Saturday, July 27, 2024
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तिलस्म टूटा-अमितशाह और मोदी जी की जोडी अजेय है?

नयी दिल्ली -भाजपा अजेय है भाजपा पचास साल राज करेगी ।अमित शाह सबसे बड़े रणनीति कार है, चाणक्य है ।जनता नाराज है लेकिन घबराने की जरूरत नही मोदी जी के आते ही सबकुछ बदल जायेगा ।सारी फिजा बदल जाएगी ।आदि-आदि ।सारी बाते एक ही झटके मे हवा हो गई ।भाजपा और उसके सभी बड़े नेता अहंकार मे इतना डूबे थे कि सामने का संकट देख कर भी अनदेखी कर रहे थे ।जनता की नाराजगी समझने का प्रयास तक नही किया गया ।उनके बड़े नेताओ(प्रधानमंत्री सहित)ने अपने संबोधन मे केवल राहुल गाँधी और उनके परिवार को ही कोसते रहे और अपनी पीठ ठोकते रहे ।वही राहुल गाँधी ने अपना पूरा ध्यान किसानो की समस्याओ, नौजवानो की बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी, भ्रष्टाचार और राफेल डील पर ही अपने सम्बोधन मे रखा ।यहा तक कि प्रधानमंत्री के भाषणो मे वह बात नजर नही आयी ।जो उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरुआती दिनो मे हुआ करते थे ।उधर राहुल गाँधी दिनोंदिन अपने भाषण को केवल भाजपा की कमजोर नसो पर ही अपना पूरा ध्यान केंद्रित रखा ।
राहुल गांधी तेजी से सीखते जा रहे है ।उन्होंने भाप लिया था कि भाजपा की सबसे मजबूत कड़ी उसका हिन्दुत्व कार्ड है और उन्होंने उसके ही हथियार से उसपर वार किया ।और स्वयम भी काग्रेस को नरम हिन्दुत्व का चोला पहनाया ।और फिर शिव दर्शन के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा पर निकल पड़े ।वैसे इसकी शुरुआत उन्होंने गुजरात चुनाव के समय ही मन्दिरो मे पूजा-अर्चना से शुरू कर दी थी ।जहा मोदी ,अमित शाह का गृह प्रदेश है सभी काग्रेस के बड़े नेताओ ने उस समय उन्हे गुजरात चुनाव मे जाने से मना किया था और कहा था वहा जाना बेकार है हम वहा उन्हे नही हरा पाएंगे ।किन्तु राहुल गांधी न केवल वहा जमकर प्रचार किया बल्कि भाजपा को कड़ी टक्कर दी बमुश्किल गुजरात मे मोदी जी गुजरात वासियो से अपनी इज्जत की दुहाई देकर भाजपा को जीता पाए थे ।भाजपा को राहुल गाँधी का मन्दिरो मे जाना, पूजा-पाठ करना, अपने को जनेऊ धारी हिन्दू कहना कत्तई अच्छा नही लग रहा है ।उनका हथियार राहुल गाँधी ने छीन लिया था । तेलंगाना मे ओवैसी ने जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग हिन्दुओ और मुसलमान को लेकर अपने भाषण मे किया उस तरह की भाषा भाजपा को शूट करती है।और चुनावो मे वोटो का ध्रुवीकरण हो जाता है ।किन्तु राहुल गांधी ने पूरे कैम्पेन मे अपना फोकस किसानो, मजदूरो, बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी, भ्रष्टाचार और महंगाई, महिला सुरक्षा और राफेल डील पर केंद्रित रखा ।मन्दिर, मस्जिद के चक्कर मे कत्तई नही पडे ।
हालांकि अभी तीनो राज्यो के चुनावी नतीजे से भाजपा को चुका हुआ मान लेना बेवकूफी है ।लेकिन मध्यप्रदेश मे काग्रेस पार्टी का उभार निश्चित रूप से भाजपा के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि मध्यप्रदेश ही वह प्रदेश था जिसको भाजपा सपने मे भी हार की नही सोच सकती थी ।
हालांकि अभी कल से मेरे जो भाजपा के मित्र और रिश्तेदार है उनसे बात चल रही थी किन्तु वो अभी भी इस भ्रम मे है कि 2019 के लोक सभा चुनाव मे मोदी के आगे राहुल गाँधी नही टिक पायेंगे ।वह अभी भी संकट देख नही पा रहे है।
सत्ता आने के बाद बहुत सी चीज आसान हो जाती है।मान लीजिए अगर इन राज्यो मे काग्रेस सरकार किसानो का ऋण माफ कर देती है ,बिजली का बिल हाफ कर देती है, कुछ सरकारी नौकरी का रास्ता खोल देती है तब काग्रेस को इन चार -पाच महीने मे दिखाने के लिए बहुत कुछ हो जाएगा ।
सबसे बड़ी बात यह है कि जो पार्टी हिंदी भाषी क्षेत्रो मे सिकुडती जा रही थी उसने एक झटके मे उन तीन राज्यो को भाजपा से छीना है वह तीनो राज्य भारत के मध्य मे है और वहा भाजपा का संगठन(आर एस एस सहित)सबसे मजबूत था और काग्रेस का संगठन टुकडो मे और कयी गुटो मे था ।
जिसे राहुल गाँधी ने एक किया ।मध्यप्रदेश मे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक किया और दिग्विजय सिंह को भी महत्व दिया इसी प्रकार राजस्थान मे अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक किया।
यह सच है कि लोकसभा चुनाव अभी चार -पाच महीने बाद है किन्तु यह भी सच है कि इस जीत के धमक सभी विपक्षी दलो के कान तक गयी है ।काउंटीग के एक दिन पहले बीस विपक्षी दलो का एक होकर प्रदर्शन करना, मायावती द्वारा दोनो राज्यो(मध्यप्रदेश, राजस्थान )मे काग्रेस पार्टी को समर्थन देना आदि बाते काग्रेस की मुश्किलो को और आसान करती जा रही है ।मायावती और अखिलेश यादव दोनो को किसी नकिसी तरफ जाना ही होगा भाजपा की ओर जा नही सकते ।तो चुनाव बाद की कठिनाईयो के दृष्टिगत काग्रेस ही सबसे उपयुक्त साथी है।शायद अब भाजपा को भी यह खतरा समझ आने लगा है ।क्योंकि यह तय है कि बिहार मे महागठबंधन तेजस्वी यादव की अगुवाई मे विजय का प्रबल दावेदार है और उस गठबंधन मे काग्रेस भी शामिल है ।अगर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान मे काग्रेस, बसपा, और सपा और अजीत सिंह की आर एल डी मिल कर लडी तो फिर भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज सकती है ।भाजपा को भी अभी से कमर कसनी होगी ।अपनी कमज़ोर कड़ी को मजबूत करना होगा ।वैसे आज भी भाजपा संगठन के मामले मे अन्य दलो से काफी आगे है ।इतना निश्चित है 2019 का लोकसभा चुनाव अब 2014 की भांति न तो एकतरफा होने जा रहा है और न ही

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