कांग्रेस पार्टी में अनावश्यक विलम्ब से निर्णय लिये जाते हैं, जिसके कारण विलम्ब से लिए गये निर्णय का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। याद कीजिये अगर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के दबाव में न आकर ज्योतिरा राजे सिंधिया को तत्समय मुख्यमंत्री बना दिया गया होता तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को यह दिन नहीं देखना पड़ता। इसी प्रकार सचिन पाईलेट की अगुवाई में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद तत्समय ही अशोक गहलौत की जगह सचिन पायलेट को मुख्यमंत्री बना दिया गया होता तो राजस्थान की तस्वीर दूसरी होती । दो-तीन लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी दिग्विजय सिं को तो राज्यसभा भेज दिया गया, साथ ही उन्ही के कहने पर विवेक तन्खा जैसे नकारा नेता को भी राज्यसभा भेज दिया गया, दिग्विजय सिंह, विवेक तंखा जैसे अयोग्य और अलोकप्रिय नेता को राज्यसभा भेजना चाहिये था , नतो उनकी बातों को सुनना ही चाहिये था। नतीजा यह हुआ कि बुजुर्ग कमलनाथ और अलोकप्रिय दिग्विजय कांग्रेस को कोई विजय दिला सके और नये प्रदेश संगठन को इन दोनों ने कोई सहयोग ही दिया, नतीजा कांग्रेस मध्य प्रदेश में जीरो हो गयी । उडी़सा में शरत पटनायक जबसे प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, मेहनत कर रहे हैं हालाकि वह स्वयम चुनाव हार गये हैं , बिहार में पप्पू यादव को बिहार की कमान सौंप देनी चाहिये । छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल में भूपेश बघेल और अधीर रंजन की हार के बाद उनके उल्टे- सीधे बयानों ने उनका ही नुक्सान किया है। इसके अलावा उनकी अध्यक्ष रहते उनकी पश्चिम बंगाल में निष्क्रियता ने भी कांग्रेस का बडा़ नुक्सान किया है और दो सीटों वाली पार्टी अब एक सीट पर सिमट गयी है। रही बात आंध्र प्रदेश में वाई शर्मिला रेड्डी की तो उन्हे अधयक्ष बनाये जाने काफी विलम्ब कर दिया गया था, ऐसे में उनके कामों का विश्लेषण सम्भव नहीं है इसके अलावा अब वहां टीडीपी की सरकार बन।रही है और उनके भाई जगन मोहन रेड्डी भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव बुरी तरह हार चुके हैं और अब परिस्थितियां काफी जटिल हो चुकी है अब शर्मिला की जगह किसी मेहनती और मजबूत नेता को शर्मिला की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना आवश्यक हो गया है ।-सम्पादकीय-News51.in
मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार, बंगाल और छत्तीशगढ में प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में परिवर्तन आवश्यक
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