तहरीके जिन्होंने जंगे -आजादी -ए- हिन्द को परवान चढाया
लहूँ बोलता भी हैं
स्वदेशी आन्दोलन
स्वदेशी आन्दोलन का मकसद था ब्रिटेन में बने सामानों का बाईकाट करना और भारत में बने सामानों को बढावा देकर ब्रिटेन को नुक्सान पहुचना था | इससे हिन्दुस्तानियों को अपने रोजगार का मौका भी मिला | उसी दौरान बंगाल में बंगाल के बटवारे के खिलाफ माहौल गरम होने लगा था | बंगाल के आसपास ये दोनों आन्दोलन एक साथ चले | इससे अंग्रेजो को बहुत नुक्सान हुआ | इस आन्दोलन की कामयाबी को देखते हुए इसके लिए बनाई गयी कमेटियो को महात्मा गांधी के कहने पर जंगे – आजादी के मूवमेंट को तेज करने के लिए कांग्रेस के साथ शामिल कर दिया गया | इस आन्दोलन को मौलाना अबुल कलाम आजाद , अरविन्द घोष रविन्द्रनाथ टैगोर , बाल गंगाधर तिलक की मुश्तरका कयादत माना जाता हैं | दिली और आसपास के इलाको में सैय्यद हैदर राजा की कयादत ने इस आन्दोलन को बखूबी अंजाम दिया | यह आन्दोलन 1905 – 1911 तक चला |
होमरूल मूवमेंट
अंग्रेजो ने कांग्रेसी नेताओं और आंदोलनकारियो को यह यकीन दिलाया था कि पहली जंगे – अजीम जो की तब तक शुरू हो चुकी थी में अगर भारत के लोग मदद करते है , तो जंगे – अजीम के बाद ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा | इस लालच में उस वक्त कांग्रेस और बाकी तंजीम फंस गयी जो जंगे – आजादी का हिस्सा थी | इस पर पूरी कमेटी दो हिस्सों में बत्ती दिखाई देने लगी | एक गुर इससे मानने पर अदा हुआ था , लेकिन दुसरा गुट इसे ब्रिटेन की चाल समझता था इसलिए इसे मानने से इनकार करके आन्दोलन का दूसरा रास्ता खोजने पर जोर देता था | यही होमरूल मूवमेंट की वजह बनी | सन 1915-1916 के बीच होमरूल लीग बनी | पुणे में होमरूल लीग की कयादत बाल गंगाधर तिलक ने की जबकि मद्रास में होमरूल लीग एनीबेसेंट की कयादत में बनी | बाद में ये दोनों ही कांग्रेस के साथ मिल गयी | इस आन्दोलन का मकसद असलहो या खून -खराबे के बिना ही स्वराज हासिल करना था | इस आन्दोलन में मुसलमानों ने अहम् किरदार निभाया | हालाकि यह आन्दोलन भी और आन्दोलन की तरह बहुत असरदार नही रहा |
प्रस्तुती – सुनील दत्ता — स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक
साभार — सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी