Saturday, July 27, 2024
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काशी के साहित्यकार (बनारस का हर अंदाज निराला)

काशी के साहित्यकार ( बनारस का हर अंदाज निराला )

राजनीति में चर्चिल का , साम्यवाद में लेलिन का , विज्ञान में आइसटीन का , दाल में हिंग का और चूरमा में चीनी का जितना महत्व है , उतना ही वर्तमान हिन्दी में भारदेन्दु जी का | काशी को इस बात पर गर्व है कि उसने आधुनिक हिन्दी के जन्मदाता को अपने यहाँ जन्म दिया जो किसी बादशाह से कम नही था | जिसकी देन को हिन्दी जगत तब तक याद रखेगा जब तक एक भी हिन्दी भाषा — भाषी मौजूद रहेगा | भारदेन्दु जी के समकालीन साहित्यकारों में बाबा दीनदयाल गिरी , काष्ठ जिह्वा स्वामी , सरदार कवि , लच्छीराम कवि , पंडित दुर्गादत्त , हनुमान , सेवक , पंडित ईश्वरदत्त , राजा शिवप्रसाद , ‘ सितारे हिन्द ” चैतन्यदेव , रामकृष्ण वर्मा , कार्तिक प्रसाद खत्री , महामहोपाध्याय सुधाकर दिवेदी , प्रतापनारायण मिश्र और बाबू राधाकृष्ण आदि थे | इसके बाद तो काशी हिन्दी साहित्य का गढ़ हो गया | गद्द साहित्य के लेखको में किशोरी लाल गोस्वामी , रामदास गौड़ , बाबू श्यामसुंदर दास और पंडित रामनारायण मिश्र की सेवाए अमूल्य है |
लाखो अहिन्दी भाषा — भाषियों को हिन्दी सिखने के लिए पेनसिलिन इंजेक्शन देने वाले देवकीनंदन खत्री काशी की ही विभूति रहे | काशी का लमही ग्राम उस दिन अमर हो गया जिस दिन यहा उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द्र जी ने जन्म लिया |
ब्रजभाषा के अंतिम कवि जगन्नाथ प्रसाद ”रत्नाकर ” और छायावाद के प्रवर्तक प्रसाद जी काशी की गलियों में आँख मिचौनी खेलते रहे | हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रथम कहानी ” उसने कहा था ” काशी की देन है | मेरी नजरो में हिन्दी में तीन सर्वश्रेष्ठ कथाकार है | स्वर्गीय बल्देवप्रसाद मिश्र , द्विजेन्द्र प्रसाद मिश्र ‘ निर्गुण ” और राधाकृष्ण | इनमे प्रथम दोनों काशी की ही विभूति है | यो तो काशी में कथाकारों का पूरा स्टाक भरा है , उनमे कौन कितना महान है , यह बताना मुश्किल है | उनकी महानता का पता उनकी रचनाओं में नही लगता , बल्कि चाय – चुस्कियो लेते हुए जब वे वे अपने बारे में बताना शुरू करते है तब श्रोताओं को उनकी महानता ज्ञात होती है | सभी अपने को गोर्की , चेखव , मोपांसा , लारेंस , कुप्रिन , माम , हेनरी और प्र्म्चन्द्र समझते है | कुछ लोग तो थोक — पीटकर गधो को घोड़ा बनाते है , यानी अनाड़ियो को लेखक बना देते है | इधर नए लेखक भी ऐसे बेरहम है कि जहां उनकी रचना कही छपी बस वे अपने को गुरु समझने लगे | कहने का मतलब ———
अक्षोहिणिया स्त्रष्टाओ की ,चेले कम उस्ताद बहुत है |
तिकड़म के बल पर बन जाने वाले कपिल कणाद बहुत है ||
ग्रंथो की संख्या विशाल है सर्जन कम , उन्माद बहुत है |
है स्वतंत्रता , भाई साहब ! देने वाले दाद बहुत है ||
