यह द्वापर युग था जब एक दिन सत्यभामा ने प्रभु श्री कृष्ण से पूछा कि – सीता क्या मुझसे अधिक सुंदर थीं ???
ऐसा ही एक प्रश्न सुदर्शन चक्र ने भी पूछा था कि मुझसे ज्यादा शक्तिशाली क्या कोई और भी है प्रभु ??
श्रीकृष्ण की सेवा में सदैव तत्पर रहने वाले गरुड़ जी को भी कुछ इसी प्रकार का अभिमान था कि उनके समान तीव्र वेग से उड़ने वाला और कोई नहीं ।
एक सुबह प्रभु ने इच्छा जताई कि आज़ वह राम दरबार लगाएंगे । अतः हनुमान जहां कहीं भी हों गरूड़ जी उन्हें शीघ्र लिवा लाएं।
सत्यभामा माता सीता का रूप धरकर भगवान की वामांगी हुईं। इधर गरुड़ हनुमान की खोज में निकले। हनुमान जी उन्हें तुरंत मिल भी गए। राम-नाम के जप में लीन हनुमान जी को उन्होंने प्रभु का आदेश सुनाया कि आज़ राम दरबार लगेगा अतः आपको शीघ्रातिशीघ्र द्वारिका चलना होगा।
सहमति में सिर हिलाकर हनुमान जी ने गरुड़ को चलने का इशारा किया। गरुण बोले – आप कतिपय वृद्ध हो चले हैं। द्वारिका पहुंचने में आपको देर हो सकती है अतः विलंब से बचने के लिए आप मुझ पर आरूढ़ होकर यात्रा कर सकते हैं।
हनुमान जी ने एक दृष्टि गरुड़ पर डालकर कहा – तुम चलो मैं आता हूं।
क्योंकि राम दरबार एक गुप्त आयोजन था इसलिए सुदर्शन चक्र को आदेश था कि कोई भी व्यक्ति बिना आज्ञा रामदरबार में प्रवेश न करने पाए।
अब तक गरुड़ जी भी लौट चुके थे। श्रीकृष्ण को अपने प्रिय श्रीराम के रूप में देखकर उनका हृदय आनंदित था। किंतु हनुमान वहां पहले से उपस्थित हैं,यह बात उन्हें चकित कर गई ।
इस सबसे परे प्रभु श्रीराम के रूप में बैठे भगवान कृष्ण ने अत्यंत शांत भाव से हनुमान जी से पूछा – “यह तो बताओ वत्स ! कि सुदर्शन से प्रवेश की अनुमति लेने में तुम्हें कोई कष्ट तो नहीं हुआ ??
हनुमान जी बोले – प्रभु ! अनुमति लेने से हमें आपकी आज्ञा पालन में विलंब हो रहा था अतः सुदर्शन को हमने अपने मुंह में रख लिया। “यह लीजिए प्रभु” कहते हुए उन्होंने सुदर्शन को मुख से निकालकर श्रीकृष्ण के चरणों में रख दिया। गरुड़ जी और सुदर्शन अपनी अवस्था पर पानी- पानी थे।
अब बारी सत्यभामा की थी जो माता सीता का रूप धरकर हनुमान को गर्व और प्रेम से देख रही थीं।
हनुमान जी ने श्रीकृष्ण की ओर उन्मुख होकर कहा – ” राम दरबार में मैया सीता की जगह किसी साधारण स्त्री को बिठाने का कोई विशेष प्रयोजन प्रभु ???
सुनते ही सत्यभामा का सौंदर्य दर्प चूर-चूर हो गया।
इस तरह प्रभु ने बिन कुछ कहे ही अभिमानी भक्तों को यह संदेश दे दिया कि वेग, बल, बुद्धि और भक्ति में हनुमान जी से श्रेष्ठ कोई नहीं।
हनुमान और रामचंद्र जी से संबंधित अनेक पौराणिक कथाओं के आधार पर माना जा सकता है कि हनुमान जी का जन्म रामचंद्र जी के कार्य सिद्धि के लिए ही हुआ था।