कन्हैया कुमार जैसे तेज तर्रार नेता और भाषण देने वाले नेता को कांग्रेस में आये काफी समय हो गया है लेकिन कांग्रेस अभी तक कन्हैया कुमार की भूमिका को लेकर अनिश्चय की स्थिति में है।बिहार में ठीक है कि अखिलेश प्रसाद सिंह जैसे भूमिहार जाति के नेता को कांग्रेस की कमान देकर कन्हैया कुमार की राह तेजस्वी यादव को खुश कर दिया लेकिन फिर भी तेजस्वी यादव का रूख कांग्रेस के प्रति ठीक नहीं है इसी प्रकार यूपी मेंअखिलेश यादव और मायावती से तमाम तिरस्कार सह कर भी कांग्रेस अभी भी गठबंधन।की आस लगाए बैठी है,इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का भाजपा से ज्यादा कांग्रेस पर हमला और विरोध के बाद भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को नाराज न करने की कोशप्शर कांग्रेस करती रही है इसी प्रकार आंध्र में चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव के खिलाफ कोई ठोस विरोध न कर पाने के कारण कांग्रेस की विभिन्न राज्यों में दुर्दशा होती जा रही है कांग्रेस आलाकमान को सबसे पहले यह समझना होगा कि बिना उत्तरप्रदेश बिहार और पश्चिम बंगाल में मजबूत हुए बिना भारत के लोकसभा चुनाव में पार्टी कुछ नहीं कर पाएगी।इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने अपना बडा़ नुक्सान कर लिया है।कांग्रेस से गठबंधन का लाभ यूपी में सपा और बसपा ने और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जीकी पार्टी ने उठा लिया और अपने -अपने राज्यों में मजबूत हो गयी।इसके लिए तत्कालीन कांग्रेस आला कमान जिम्मेदार रहे वही गलती आज भी दोहराने का प्रयास चल रहा है।मेरा अपना स्पष्ट मानना है कि अगर कांग्रेस यूपी में सपा या बसपा से तालमेल कर भी लेती है तो उसे 3-4 सीट लोकसभा की मिल सकती है और सपा या बसपा को 7-10 के बीच सीटें मिल जाएंगी,नही भी मिल सकती हैलेकिन यहतत्कालिक लाभ तो देगा,लेकिन संगठन बर्बाद हो जाएगा,बडे़ मुश्किल से कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के प्रभार में संगठन को खडा़ किया जा सका हैनयी कमेटी थोडे़ बहुत रद्दोबदल के साथ खाबरी के नेतृत्व में नया संगठन सभी जिलों और ब्लाकों में खडा़ रहेगा और गठबंधन।के बजाय सभी लोकसभा सीटों पर पार्टी चुनाव लडे़गी तो कम से कम दो सीटों याएकाध अधिक पर पूरा जोर लगा कर जीत सकती है,जो दीर्घकाल के लिए कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा लाभकारी होगा।लेकिन बात आलाकमान को कौन समझाये। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में कन्हैया कुमार को प्रभारी बना कर संगठन को मजबूत दिशा में कदम उठाया जा सकता है कारण कन्हैया कुमार जेएन यू के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं और पूर्व में।उनके काफी साथी जो छात्र संगठन सेजेएनयू से निकले हैं प.बंगाल के हैं,उनको कांग्रेस में लाकर नये और युवाओं को कांग्रेस के। साथ जोडा़ जा सकता है और मजबूती से बंगाल में कांग्रेस को खडा़ किया जासकता है।वैसे भी कन्हैया कुमार को पश्चिम बंगाल के राजनीति की अच्छी जानकारी है। सम्पादकीयNews51.in
क्या कन्हैया कुमार जैसे तेज तर्रार नेता और प्रवक्ता का सही इस्तेमाल कांग्रेस नहीं कर पा रही है ?क्या पश्चिम बंगाल का प्रभार कन्हैया कुमार को देना सबसे सही कदम नहीं होगा?
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