काशी के वर्तमान कथाकारों में वयोवृद्ध श्री विनोद शंकर व्यास , रूद्र काशिकेय , मोहनलाल गुप्त , शिवप्रसाद सिंह , हरिमोहन , कमला त्रिवेणी शंकर , राजकुमार , गिरिजाशंकर पाण्डेय , हरीश और उदीयमान कंचन कुमार आदि हिन्दी साहित्य का भंडार भरते जा रहे है |
एक विशेष शैली के कथाकारों में श्री कामता प्रसाद कुशवाहा कान्त अपने पाठको के निकट सर्वाधिक लोकप्रिय रहे | तुकान्त शैली के लेखको में काशी के प्रमुख उपन्यासकार श्री ज्वालाप्रसाद गुप्त ‘ केशर ‘ गोविन्द सिंह और ब्रम्हदेव ‘मधुर ‘ उल्लेखनीय है | अपनी रचनाओं के द्वारा अल्पकाल में इन लोगो ने जितने पाठक बनाये , वह किसी भी लेखक के लिए गर्व का विषय हो सकता है | श्री केशर की गणना इन दिनों काशी के प्रमुख उपन्यासकारो में की जा रही है |
हिन्दी आलोचना के जनक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल , डाक्टर श्याम सुन्दर , आचार्य केशव प्रसाद मिश्र और लाला भगवान ‘ दिन ‘ जो स्थान बना चुके है , उसे स्पर्श कर पाना आज भी मुहाल हो उठा है | आधुनिक समालोचको में स्वर्गीय चन्द्रबली पाण्डेय , डाक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी , विश्वनाथ प्रसाद , डाक्टर रामअवध द्विवेदी , डाक्टर जगन्नाथ प्रसाद शर्मा और शांतिप्रिय द्विवेदी अपने विषय के महारथी है | तरुण आलोचकों में श्री महेन्द्रचन्द्र राय , त्रिलोचन शास्त्री , चन्द्रबली सिंह , नामवर सिंह , विजय शंकर मल्ल और बच्चन सिंह प्रमुख है | श्री महेन्द्र जी मार्क्सवादी आलोचकों में ऊँचा स्थान रखते है | आप लिखते बहुत कम है , लेकिन जो लिखते है वह बिलकुल ठोस | हिन्दी और बांग्ला में आप समान गति में लिखते है | शास्त्री लिखते कम है , भाषण के रूप में प्रसारित अधिक करते है | चन्द्रबली सिंह जी बड़े संगदिल आलोचक है , कुछ लोग इन्हें ” जानमारू ” आलोचक कहते है | उभरते हुए आलोचकों में नामवर सिंह प्रगति पर है | वह दिन दूर नही है जब काशी के ये आलोचक हिन्दी साहित्य में मूर्धन्य स्थान प्राप्त कर लेंगे | इतिहास , दर्शन , धर्म और संकृति के विद्वानों में महामहोपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज , डाक्टर भगवानदास , डाक्टर मंगलदेव शास्त्री , महामहोपाध्याय पंडित नारायण शास्त्री खिस्ते , पंडित दामोदर गोस्वामी , डाक्टर सम्पूर्णानन्द ,गंगाश्न्क्र मिश्र , डाक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल , डाक्टर मोतीचन्द्र , डाक्टर राजबली पाण्डेय और रायकृष्ण दास की सेवाए अविस्मर्णीय है |
मूल लिपि में बौद्ध साहित्य के विश्व में एकमात्र अन्वेषक आचार्य नरेन्द्रदेव और प्रसिद्ध समाजशास्त्री तथा विचारक राजाराम शास्त्री की सेवाओं से हिन्दी साहित्य गौरवान्वित हुआ है | प्रसिद्ध कोशकार बाबू रामचन्द्र वर्मा , मुंशी कालिकाप्रसाद और मुकुंदीलाल जी काशी की ही विभूति है |
……प्रस्तुती .कबीर ……..
…आभार विश्वनाथ मुखर्जी ” बना रहे बनारस ”

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