाम दिया | यह आन्दोलन सन 1905 — 1911 तक चला |

होमरूल मूवमेंट
अंग्रेजो ने काग्रेसी नेताओं और आंदोलनकारियो को यह यकीन दिलाया था कि पहली जंगे – अजीम में अगर भारत के लोग मदद करते है , तो जंगे – अजीम के बाद ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा | इस लालच में उस वक्त कांग्रेस और बाकी तंजीमे फँस गयी जो जंगे – आजादी का हिस्सा थी | इस पर पूरी कमेटी दो हिस्सों में बटती दिखाई देने लगी | एक गुट इससे मानने पर अड़ा हुआ था , लेकिन दुसरा इसे ब्रिटेन की चालबाजी मानता था इसीलिए इसे मानने से इनकार करके आन्दोलन का दूसरा रास्ता खोजने पर जोर देता था | यही होमरूल मूवमेंट की वजह बनी | सन 1915 – 1916 के बीच होमरूल लीग बनी | पुणे में होमरूल लीग की कयादत बाल गंगाधर तिलक ने की जबकि मद्रास में होमरूल लीग एनीबेसेंट की कयादत में बनी | बाद में ये दोनों ही कांग्रेस के साथ मिल गयी | इस आन्दोलन का मकसद असलहो या खून – खराबे के बिना ही स्वराज्य हासिल करना था | इस आन्दोलन में मुसलमानों ने अहम् किरदार निभाया था | हालाकि यह आन्दोलन भी और आंदोलनों की तरह बहुत असरदार नही रहा |

मेरठ बगावत के एक महीने बाद –

देवघर बिहार के रोहिणी में 12 जून 1857 को पांचवी देशी घुड़सवार सेना के कुछ जवानो ने बगावत कर दी | बिहार सूबे में सन 1857 की यह पहली वारदात थी | बागी सैनिको ने नौकरशाहों से बदला लेने के तहत मेजर मैकडोनाल्ड के घर रात 9 बजे हमला बोलकर वहां मौजूद लेफ्टिनेंट सर नार्मन लेसली और डाक्टर ग्रांट को तलवार से जख्मी करके मार डाला | इस हमले में बुरी तरह घायल मेजर मैकडोनाल्ड बच गया | इस अचानक के हमले से अंग्रेज अफसर बौखला गये | सेना की जांच में बागी सैनिको की कयादत करने वालो के रूप में जो नाम सामने आया , वह मेजर इमाम खान का था | वक्ती तौर पर इमाम खान तो पकड में नही आये , लेकिन उनके साथ के तीन सैनिक सलामत अली , अमानत अली और शेख हारून गिरफ्तार कर लिए गये जिन्हें मेजर मैकडोनाल्ड ने खुद ही कोर्ट – मार्शल किया और सरकार से आडर्र लिए बिना ही उन्हें फाँसी देने का हुकम दे दिया | मेजर ने तीनो क्रांतिवीरो को हाथी पर खड़ा करके पेड़ पर लटकाने के लिए खुद ही उनके गर्दन में रस्सी बाँधी और हाथी को दौड़ा दिया | इस तरह उन तीन क्रांतिवीरो की शहादत हुई | लेकिन हर कोशिश के बाद भी मेजर इमाम खान को अंग्रेज गिरफ्तार नही कर पाए | सरकार ने उनकी गिरफ्तारी पर इनाम का एलान भी कर रखा था | मेजर इमाम खान ने कुछ और सैनिको को साथ लेकर देवघर में लेफ्टिनेंट एस .सी .ए. कपूर के घर पर हमला बोलकर कपूर और असिस्टेंट कमिश्नर आर .ई. रोनाल्ड को मौत के घाट उतार दिया और बंगले में आग लगा दिया | इस हमले में मौजूद तीसरा अफसर ले .रैनी घायल हालात में बच निकला | उसे दो सैनिक डोली में बैठाकर दूर एक गाँव में लेकर गये , जहाँ पर उन्ही सैनिको की मदद से रैनी अपने हेडक्वाटर पहुचा | मेजर इमाम खान के बारे में इसके बाद कहीं कोई खबर नही मिलती | बिहार में सन 1857 की बगावत की कुछ किताबो में सिर्फ एक जगह मेजर इमाम खान को गोली मारे जाने की बात कही गयी लेकिन तारीख और महीना वहां अंदाजन जुलाई सन 1857 लिखा गया हैं |
भागलपुर में भी क्तुबर सन 1857 में सैनिको की बगावत की खबर फैली | अंग्रेजी फ़ौज के अफसर शहादत अली का कत्ल हुआ , लेकिन उसके बगावत को दबा दिया गया | इस कत्ल के इल्जाम में भागलपुर के ही अहदु खान , वुद्घु खान , बहादुर खान , याद अली गिरफ्तार किये गये | बगावत में शामिल होने और अंग्रेज अफसर के कत्ल के इल्जाम में चारो को 10 व 12 अक्तूबर सन 1857 को फांसी दे दी गयी | इसी केस में पांच गैर मुस्लिम सैनिको को भी फाँसी की सजा हुई थी |
मुंगेर जिले के मोहनपुर गाँव में पठान जमींदारों ने अगस्त सन 1857 में अंग्रेजी जुल्म के खिलाफ बगावत कर दी | उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करके कचहरी पर हमला किया और सरकारी दस्तावेजो को लूटने के साथ ही वहां आग लगा दिया | इस बगावत के इल्जाम में दस लोग गिरफ्तार हुए उनके उपर मुकदमा चलाया गया , जिसमे करीम खान की पुलिस पिटाई से जेल में ही मौत हो यी | रज्जू खान को उम्रकैद की सजा हुई | इन पठानों के साथ एंव पांच और गैर मुस्लिम कारिंदों पर ही मुकदमा चला और उनमे से दो को 14 – 14 साल और दो को को 9-9 साल की सजा हुई |
प्रस्तुती – सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार -समीक्षक ,

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