Sunday, October 6, 2024
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भगत सिंह -व्यक्तित्व और विचारधारा

— भगत सिंह = व्यक्तित्व और विचारधारा =

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अंग्रेज साम्राज्यवादियों के विरुद्द अपने साथियों के साथ 1920 में उनके सता के विरुद्द डटकर मोर्चा लेना भारतीय इतहास के पन्नो पर एक गौरवशाली अध्याय बना रहेगा | इन तरुण क्रान्तिकारियो का जीवन इस देश के लिए बड़े से बड़ा आत्म – बलिदान आज के नवयुवको के लिए एक शानदार मिसाल है | एक उच्च आदर्श के लिए उनकी अडिग निष्ठा और उस आदर्श को पूरा करने की राह में झेली गयी मुसीबतों की कहानी , देशवाशियो को सदैव विदेशी आधिपत्य , या जनता के किसी भी प्रकार के आर्थिक बंधन , का नामो निशाँ तक मिटा देने के लिए संघर्ष करने को हमेशा प्रेरित करती रहेगी |

भगत सिंह के क्रांतिकारी कार्यो और उनके विचारों का महत्व पूरी तौर पर तभी समझा जा सकता है , जब हम उन्हें भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन की उसी मंजिल की पृष्ठभूमि में देखे , जिसमे कि वह उस समय थे | मुख्यता: वह प्रथम विश्व युद्द के बाद देश में चलने वाले जनता के अंग्रेज विरोधी संघर्षो की भारी उथलपुथल के समय की ही उपज थे | जारशाही के साम्राज्य पर रूस के मजदूरो और किसानो द्वारा सफल हमला बोलने के बाद एशिया में जो साम्राज्य — विरोधी की बाढ़ आई थी , उसमे आवाम का शामिल होना स्वभाविक ही था |

— उनके बालपन में जनता के संघर्ष

जनता का गुस्सा ” रौलेक्ट एक्ट ” के खिलाफ था , जिसके द्वारा अंग्रेज सरकार ने यह कोशिश की थी कि प्रथम विश्व — युद्द के समय की असाधारण दमनकारी धाराओं को युद्द के बाद भी जारी रखा जाए | सारे देश में उथलपुथल थी , प्रदर्शन हो रहे थे , जगह – जगह हडतालो की बाढ़ आ गयी थी | बम्बई की हडतालो में सूती मिलो के एक लाख से भी ज्यादा मजदुर काम छोड़कर सडको पर आ गये थे | सरकार जनता पर भीषण दमन का चक्र चला रही थी | अप्रैल सन 1919 में अमृतसर के जलियावाला बाग़ में जनरल डायर ने सभा में एकत्र हुए जनसमूह पर गोलिया बरसाकर सैकड़ो निहत्थे आदमियों , औरतो तथा बच्चो का कत्ल कर दिया था , पर आन्दोलन रुका नही चलता ही रहा |

कांग्रेस ने जनता के इस उभार का नेतृत्त्व सम्भाला , और सरकार से अहिसा पूर्वक असहयोग करने के लिए जनता का आह्वान किया | ” एक साल में स्वराज ” के गांधी जी नारे ने समस्त जनता में जूझ पड़ने की भावना पैदा कर दी थी | कचहरियो , स्कूलों और कालेजो का बायकाट ( बहिष्कार ) बहुत ही कारगर था | आन्दोलन की व्यापकता ने अंग्रेज शासको के हाथ – पैर फुला दिए | फरवरी सन 1922 में राज्य सचिव को इंग्लैण्ड तार भेजते हुए वाइसराय ने ” गम्भीर संभावनाओं ” का डर जाहिर किया था , और कहा था कि ” वह किसी भी तरह इस तथ्य की अहमियत को कम नही करना चाहते कि इस परिस्थिति के कारण गहरी चिंता पैदा हो गयी है | ”

सरकार तो परिस्थितियों को इतना गम्भीर समझ रही थी , फिर भी गांधी जी ने तीन दिन के बाद आन्दोलन को वापस लेना ही ठीक समझा | उत्तर प्रदेश के चौरी – चौरा के किसानो ने पुलिस थाणे पर हमला बोलकर उसे जला दिया था | 22 पुलिस वाले मौत के शिकार हुए थे | ” जनसमूह के इस अमानुषिक कृत्य ” के कारण ही गांधी जी ने पैर पीछे हटाने का नारा दिया | चौरी – चौरा की घटना पर इस प्रकार की प्रतिक्रिया होना जाहिर करता है कि आन्दोलन के क्रांतिकारी फैलाव को देखकर कांग्रेसी नेताशाही घबरा उठी थी |
तेजी से आगे बढती हुई राष्ट्रीयवादी ताकतों को इस प्रकार यकायक रोक देने का फल यह हुआ कि कुछ हलको में जनता की भावनाए साम्प्रदायिक घृणा की गलत दिशा में बढने लगी , और कांग्रेसी नेताओं का एक बड़ा हिस्सा देश की मुक्ति का रास्ता , खतरे से खाली वैधानिक संघर्षो में ही देखने लगा असहयोग आन्दोलन में आगे बढ़कर हिस्सा लेने वाली बड़े उम्र के वालंटियरो के लिए यह भ्रम टूटने का तथा गहरे आत्म – चिंतन का समय था | कांग्रेस ने आन्दोलन क्यों रोक दिया ? वह भी ठीक उस समय जबकि लग रहा था कि उससे देश को स्वराज मिल जाएगा ? क्या देश इतना असहाय था कि अमृतसर गुजरावाला और एनी जगहों पर होने वाले हजारो देशवासियों के कतल का बदला लेने की भी उसमे ताकत नही थी ? क्या विदेशी शासको के खिलाफ दृढ़ता से खड़े होने के लिए कांग्रेस बहुत ही कमजोर और समझौतावादी नही थी ? स्वतंत्रता के तरुण सैनिक इन्ही सवालों में उलझकर क्रांतिकारी कार्यवाही की ओर खीचे थे | उनकी क्रांतिकारी कार्यवाही भी अपना कुछ निश्चित और स्पष्ट नही थी | तमाम प्रान्तों में उन्होंने अपने आपको छोटे – छोटे ठोस दलों में संगठित कर लिया | भगत सिंह पंजाब के ऐसे ही एक दल के सदस्य थे | क्रमश: भाग एक

प्रस्तुती — सुनील दत्ता — स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

साभार ——— भगत सिंह व्यक्तित्व और विचारधारा == लेखक गोपाल ठाकुर

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