Saturday, July 27, 2024
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बड़े खुशनसीब लोग थे, जिन्होंने अपनी मौत पर खत लिखा- सलाम शहीदे-ए- वतन- अशफाक उल्ला खां

बड़े खुश नसीब लोग थे जिन्होंने अपनी मौत पर ख़त लिखा –

सलाम शहीदे -ए- वतन – अशफाक उल्ला खा

हमारे पुरखे वतन के लिए क्या सोचते थे और जो सोचते थे उसे कर गुजरते थे , हमारे छोटे भाई रफ़ी खान के जरिये शहीदे -ए- वतन अशफाक उल्ला खा का आखरी ख़त जो उन्होंने अपने माँ को लिखा था |

काफी होगा | अगर वकत बराबर अ गया है तो खैर खुदा के सपुर्द किया आपका खादिम — अशफाक वारसी – दस्तखत

आखरी ख़त अपनी माँ के नाम
अज जिन्दान फैजाबाद , फाँसी की कोठरी – 15 दिसम्बर , 1927

दुखिया और बूढी माँ की खिदमत में उसके मरते हुए फरजन्द का सलाम पहुचे , जो इसी हफ्ते में इस फानी दुनिया को अलविदा कहकर उस मुल्के जावेदाँ को जा बसाएगा , जहां कि इससे पहले भी सब जा चुके है और हर रूह इसके बाद भी जाएगा —
फना है सबके लिए हमपे कुछ नही मौकूफ ,
बका है एक फकत जाते किब्रियाँ के लिए |
आप भी बखूबी वाकिफ है और तालीमयाफ्ता है मगर यह जरुर है कि बूढी सिनरसीदा दुखिया माँ के लिए यह सदमा जरुर बड़ा है कि उनका जवान बेटा नामुराद दुनिया से उठ जाए और वह उसकी लाश पर दो आँसू भी न दाल सके या उसकी मरी हुई सूरत देख सके | मगर यह तो बताओ यह हुकम किसका है ? क्या दुनिया के किसी इंसान का हुकम है ? क्या कोई मुझे उसके हुकम के बिला मार सकता है ? उसने रोजेअजलसे ऐसा ही लिखा था कि अशफाक तुझको फाँसी पर मरना है और जब तू मरेगा तो कोई तेरे आइज्जा व अकरुबा ( रिश्तेदार ) व अहबाब में से न होगा | पस हुकम खुदाबन्दी पूरा होकर रहेगा और ऐसा हो होता चला आया है | मैं यह लिख देना चाहता हूँ कि मैं बइत्मीनान और पुरसकुन( शान्ति से ) मौत मर रहा हूँ | हुक्मे खुदा ऐसा ही था और वह अटल है , होकर रहेगा | मौत सबके लिए है और सब मरेंगे | दुनियावी तकालिफ, माददी बन्दिशे, इंसानी कयूदात सब पीर के रोज तक खत्म हो जायेगी और मेरी रूह इस कफसे – असरी से आजाद हो जायेगी | अब दूसरी मंजिल सामने है , देखिये वहाँ कैसी गुजरे | यह उसकी बख्शीश -व – करम पर मुनहसिर है | सफर दरपेश है , जादेराह ( रास्ते का सामान ) पास ही | बस उसी उम्मीदे करम पर खुश – खुश मर रहा हूँ | मैं तो आप सबको अलविदा कहता हुआ आप सबको और खसूसन आपको बकया जिन्दगी में वक्फे – नौहा व बुका करके उस तरफ जा रहा हूँ जहां से आया था और फिर वापस जाने का वायदा था | वायदा पूरा करना है | आप सबके सामने राहे अमल क्या है ? मैंने तो बुरा किया या अच्छा | मैं इकरार करता हूँ कि मेरी जिन्दगी की इतनी बरसे गुमराही , मासियत , सियाकारी ( गुनाह ) और गुनाहों में गुजरी , उसके लिए मेरे दोस्त , मेरे अजीज , मेरे भाई और मुख्तसिर यह है कि हर हमदर्द मुसलमान दुआय मगफिरत ( आत्मा की शान्ति के लिए ) करे और आप सब लोग सब्र कीजिये | सब्र तल्खअस्त व लेकिन बरे शिरी दारद ( फल मीठा ) – मुझे डर है कि आप घबरा न उठे और यह न कह बैठे किजिसकी जवान औलाद मर जाए वह कैसे सब्र करे तो सुनिए , मेरी प्यारी माँ ! खुदा ने मुझको आपके शिकम से पैदा किया था | मेरी पैदाइश पर खुशियाँ मनाई गयी थी | शुकराने अदा किये गये थे | और किस्सा मुख़्तसर यह कि मुझको आँखों का नूर और दिल