नवम्बर में होने जा रहे पांच राज्यों( मध्यप्रदेश, छत्तीशगढ, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम) के चुनावों में कांग्रेस के सरकार बनने की सम्भावनाओं पर पलीता लगाने के लिए केजरीवाल और अखिलेश यादव ने अधिक से अधिक अपनी पार्टी के प्र्त्याशियों को उतारने की कोशिश में हैं और बातचीत के दरम्यान यही कहते हैं कि हम भाजपा को हराने में कांग्रेस की मदद कर रहे हैंजब कि सभी जानते हैं कि कभी कांग्रेस के वोटर रहे वोटों पर यूपी में अखिलेश यादव और दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी के ही वोटर हैं भाजपा के वोटर एकदम अलग हैं तो नुकसान तो कांग्रेस का होगा न कि भाजपा का ।जहां एक- एक हजार,दो हजार, 500 सौ वोटों की मार्जिन से हार जीत होनी है हर हाल में फायदा भाजपा का ही इन दोनों दलों द्वारा किया जा रहा है ,कारण यही कि कांग्रेस मजबूत नहीं मजबूर रहे और इनके प्रभाव वाले क्षेत्रों यूपी,दिल्ली और पंजाब में इन दलों केरहमों करम पर रहे । मैं ये बातें सिर्फ कांग्रेस के नजरिये से लिख रहा हूं क्योंकि सभी दलों को अपनी पार्टी को आगे बढाने का अधिकार है। INDIA के क ई दल ऐसे हैं जो कांग्रेस के साथ तो हैं लेकिन कांग्रेस की ही जड़ काटना चाहते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो कांग्रेस के सच्चे हमदर्द हैं लालू प्रसाद याद, पप्पू यादव, स्टालिन, वामदल, उद्धव ठाकरे, शरद पवार ऐसे ही लोगों में हैं लेकिन नितिश कुमार पर भरोसा किसी भी दल को नहीं है वही हाल ममता बनर्जी का भी है। इन सारी बातों से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बेखबर नहीं है । पहली बात सोनियां गांधी का यह नेतृत्व नहीं बल्कि खरगे और राहुल गांधी की जुगलबंदी का नेतृत्व है जो फ्रंट फुट पर रहकर लडा़ई लड़ रही है। इसीलिए कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति बदली है पहले वह” इंडिया गठबंधन” की बात करते थे अब कांग्रेस की सरकार जहां जहां है जैसे राजस्थान और छत्तीसगढ में अपनी सरकार के किये कार्यों का बखान कर रही है और मध्यप्रदेश में भ्र्ष्टाचार ,बेरोजगारी, महंगाई और गरीबों और आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर फोकस कर रही है और अपनी सरकार आनेपर गारंटियों की बात कर रही है वहीं तेलंगाना में बीआर एस ओबैसी और भाजपा को एक दसरे का साथी बताने के अलावा अपनी सरकार आने पर गारंटियों को बता रही है और तो और मिजोरम कीसरकार जो केंद्र में भाजपा की सहयोगी है , का जिक्र भी कांग्रेस कर रही है। जब भी त्रिकोणीय मुकाबले होते हैं फायदा भाजपा का होता है इसीलिए अब भाजपा ने अपने सभी नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार दिया है जहां राजस्थान में अब भाजपा को उम्मीद जग गयी है तो उसने बसुंधरा राजे को भी आगे कर दिया है। वहीं मध्यप्रदेश में भी भाजपा को कुछ उम्मीदें जग गयी है कि कुछ हो सकता है यहां भी पहले साईड लाइन किए गये मामा शिवराज चौहान की कुछ पूछ बढ गयी है यही हाल बनवास भोग रहे छत्तीसगढ में रमन सिंह की पूछ भी बढी है।जहां-जहां सिर्फ कांग्रेस भाजपा ही मुख्य लडा़ई में हैं वहां” इंडिया गठबंधन” के साथी दल सिर्फ चुप रहकर ही मदद कर सकते थे लेकिन जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं वो अपनी मर्जी चलाना चाहते हैं उदाहरण के लिये पंजाब में भाजपा नहीं है सिर्फ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस है और दिल्ली में विधान सभा चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी आगे हैं तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आम आदमी पार्टी से आगे है लेकिन आम आदमी पार्टी नहीं चाहती कि कांग्रेस इन दोनों जगहों पर चुनाव लडे़।फिलहाल यूपी,पंजाब और दिल्ली के साथ ही पश्चिम बंगाल में भी लोकसभा चुनाव के बारे में अभी तक कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं वहीं बिहार में नीतिश से ज्यादा लालू प्रसाद यादव को कांग्रेस ज्यादा तवज्जो दे रही है और लगता नहीं कि कांग्रेस अब इन दलों के आगे झुकेगी क्योंकि वह पहले इन सभी राज्यों में अपने को और अपने संगठन को मजबूत कर लेना चाहती है एक बात तय है कि इन पांच राज्यों के चुनाव बहुत कुछ” इंडिया” केआगे के स्वरूप को और उनकी दिशा और दशा को तय कर देगी। लेकिन अब कांग्रेस के नये नेतृत्व से दबने की आशा करना सम्भव नहीं लगता । सम्पादकीय-News51.in
दोस्त बने दुश्मन, INDIA में कांग्रेस केअस्थाई दोस्तों का जमावडा़, केजरीवाल, अखिलेश नहीं चाहते कि होने वाले पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जीते,इसीलिए अधिक से अधिक सीटों पर प्र्त्याशी उतार रहे
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