Thursday, December 5, 2024
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चलते फिरते इंसान में जी- जान जरूरी है -भगत कथा

— भगत कथा —–

चलते फिरते इंसा में जी जान जरूरी है
दुनिया बदले इस के लिए अरमान जरूरी है
मंजिल तक जाने के होते है कई – कई रस्ते
पर भगत सिंह के रस्ते की पहचान जरूरी है .

यह आध्यात्मिक नही सांसारिक कथा है . आत्मा की मुक्ति के लिए नही मनुष्य के तन – मन की मुक्ति के लिए . केवल व्यक्तिगत मुक्ति नही सबकी यानी समस्त मानव जाति की विकासमान मुक्ति के लिए . मानव को आज मुक्ति की बहुत आवश्यकता है . कयोकी समस्त मानव जाति . समस्त धरती . के सामने जीवन – मृत्यु का संकट आ खड़ा हुआ है . कुछ लोग अपने मुनाफे के लिए सबको विनाश की ओर धकेलते जा रहे है — आज धरती गरम होते – होते फट सकती है . विषैली गैसों से मनुष्य समेत सारे प्राणी नष्ट हो सकते है . इसीलिए आज जरूरत है कि धरती और जनता को बचाने के लिए जय – जय कार करे .

धरती माता की जय
जनता जनार्दन की जय

मानव की मुक्ति कथा अग्नि के आविष्कार के साथ शुरू हुई थी जब उसकी प्रकृति पर निर्भरता कम होनी शुरू हुई थी . मनुष्य और प्रकृति के बीच एक संतुलन बन गया . पर मनुष्य में लालच बढती गयी और धीरे – धीरे मनुष्य ही मनुष्य को गुलाम बनाने लगा . एक साथ शुरू हुए मनुष्य को गुलाम बनाने और उससे मुक्ति पाने का प्रयास . यह दोहरी यात्रा आज भी जारी है , इसी लम्बी और जटिल यात्रा का एक दौर था भारत का मुक्ति संग्राम जिसमे भगत सिंह ने असाधारण भूमिका निभाई . आज हम उसी की कथा बताते है . क्योकि आज उसकी सख्त जरूरत है :

आजादी के बाद जनवादी कवि शैलेन्द्र ने आगाह किया था :
भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की
देश भक्ति के लिए मिलेगी सजा फिर तुम्हे फांसी की .

कितना सच कहा था उस दूरदर्शी कवि ने आज भी वास्तविक मुक्ति की बात करने वालो को शासक जीने नही देते .

आइये देखे कि भगत सिंह के जन्म के समय दुनिया . देश और परिवार का क्या हाल था यानी किस परिवेश ने भगत सिंह को गढा था . भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के एक गाँव बंगा ( अब पाकिस्तान में ) हुआ था . उस समय दुनिया में हताशा बढ़ रही थी पर कुछ लोग उत्साहित भी थे . 1905 में रूस के तानाशाह जार के विरुद्द क्रान्ति का प्रयास असफल हो गया था और जापान जैसे छोटे देश ने विराट रूस को पराजित कर दिया था . इससे गुलाम देशो में उत्साह की लहर पैदा हो गयी थी कि जैक भी जायट किलर हो सकता है . यानी छोटे देश भी बड़े साम्राज्यों को पराजित कर सकते है . दूसरी ओर दुनिया के बाजारों की लालच में उन्नत औद्योगिक देशो की प्रतिद्वन्दिता इतनी बढती जा रही थी कि दुनिया विनाश की ओर चलती ही जा रही थी . ब्रिटेन के विदेश मंत्री ग्रे ने कहा था ‘ चिराग बुझते जा रहे है हम अपने जीवन में अब इन्हें शायद जलता नही देख पाए ‘ . यही हुआ 1914 में दुनिया प्रथम विश्व युद्द में झोंक दी गयी .

भारत में 1907 में कांग्रेस गरम और नरम दल में बंट गयी और बाल – लाल – पाल यानी बाल गंगाधर तिलक . लाला लाजपत राय और विपिनचंद्र पाल ने कांग्रेस को अंग्रेजो से भीख माँगने की नीति को छोड़ने के लिए ललकारा . उसी साल 1857 के विप्लव की पचासवी वर्षगाठ मनाई जा रही थी और उसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम करार दिया जा रहा था — हालाकि यह बात 1857 में ही मार्क्स ने अपने लेख में पहले ही कह दिया था .

उस समय पंजाब में मुसलमान बहुमत में थे और हिन्दुओ पर आर्य समाज और सिक्खों पर आकालियो का प्रभाव अधिक था . भगत सिंह का परिवार सिख होते हुए भी आर्य समाज के प्रभाव में था . भगत सिंह के बाबा अर्जुन सिंह पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह यानी सारा परिवार देशभक्ति के रंग में रँगा हुआ था . ऐसे उदार . जोशीले और देश भक्त परिवार में माँ विद्यावती ने भगत को जन्म दिया . भगत जीवन भर विद्या का पुत्र बना रहा . जीवन भर विद्या का संचय करता रहा .

आइये देखे कि कैसे बना अपना भगत सिंह . कैसे – कैसे रूप है उसके सुखदेव के साथ एक अनोखी मित्रता में बंधा भगत सिंह . चन्द्रशेखर आजाद के प्रति लाड भरे सम्मान से ओत – प्रोत भगत सिंह महात्मा गांधी से कत्तई इत्तफ़ाक न रखते हुए भी उनकी इज्जत करने वाला भगत सिंह . नास्तिक होते हुए भी श्री मद भगवत गीता और विवेकानन्द के प्रति सम्मान रखने वाला भगत सिंह . माँ – बाप और परिवार के प्रति अपने असीम मोह पर नियंत्रण रखते हुए उन्हें त्याग और धैर्य के लिए समझाता भगत सिंह – अपने साथियो की पहल करने की होड़ के बीचो – बीच सहज . सरल . दृढ और गम्भीरखड़ा भगत सिंह — 114 दिनों की अनोखी भूख हडताल के संचालन के चलते रोज मर – मर कर अमर होता चला गया भगत सिंह – पढाकू भगत सिंह – खुबसूरत भगत सिंह – शांत भगत सिंह – हसोड़ भगत सिंह . इंटलेक्चुअल भगत सिंह – युगद्रष्टा भगत सिंह , दुस्साहसी भगत सिंह और प्रेमी भगत सिंह — आदि – आदि
मैं तो बस इतना ही जोड़ सकता हूँ हमारा भाई भगत . हमारा प्यारा दुलारा भगत जो हममे से ही एक था – हाड – मॉस का पुतला था . औरो से उसे भिन्न करते थे उसके सरोकार . उसकी विश्व दृष्टि उसका आत्म विश्वास और निरंतर विकासमान होना आइये जरा झांके भाई भगत की अनोखी जिन्दगी में ——————–

दार्शनिक – लालबहादुर वर्मा
साभार – ” क्या- क्यों – कैसे जिज्ञासा –

प्रस्तुती – — कबीर —

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