का सुरूर समझा जाता था | आपने इस सिले में हुडा को क्या दिया कि उसने आपको एक इन्सानकी शकल में औलाद दी | आपसे जो भी पूछता था आप यही कहती थी कि खुदा का बन्दा है खुदा ने दिया है | उसी की अमानत है और मैं अमानतदार हूँ | पस अब मालिक अपने गुलाम को तलब करता है | अमानत रखनेवाला अपनी अमानत तलब करता है | आप खयानत न करें , न आपकी चीज थी न आपसे छिनी गयी | इतने दिन के वास्ते आपको दी गयी थी कि रखो , बाद को हम वापस लेंगे , अब वापस लिया जा रहा हूँ फिर आपको क्या है कि रद्दोकद करें | क्या आपने हमेशा से यह सोचा था कि मुझे मौत कभी न आएगी ? अरे ! तुम भी जानती थी और मुझे भी मालुम था कि हम तुम सब मरेंगे कोई आगे कोई पीछे | या तो मुझको रोना पड़ता तुम्हारे लिए , या तुम्हे मेरे लिए | उसका मन्शा यह था कि बूढी माँ जवान औलाद को रोएगी और बकिया तीन भाई अपने छोटे भाई का मातम करंगे | तो क्या कोई आज इस दुनिया में इतनी ताकत वाला है कि खुदावन्द के अहकाम पलट दें ? कोई नही ! अपने खानदान ही में कितनी ऐसी माएँ है जो बुढापे में जवान औलाद का दाग खाए बैठी है और कितने ही ऐसे भाई है , जो अपनी आँखे अपने भाई के लिए सुर्ख कर चुके है और कितनी ही बहने , भावजे , भतीजियो , भतीजे भांजिया , भांजे है जो कि अपने भाई , देवर , चचा , मामू के लिए सिनाकोबी कर चुके है | दुनिया का यही धन्धा है | दुनिया नाम ही उसका है | अगर मरना न होता तो जिन्दगी का फायदा ही क्या था ? अगर रात न हो तो दिन में लज्जत ही क्या ? अगर गम न हो तो शादी – बी – मंजिले गम है | गरज के दुनिया एक माजूने मुरक्कब है | जिसमे सबके जायके है | एशोमसर्रत , गमो अन्दोह , आराम व तकलीफ , गफलत व बेदारी , नेकी व बड़ी , मौत – जिस्ट , गरज कि हर चीज यहाँ मिलेगी | पस खुशकिस्मत वह ई जिसने अच्छी बाते कबूल की और बुराइयों से परहेज किया | गफलत पर होशियारी को तरजीह दी और माबुदे हकीकी की याद में लगा और होशियार रहा अपने फराइज की अदायगी में | नेकी को कबूल किया और बड़ी को ठुकराया | अबदी आराम की खातिर तकलीफ बरदाश्तकी और इबादत में मसरूफ रहा , मौत को पेशे – नजर रखा और जिस्ट ही में सामने आखिरत जमा कर लिया | ऐश व इशरत में पड़कर गफलत नही की और पेश आनेवाले गम व अन्दोह का खटका महसूस करता रहा | पर जिसने इन बातो को अख्तियार किया और हर मुसीबत व तकलीफ व आराम व राहत को मिनजानिबवअल्लाह तसव्वुर किया और उसकी निआमतो का शुक्रिया अदा किया | मसाइब व त्कालिफ पर किया और कहा कि यह सब मिनजानिबवअल्लाह हैं |
दोस्त का दिया हुआ जहरेलाह्ल भी शहद मुस्फ्फा ख्याल किया और सब्र किया , शुक्र किया पस राजी कर लिया उसे जो कोनेन का मालिक और मशरिक व मगरिब का रब है | क्या तुम इसके ख्वाहिशमन्द नही हो कि खुदा तुम्हारा पैदा करने वाला है और जिसके सामने तुम्हे जाना है , तुम्हे अपना दोस्त कहकर पुकारे ? अरे दुनिया उसकी मुत्मन्नी है और हमको अपना दोस्त कहे | आज मौत के सामने बैठा हुआ अशफाक कुछ ख्वाहिश नही रखता , मगर हाँ वह कह दें कि अशफाक मैं तुझसे राजी हूँ और तू मेरा बन्दा है मैंने बन्दगी में कबूल किया | वह कहता है , ऐ ईमानवालो ! बेशक हम अल्लाह सब्र करने वालो के साथ है | दूसरी जगह फरमाता है अणि खुशखबरी सूना दो उन सब्र करनेवालों को कि जब उनको कोई मुसीबत पहुचती है तो कहते है कि बेशक हम अल्लाह ही के है और बेशक हम उसकी तरफ लौटने वाले है | फिर फरमाता है यानी यही है जिन पर बरकात है उनके रब की तरफ से और रहमत है | यही लोग हिदायात्वाले है | यह कॉल आपको जनाबे बारी के लिख दिए | अब समझना न समझना आपका काम है |
आपका सब्र व शुक्र आपको उसके दरबार में मकबूल व मुकर्रब करेगा | और अगर खुदा न खास्ता आप हद से आगे बढ़ गयी तो आप खुद समझदार और पढ़ी – लिखी है | आपका नाल -ओ शेवप , आह्वजारी,सिनाकोबी , मुझको ज़िंदा नही कर सकती , न मौत से बचा सकती है | हाँ सब्र करना , कलमा व दरूद पढ़ना और बख्शना मेरे लिए कुछ सुदमन्द साबित हो सकते है || पस मेरी अच्छी माँ मेरी खताए माफ़ फरमाकर मशगुले – खुदा हो जाओ | उसकी मर्जी यही थी और कौन है जो उसके हुकम को टाल सके | मुझेसे आपको दुःख पहुचा | आपका बुढापा बर्बाद हो गया | आपकी जिन्दगी जीक में पड़ गयी , मैंने की | हाँ जाहिर असबाब में से एक मैं भी हूँ | मगर मौला की मर्जी और उसका हुकम पोशीदा रहता है | समझदार मिनजानिबवअल्लाह हर बात को समझते है और नासमझ इंसानों की तरफ ख्याल दौडाते है | इससे कब्ल एक कार्ड फैसले के मुतालिक मिला होगा | कैसे मजे की बात है कि मैंने अपने कलम से अपनी मौत की खबर आपको भेज रहा हूँ | मैंने एक किताब लिखना शुरू थी और वह तकमील को न पहुच सके | खैर मालिक की मर्जी ही न थी जिसमे मेरा मकसद बच्चो के लिए नसीहत करना था | खैर उनके लिए जो मैदाने अमल है और जो सामने आय उस पर गंजन हो | मुझे जो लिखना है थोड़ा – थोडा सब लिख दूंगा क्योकि अब वक्त मेरे पास मजमून निगारी व कलम परसाई का नही है | मुख़्तसर – मुख़्तसर सबको लिख दूंगा | सब अपना – अपना मतलब निकाल ले | मुझे तो सबसे जरूरी आपको लिखना था | और यूँ तो ये मजमून वाहिद तसव्वुर किया जाए | सबी से सब्र की गुजारिश है और सब्र ही ख़ुशी की कुंजी है | मुझे बुबू की भी परेशानियों का इलाम है और आप सबकी कोफ्त में ऐसे वक्त में इजाफा नये गम का है | मगर क्या मौला की मर्जी टाली जा सकती है ? नही हरगिज नही | वह हर सूरत से आजमाइश कर रहा है | तुम सब्र को हाथ से न जाने दो | जो दोस्त की तरफ से ख़ुशी व गम मिले मुस्कुराते हुए हेहरे और मूतमइन दिल के साथ कबूल करो कि फ्लाहे दीनी व दुनयावी हासिल कर सको | मैं कोशिश करूंगा कि यह ख़त तुमको मेरी औत से पहले मिल जाए ताकि तुम्हारे दुःख में कमी हो जाए और तुम सोच सको कि मरने वाला क्या बात है कि मरते हुए भी मूतमइन व खुश है — फना है सबके लिए हमपे कुछ नही मौकूफ बका है एक फकत जाते किब्रिया के लिए | आदम अलैहिस्सलाम से लेकर इस वक्त तक कौन ऐसा है जो मरा न हो ? जिसने बसाते – आलम पर जिन्दगी के मोहरे बसाए है और आनेवाली और जरुर आनेवाली बात के लिए परेशान होना सरासर गलती है | अब रहा मुहब्बत , डाह ,मोह प्रेम – ये सब दुनियावी धन्धे है | खुदा से मुहब्बत करो | उसको पूजो जो हमेशा ज़िंदा व कायम रहेगा | तुम्हे अपनी बकिया जिन्दगी में कभी भी उसके लिए रोना ही पडेगा | बस उसी से मुहब्बत करो उसी को समझो | अकली -दलाइल , मजहबी मसाइल फलसफियाना बहस दुखे हुए दिल पर नमक – मिर्च का काम अक्र्ते है | मैं खूब जानता हूँ कि आप सोचेंगी कि मैंने अपनी करतूतों से पका बुढापा खराब किया और भाइयो और दीगर अइज्जा की जिन्दगी दुःख की जिन्दगी बना दी | मैंने क्या या ? मैंने कुछ नही किया | उसका हुकम रोजेअजल से ऐसा ही था , सो होकर रहा | जो बात होने वाली होती है असबाब उसके पेश्तर से होना शुरू होते और असबाब जब पाय -ए-तकमील को पहुच जाते है बात पूरी हो जाती है | पस मेरे लिए यह मौत और यह दिन था सो मुझे इला | और तुम्हारे लिए दुःख , बुढापे का धक्का और सिनाकोबी लिखी थी वह तुम्हे मिल रही है | जो जिसके लिए उसने मुनासिब समझा वह उसे तकसीम कर दिया | पस कौन है जो शिकवा करे और लब शिकायत के वास्ते खोले —
हम रजाकार है हम पर है बहरहाल यह फर्ज ,
शुक्रे हक लब पे रहे शिकवय आदा न करे |
मान ले फैसलाए दोस्त को बेचुनोचरा,
फिकरे इमरोज ही रखे , गमे फर्दा न करे |
तुम सबको गम उठाने के लिए इन्तखाब किया और मुझे मंसुरे वक्त बनाने को चुन लिया | अगर तुमको गिरियए याकूब अता किया तो मुझको सुन्नते युसफ़ी अदा करने के लिए पुकारा | अगर तुमको मातम कुनाँ मिस्ल खानदाने नबवी बनाना चाहा , बना दिया और मुझे मुत्त्बय हुसैन तेगेजफा के खिताब से नवाजा | उसकी शान निराली है | उसकी अदा अनोखी , हर जगह नये रंग में हर तरफ नये रूप में जलवागर है | जो कुछ हुआ और जो होगा और रहा है उसकी मर्जी से हो रहा है और होगा | पस कौन है जो सरताबी करें | और कौन है जो उसके हुकम से बाहर जा सके ? बस उसी पर नजर रखो और सब्र व करार हाथ से न जाने दो | शुक्र करो उसकी अमानत उसकी तरफ जा रही है | और सानआ अपने मसनूअ को बिगाड़ना चाहता है | फिर तुम कौन रोनेवाली , तुम कौन तडपने वाली ? उसकी चीज थी उसको अख्तियार है | सब्र करो , सब्र और बकिया जिन्दगी का वेश – बहा वक्त मेरे लिए रोने में न सर्फ करो बल्कि उस सफर की तैयारी में लगाओ को एक दिन दरपेश है | गफलत छोडो और उसको पकड़ो | दुनिया फना होनेवाली है और तुम्हारा भी बुढापा है | अच्छा मेरी खताए माफ़ करो और मुझे अपने हुकुक से सुबुकदोष करो | तुमको खुदा की अमां में दिया | तुम्हे नेक बीबी और साबिरा बीबी बनाये | आमीन !
भावजो और भाइयो ! अलफराक बीनी – बीनकुम – तुम आपस में मिलजुल कर रहना और दुखिया व बदकिस्मत माँ की खिदमत में लगी रहना और बकिया जिन्दगी को सकून से गुजारने का मौका देना | अगर तुम लोग ऐसे ही आपस में शिकवा व शिकायत करते रहे और शकरनजी तुम्हारे दरम्यान में रही तो कुछ लुफ्त नही | शीरोशकर बनकर रहना और जुदा न होना | मेरी तो यही ख्वाहिश है और मुझे माफ़ी देना | खुदा की मरजी यही थी |
भाइयो ! तुमने इन्तहाई कोशिश की मगर और खुदा का हुकम टाले नही टलता और पूरा होकर रहेगा | तुम भी मजबूर हो रहे हो | सब्र – शुक्र करो | खुदा की मरजी ही यह है | मैं बताये देता हूँ कि मैं एक पुरसकुन मौत मर रहा हूँ | मैं नही कह सकता कि कौन ख्याल मुझे मस्त व खुश बनाये हुए है | दिल अन्दर से फुला चला आता है | मुझे कतईख्याल ही नही गुजरता कि मुझे फाँसी दी जायेगी | मरेंगे तो सभी कुछ , मैं ही नही मर रहा हूँ | तुम खुदा पर नजर रखो और बजाए रोने – धोने के मेरे ईसाले सवाब में लगे रहना कि वहाँ काम आए | अब ज्यादा क्या लिखूँ ? खुदा तुम सबको सब्रजमील अता फरमाए और मुझ गुनाहगार को जवारे रहमत में जगह दे |

——————————— फकत अशफाक उल्ला खा

प्रस्तुति सुनील कबीर स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस छायाकार

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