Tuesday, December 10, 2024
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जन साधारण में सामाजिक -संगठनों की आवश्यकता

जन साधारण में सामाजिक – सगठनों की आवश्यकता

जनसाधारण समाज में एक दूसरे की जरुरतो के लिए परस्पर सहायता सहयोग करने एवं संगठन बनाने का काम पहले से चलता आ रहा है | सामाजिक सगठनों के प्रति जनसाधारण में राजनितिक पार्टियों – संगठनो की तरह कोई दुराव भी नही रहा है | सम्भवत: इसीलिए विभिन्न कामो के लिए बनते रहे सामाजिक सगठनों को लोग समाज में राजनितिक रूप में परस्पर विरोधी खेमो , गोलबंदियो में खड़ा करने वाला संगठन नही मानते | न ही वे उसे सत्ता स्वार्थी संगठन ही मानते है | वे सामाजिक सगठनों के तौर पर किसी विशेष कार्य के लिए बना सर्वजन हितैषी सगठन मानते है |
सामाजिक सगठनों की इस आवश्यकता एवं मान्यता के चलते भी सरकारों ने विभिन्न सामाजिक कार्यो के लिए सामाजिक संगठन बनाने और उसे पंजीकृत कराने का प्राविधान बनाया हुआ है | पंजीकरण का प्राविधान कब से चल रहा है इसकी तो जानकारी नही है पर 1980 के दशक से सामाजिक सगठनों को सरकार की विभिन्न संस्थाओं के समानांतर बताते हुए इसे गैर सरकारी सगठनों को भी सरकारी एवं गैर सरकारी श्रोतो से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय श्रोतो से छोटे – बड़े फंडो को मिलने का सिलसिला भी बढ़ने लगा | फंडो के बढ़ते सिलसिले के स्वरूप सामाजिक सगठनों को बनाने का परस्पर सहायता सहयोग वाला उद्देश्य पीछे छूट गया | उसकी जगह पंजीकृत सामाजिक सगठनों या गैर सरकारी सगठनों के जरिये फंड लेने धन पैसा कमाने का उद्देश्य प्रमुख हो गया | सरकारों द्वारा तथा निजी संस्थाओं द्वारा इन सामाजिक सगठनों को फंड देने का उद्देश्य भी यही था | इसीलिए फंड उठाने वाले ज्यादातर सामाजिक सगठनों में बिभिन्न रूपों में भ्रष्टाचार भी बढ़ता रहा |
तब क्या ऐसे जन सहयोग सहायता हेतु सामाजिक सगठनों को नही बनाया जाना चाहिए ? अब ऐसे सगठनों की कोई आवश्यकता नही रह गयी है ? नही ! ऐसे सामाजिक सगठनों की आवश्यकता आज भी है और पहले से कही ज्यादा है | क्योकि पिछले 30 – 40 सालो से सरकारों ने जनसाधारण से जुडी बुनियादी समस्याओं को खासकर रोजी – रोजगार – शिक्षा – स्वास्थ्य की समस्याओं को और ज्यादा गंभीर एवं भ्रष्टाचार युक्त बनाने का काम किया है सामाजिक सेवा के नाम पर चलती रही तमाम योजनाओं को प्रचारों में तो भरपूर भ्रष्टाचार बना दिया है | उसे किसी हद तक उचित ढंग से लागू करने के लिए भी उसके मुताबिक़ पात्र को भी सम्बन्धित आफिसो में मुंहभराई – जेबभराई करनी पड़ती है | चूँकि इस काम में योजनाओं के अपात्र ज्यादा सक्षम होते है इसीलिए उन्हें ही उसका भ्रस्टाचारी लाभ मिल जाता है | इसीलिए सरकारी योजनाओं की जानकारी रखने और उसके क्रियान्वयन से समाज के उचित पात्रो तक उसका लाभ पहुचाने के लिए एक सक्रिय समर्पित सामाजिक संगठन की आवश्यकता है | फिर एक दूसरे की मदद से लोगो के जीवन के आवश्यक कामो एवं आवश्यक खर्चो के लिए भी स्थानीय स्तर पर आपसी सहयोग करने व बढाने की जरूरत है अशक्त लोगो के भोजन पानी एवं अन्य आवश्यकताओ से लेकर वंचित हिस्से के शिक्षा स्वास्थ्य आदि की समस्याओं के लिए भी सामाजिक संगठन की आवश्यकता है | ऐसे सगठन के सक्रिय एवं उद्देश्यपूर्ण बने रहने की बुनियादी शर्त है किचाहिए , ऐसे सामाजिक सगठन अपना पंजीकरण कराकर कानूनी मान्यता तो ले , लेकिन वे अपने सविधान में किसी सरकारी या गैर स्स्र्कारी फंड लेने से स्पष्ट मना कर दे | दुसरे ऐसे सामाजिक संगठनो के संचालन व नियंत्रण का एक केन्द्रीय एवं सुव्यवस्थित ढांचा तो अवश्य पर उसके लिए केन्द्रीय स्तर पर लोगो से सहायता लेकर एक संरक्षित कोष बनाने से स्पष्टत: मना किया जाना चाहिए |

सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक

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