बी.आर .एस . पार्टी के प्रति क्या यह भ्रम जनता के मन में बैठ गया है कि चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री तेलंगाना बीजेपी से अंदर खाने मिले हुए हैं और साथ ही ओवैसी भी मुख्यमंत्री और भाजपा से मिले हुए हैं हाल ही में विधानसभा चुनाव के चुनाव प्रचार में राहुल गांधी , प्रियंका और मल्लिकार्जुन खड़गे का यह आरोप कि ,के चंद्रशखेर राव और ओबैसी दोनों लगातार ऐसा काम कर रहे हैं ,जो बीजेपी को लाभ पहुंचा रहे है ऐसी बातें कांग्रेस के बडे़ नेता व तथ्यों के साथ लगा रहे हैं जिनपर बात करना आवश्यक है ।दर असल पिछले चुनाव में 47 प्रतिशत के साथ के. चंद्रशेखर राव की पार्टी ने 119 विधान सभा सीटों वाले तेलंगाना राज्य में बीआर एस ने 88 सीटें हासिल की थी और सहयोगी ओबैसी की पार्टी की सात सीटों को और जोड़ दें तो कल 95 सीटें हो जाती है इसी प्रकार कांग्रेस ने पिछली बार मात्र 19 सीट हासिल किया था, इस बार भी अभी तीन महीना पहले तक ऐसा लगता था कि चंद्रशेखर राव की पार्टी बी आर एस तीसरी बार सत्ता में आने जा रही है लेकिन अचानक से कांग्रेस ने अपनी पार्टी का कैम्पेन शुरू किया और आज की स्थिति में और एक माह पहले किये गये सर्वेक्षण में कांग्रेस अचानक बीआर एस में टक्कर की स्थिति मे आ ग ई। बताया जाता है कि 19 जनवरी को खम्मम में बीआर एस ने एक रैली करते हुए भाजपा और कांग्रेस विहीन थर्ड फ्रंट तैयार करने का प्रयास करते यह तक कहा कि वह कांग्रेस को फ्रंट में शामिल नहीं करेगी , उस रैली में अखिलेश यादव और केजरीवाल ने भी बढचढ कर भाग लिया था तभी से तेलंगाना में यह आरोप लगने लगे कि दर असल भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए विपक्षी गठबंधन को कमजोर करने की नियत से चंद्र शेखर राव यह चाल चल रहे हैं बाद में वह ममता बनर्जी सहित तमाम विपक्षी दलों को साथ लाने के प्रयास में लग गये लेकिन फिर अखिलेश यादव और केजरीवाल, ममताबनर्जी समेत अधिकांश विपक्षी दलों ने कांग्रेस नीत गठबंधन” इंडिया “में शामिल हो गयेऔर कांग्रेस के रैलीयों में उमडी़ भारी भीड़ से भयभीत चंद्रशेखर राव ने अपने बेटे के.टी.रामाराव को अमित शाह की शरण में भेजा, लेकिन उन्होने भी मिलने से इन्कार कर दिया ।इसकी पुष्टि बाद में एक रैली में स्वयंम प्रधान मंत्री मोदी ने भी किया था । तेलंगाना के लोगों को यह बात भी समझ में नहीं आई कि राज्य में भाजपा का विरोध करने वाली बी.आर एस ने धारा 370 को हटाने के मुद्दे पर आखिर क्यों बीजेपी का संसद में साथ दिया? बस इन्ही बातों को लेकर कांग्रेस भाजपा का सहयोगी बीआर एस को बता रही है । अब लडा़ई त्रिकोणीय है भाजपा, कांग्रेस और बीआर एस तथा सहयोगी। निश्चित रूप से संकट में फंसी बीआर एस के तमाम बडे़ नेता कांग्रेस का हाथ।थाम चुके हैं और यह संकट सिर्फ बीआर एस ही नहीं ओबैसी की पार्टी पर भी नजर आ रहा है क्योंकि ओबैसी की पार्टी का मुख्य जनाधार हैदराबाद और उसके आसपास के इलाकों में ही है ।पूरे तेलंगाना राज्य में लगभग 13 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं लेकिन यह जहां हैं बहुतायत में हैं जैसे हैदराबाद की 10 सीटों पर लगभ 40 प्रतिशत अल्पसंख्यकों की आबादी है और ये 40 प्रतिशत आबादी जिसकी तरफ आबादी जिसकी तरफ ग ई वह जीत जाता है और यह ओबैसी की पार्टी का एक तरह से गढ रहा है पिछली बार इन्ही10 में से 7 सीटों पर ओबैसी की पार्टी जीती थी। इस हैदराबाद के आसपास लगभग19 से 20 सीटें ऐसी है जहां 20 फीसदी आबादी अल्पसंख्यकों की है पिछली बार ये सभी बीआर एस की जीत में साथ थे ।इसी तरह 15से 16 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक लगभग 14 फीसदी हैं और आजकल अल्पसंख्यकों में एकतरफा उसी को वोट देने का चलन है जो बीजेपी को हरा सकता है वो बीजेपी को वोट देने से रहे और यही बीआर एस की चिंता का मुख्य कारण है । फिलहाल बीआर एस और ओबैसी की पार्टी का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से अत्यंत ही तगडा़ है बाजी किसी भी तरफ 1-2 प्रतिशत के वोटों के इधर।-उधर होने से बाजी पलट सकती है उधर बीजेपी ने भी दो वादे कर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है पहला बीजेपी ने चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री पिछडे़ वर्ग से बनाने का वादा किया है तो अल्पसंख्यकों का आरक्षण समाप्त करने का भी दांव चल दिया है । सम्पादकीय -News51.in