भगत सिंह का दर्शन — क्रांति और बमो के संदर्भ में
भगत सिंह क्रान्ति को किस रूप में समझते थे ?
दिल्ली सेशन जज द्वारा आजन्म कैद की सजा के फैसले के खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में अपनी अपील की सुनवाई के समय उन्होंने अदालत में कहा था : — ” क्रान्ति संसार का नियम है , वह मानवीय प्रगति का रहस्य है | लेकिन ” उनमे रक्तरंजित संघर्ष बिलकुल लाजिमी नही है और न उसमे व्यक्तिगत प्रति — हिंसा की ही कोई जगह है | वह बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नही है |
लेकिन तब भगत सिंह और उनकी पार्टी द्वारा संगठित साण्डर्स गोलीकांड और तमाम बमो के विस्फोटो का क्या अर्थ लगाया जाना चाहिए ? साण्डर्स से असेम्बली के बम फोड़ने के बाद बाटे गये परचे इन कृत्यों के कारणों को बताते है | दिल्ली लाहौर की अदालतों में दिए गये भगत सिंह के वक्तव्य में उन्हें विस्तृत रूप से रखा गया था | उन्होंने बिलकुल स्पष्ट तौर पर कहा था वह और उनके साथी विदेशी शासन के कसमसिया दुश्मन होते हुए भी किसी व्यक्ति के प्रति अंधी और कुत्सित घृणा की भावना से प्रेरित नही थे |
बटुकेश्वर दत्त के साथ , एक संयुक्त वक्तव्य में उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषित किया था :: ” हम मानवीय जीवन को अकथनीय पवित्रता देते है | मानवता की सेवा किसी को हानि पहुचाने की अपेक्षा शीघ्र ही अपने स्वंय के जीवन को होम कर देगे | हम समाजवादी सेना के भाड़े के सैनिको के तरह नही है , जिन्हें बिना किसी अफ़सोस के हत्या करने का अनुशासन सिखाया जाता है | हम मानवीय जीवन का आदर करते है जहा तक बनता है उसे बचाने के कोशिश करते है | इस पर भी , हम असेम्बली भवन में जानबूझकर बम फेकने के काम को स्वीकार करते है | तथ्य स्वंय ही अपनी कहानी कहते है और उद्देश्यों की परख उस काम प्रणाम को देखकर ही करनी चाहिए , न कि कल्पित परिस्थितियों और मनमानी धारणाओं के आधार पर |
” सरकारी पक्ष के विशेषज्ञ के सबूतों के बावजूद , असेम्बली भवन में फेके जाने वाले बमो से आधे दर्जन से भी कम लोगो को कुछ खरोचे भर लगी यदि उन बमो में कुछ ज्यादा क्लोरेट पोटाश का पूत दे दिया जाता और जेल किस्म की पिक्रेट ( एसिड ) का भी मिश्रण होता , तो उनसे चारो ओर का टीम — ताम ही चकनाचूर हो जाता और विस्फोट के कुछ गजो के दायरे में तमाम लोग धाराशायी हो जाते | यदि , उन बमो में कुछ दूसरे अधिक विस्फोटक प्रदार्थ व नाशकारी चहरे या सुइया आदि भी मिला दी जाती तो वह विधान सभा के अधिकांश सदस्यों को खत्म करने के लिए काफी होते | इस पर भी हम उन्हें अफसरों के बैठने के स्थान पर फेंक सकते थे जहा बहुत ख़ास — ख़ास लोग ठसाठस भरे थे | और अंत में हम उन बमो का निशाना सर जान साइमन को भी बना सकते थे जो उस समय अध्यक्ष की गैलरी में बैठा था , जिसके अभागे कमिशन से सभी जिम्मेदार आदमी नफरत करते थे | लेकिन यह सब कुछ तो हमारा उद्देश्य नही था | बमो ने ठीक उतना ही काम किया जितने के लिए वे बनाये गये थे | जिसे चमत्कार कहा जाता है वह कुछ और नही , एक समझा बुझा हुआ उद्देश्य ही था , जिसके कारण वे हानिरहित स्थानों पर ही फेंके गये थे | ”
अपने मुकदमे में बहस करते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि विठ्ठल भाई पटेल , पंडित मोतोलाल नेहरु , पंडित मदन मोहन मालवीय तथा दूसरे आदरणीय नेताओ पर संहारक बम फेकने की बात वे सपने में भी नही सोच सकते थे — यह अलग बात थी कि क्रांतिकारी उन नेताओं के विचारो से सहमत नही थे | उनके साधनों में विश्वास नही करते थे | भगत सिंह ने मिस्टर जसिस्ट फोर्ड से पूछा था : ” यदि एक आदमी इस तरकीब से एक बम बनाता है कि उससे किसी को भी कोई गम्भीर चोट नही लग सकती और वह उसके फटने के वक्त ज्यादा से ज्यादा सावधानी बरतता है कि कोई ऐसी चोट न लग सके , तब भी क्या वह आदमी हत्या का पर्यटन करने का अपराधी होगा ?
