Sunday, October 6, 2024
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क्या प्रशांत किशोर अपनी राजनैतिक अति महत्वकांक्षा के चलते सभी पार्टियों की आंखों में चुभने लगे हैं?

बिहार के रहने वाले प्रशांत किशोर को वर्ष 2014 से पहले शायद राजनीति के जानकारों के अलावा कोई जानता भी नहीं था। उन्होंने राजनीति में शुरूआत कांग्रेस में रह कर करनी चाही थी। लेकिन उस समय तक जनता में कांग्रेस के प्रति महंगाई और भ्रष्टाचार के कारण बेहद गुस्सा था और वर्तमान प्रधान मंत्री और गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस को हराने के लिए हर तरीके अपनाया ।अन्ना हजारे का अनशन में अप्रत्यक्ष रूप से भीड़ इकठ्ठा करने से लेकर प्रशांत किशोर को अपनी पार्टी का कंसल्टेंट (पैसा लेकर सलाह देने वाला) नियुक्त करने तक। शायद भाजपा को भी यह उम्मीद नहीं थी कि वह कांग्रेस को हरा पाएगी इसी लिए उस समय के राष्टीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी में विरोध के बाद भी उस समय भाजपा की राजनीति के केंद्र बिंदु बने वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था। नरेंद्र मोदी ने अपने जोशीले भाषणों के जरिए भाजपा को भारी बहुमत से 2014 का चुनाव जितवाया था उस समय चर्चा में पहली बार प्रशांत किशोर भी आये और यह भी कहा जाने लगा कि भाजपा की इस जीत में प्रशांत किशोर का बड़ा हाथ है जबकि असलियत यह थी कि जीत में सबसे बड़ा कारण कांग्रेस काल में महंगाई और भ्रष्टाचार से जनता कांग्रेस से बेहद नाराज थी और नरेंद्र मोदी के जोशीले भाषणों ने और उनके वादों में भारतीय जनता को एक विकल्प मिल गया था। 2014 की लोक सभा चुनाव में भाजपा की विजय उसी का मूल था। उसके बाद भाजपा की सरकार बनी तब प्रधान मंत्री मोदी और अमित शाह ने दो चार मुलाकातों के बाद यह भांप गए थे कि प्रशांत किशोर अति महत्वकांक्षी हैं और भाजपा ने उनसे किनारा करना ही बेहतर समझा। उसके बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए उन्हें अपना कंसल्टेंट बनाया लेकिन किन्हीं कारणों से वहाँ कांग्रेस और सपा गठबंधन को सफलता नहीं मिली तो प्रशांत ने अपना पल्ला हार से यह कह कर झाड़ लिया कि वो सपा से गठबंधन नहीं चाहते थे। फिर जेडीयू ने उन्हें अपना कंसल्टेंट बनाया। किसी तरह से भाजपा से गठबंधन के कारण बिहार में जेडीयू की सरकार तो बनी लेकिन किसी तरह से, जबकि नीतिश कुमार ने उन्हें मंत्री का दर्जा तो दिया ही था उनकी बातों को इतना महत्व नीतिश कुमार ने दिया था कि अन्य मंत्री और विधायक उनसे नाराज हो गए थे। फिर पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने उन्हें अपना कंसल्टेंट बनाया। जबकि उस समय पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह बहुत लोकप्रिय थे बिना प्रशांत किशोर के भी वह चुनाव जीत सकते थे यही बात पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में भी था वहां ममता बनर्जी बिना प्रशांत किशोर के भी आराम से चुनाव जीत जाती। लेकिन कैप्टन अमरिन्दर सिंह के हटाए जाने के बाद वह कांग्रेस नेतृत्व से मिलकर उनके लिए काम करने की इच्छा जताई। लेकिन वह कांग्रेस में जिन शर्तों पर शामिल होना चाहते हैं वह शायद कांग्रेस तो क्या किसी भी पार्टी के लिए उनकी बात मानना सम्भव नहीं है इसीलिए कांग्रेस नेतृत्व ने प्रशांत किशोर से अपनी बातचीत रोक दी है। इसपर प्रशांत ने उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी द्वारा कांग्रेस के उत्थान के प्रयासों पर अंगुली उठाई है जिसपर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह कहा कि किसी कंसल्टेंट की बात पर कोई टिप्पणी करना जरूरी नहीं। एक बात तय है कि प्रशांत किशोर की अति महत्वकांक्षा के कारण ही सभी दल उनसे किनारा करना ही बेहतर समझ रहे हैं। मीडिया भी प्रशांत किशोर को काफी बढा चढा कर दिखाता है जैसे कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी को प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल करवाया है। जब कि कन्हैया कुमार ने स्वयं ही राहुल गांधी से मुलाकात की और जिग्नेश मेवानी को हार्दिक पटेल ने राहुल गांधी से मिलवाया था इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में जीत ममता बनर्जी ने अपनी लोकप्रियता के बल पर हासिल की। लेकिन मीडिया प्रशांत किशोर का जीत में योगदान बताया था 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत नरेंद्र मोदी जी के कारण हुई थी लेकिन मीडिया ने उसमें भी प्रशांत का योगदान बताया था। हो सकता है प्रशांत कंसल्टेंट के कारण पार्टियों को अपनी रणनीति बना कर देते हों लेकिन अगर कंसल्टेंट के बनाये रणनीति पर पार्टियों की हार-जीत होती हो तो फिर जनता की इच्छा का लोकतंत्र में क्या काम। संपादकीय News 51.in

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