यह अच्छा ही हुआ कि गुलाम नबी आजाद को असलियत समझ में आ गई और बैठक में उन्होंने गांधी नेहरु परिवार की महत्ता और आधीनता स्वीकार कर समझदारी दिखाई। जी- 23 के नेता जो गांधी नेहरु परिवार पर हार का ठीकरा फोड़ उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटने की बात कर रहे हैं उसमें सिर्फ गुलाम नबी आजाद को छोड़कर किसी में जनता मे कोई वजूद नहीं है जो भी लाभ उन्हें मिला वह पार्टी के कारण मिला। वरना कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी जैसे नेताओं(जी-23 के सभी नेताओं) को कौन पूछता है। ये सभी किसी के इशारे पर गांधी नेहरु परिवार को हटाना चाहते हैं और अंत में ये सभी अन्य दलों में शामिल हो जाएंगे। दूसरी बात भाजपा महाराष्ट्र में सत्ता से गयी हरियाणा में बैशाखी के सहारे है, पश्चिम बंगाल में बुरी तरह हारी, कर्नाटक में हारी थी, राजस्थान, मध्य प्रदेश में हारी थी तमिलनाडु में हारी।यूपी में सपा ने कड़ी टक्कर दी, अगर ओबैसी की पार्टी न होती तो रिजल्ट कुछ और हो सकता था लेकिन इन पर एक भी शब्द भाजपा नेताओं के शीर्ष नेतृत्व की ओर से नहीं बोला जाता सारा परिवार वाद गांधी नेहरू में ही दिखता है। इसके राजनैतिक मायने निकाला जाय तो साफ है भाजपा की राजनैतिक जमीन का सबसे बड़ा कांटा गांधी नेहरु परिवार है। आप गौर करेंगे तो जितने चैनल्स हैं सभी चिल्ला -चिल्ला कर कह रहे हैं कि जबतक गांधी नेहरु परिवार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व नहीं छोड़ेगा। पार्टी हारती रहेगी। हर चैनल पर बहस के समय एक दो राजनैतिक विश्लेषक बैठते हैं दर असल वे छद्म राजनैतिक विश्लेषक होते हैं दर असल सरकारी चाटुकारिता करने वाले होते हैं और गांधी नेहरु परिवार की और कांग्रेस पार्टी की बुराई करते रहते हैं। जब कांग्रेस की बैठक में सभी ने एक स्वर में गुलाम नबी आजाद सहित कुछ अन्य जी- 23 के नेताओं ने भी गांधी नेहरु परिवार की महत्ता और स्वीकार्यता को मानते हुए पार्टी को हार से न घबराते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिए सभी उपाय उठाने और संगठन को मजबूत करने के लिए गांधी नेहरु परिवार को अधिकृत कर सम्पूर्ण सहयोग की बात कही है तो फिर मीडिया को क्या समस्या है यह बात भी जनता अच्छी तरह से समझ रही हैं ।