मिस्टर फोर्ड : ” तुमको यह साबित करना होगा कि वह बम इसी प्रकार का था , और उसको ऐसे ढंग से फेंका गया था कि किसी आदमी के जीवन को खतरा पैदा न हो | ”
भगत सिंह : ” हम उन बमो की सीमित शक्ति जानते थे , और किसी को भी चोट न लगने देने के लिए हमने हर संभव सावधानी बरती थी | ”
उन्होंने आगे कहा कि जनरल दायर ने जालियावाला बाग़ में सैकड़ो आदमियों की हत्या की थी , लेकिन उस पर कभी भी मुकदमा नही चलाया गया था | इसके विपरीत उसके देश के लोगो ने उसे लाखो का इनाम दिया था | वह कहते गये उसकी तुलना में
” हम एक कमजोर बम बनाते है और जानबूझकर उसे एक खाली स्थान पर फेंकते है | पर हम , पर मुकदमा चलाया जाता है और आजन्म कैद की सजा सुनाई जाती है | किसी की हत्या करने का हमारा इरादा नही था | द्देष शब्द को निकल दीजिये बस मुझे संतोष हो जाएगा | हमारा एक निश्चित आदर्श है हम अपने आदर्श को पाने के लिए कुछ साधन अपनाए थे | ”
भगत सिंह को ऐसा कोई बचकाना भ्रम नही था कि बमो से ही क्रान्ति आ जायेगी | या ऐसा करना क्रान्ति की ओर एक आगे बढा हुआ कदम होगा | परतंत्र मातृभूमि की वेदना ने उनके हृदय में विद्रोह की भावना जगा दी | बमो का प्रयोग देशवासियों की हृदय — विदारक पीड़ा के प्रति उनके ” क्षोभ का अभिव्यक्तिकरण ही था |
दिल्ली के अदालत में उन्होंने कहा था ” समाज का वास्तविक पोषक मजदूर है | जनता का प्रभुत्व मजदूरो का अंतिम भाग्य है | इन आदर्शो और विश्वासों के लिए , हम हर उस कष्ट का स्वागत करेंगे जिसकी हमे सजा दी जायेगी | हम अपनी तरुणाई को इसी क्रान्ति की वेदी पर होम करने लाये है क्योकि इतने गौरवशाली उद्देश्य के लिए कोई भी बलिदान बहुत बड़ा नही है | क्रान्ति के आगमन की प्रतीक्षा करने में हमे संतोष है ” |
उनके विचार से क्रान्ति का उद्देश्य ” स्पष्ट रूप से अन्याय पर खड़ी हुई वर्तमान व्यवस्था ” को बदलना था | यह अन्याय किस जगह पर होता है ?
” समाज के सबसे आवश्यक तत्व होते हुए भी उत्पादन करने वालो या मजदूरो से उनके शोषक उनकी मेहनत का फल लूट लेते है , और उनको प्रारम्भिक अधिकारों से भी वंचित कर देते है | एक ओर तो सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानो के परिवार भूखो मरते है सारे संसार के बाजारों को सूत जुटाने वाला जुलाहा अपना और अपने बच्चो का तन ढकने के लिए भी पूरा कपडा नही जूता पता शानदार महल खड़े करने वाले राज लुहार और बढ़ई झोपड़ियो में ही बसर करते और मर जाते है और दूसरी ओर पूजीपति शोषक — समाज की जोंके — अपनी संको पर ही करोड़ो बहा देते है | ” भगत सिंह ने कहा था कि इसीलिए एक उग्र परिवर्तन की आवश्यकता थी और लोग भी महसूस कर चुके थे उनका कर्तव्य था कि ” एक समाजवादी आधार पर समाज का पुनर्गठन करे | ”
” जब तक यह नही किया जता और मनुष्य द्वारा होने के मनुष्य के , तथा साम्राज्यवाद का चोगा पहने हुए देश द्वारा देश के शोषण का अंत नही किया जाता , मानवता की इस मुसीबत और खूनखराबे को , जो आज उसे धमका रही है , नही रोका जा सकता | दरअसल इसके बिना युद्धों को अंत करने और विश्व व्यापी शान्ति के युग को लाने की सारी बाते ऐसी व्यवस्था की स्थापना जिसमे इस प्रकार के हडकम्प का भय न हो और जिसमे मजदुर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाए और उसके फलस्वरूप विश्व संघ पूजीवाद के बन्धनों , दुखो तथा युद्धों की मुसीबतों से मानवता का उद्धार कर सके | ” आज भी भगत सिंह के विचार प्रासंगिक है |
प्रस्तुति—- सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार व दस्तावेजी प्रेस छायाकार