Tuesday, December 10, 2024
होमराजनीतिकांग्रेस से दूरी, माया की मजबूरी ,सबसे बड़ा कांटा बनी प्रियंका, अखिलेश...

कांग्रेस से दूरी, माया की मजबूरी ,सबसे बड़ा कांटा बनी प्रियंका, अखिलेश यादव भी सहमें

उत्तर प्रदेश में राजनीति का स्वरुप काफी जटिल तो है किंतु इसे समझना उतना कठिन राजनीतिक पंडितों और राजनीति के मंझे खिलाड़ियों के लिए नहीं है। उन्हीं में एक बसपा सुप्रीमो मायावती भी हैं
कल मायावती ने कांग्रेस द्वारा सपा बसपा गठबंधन के लिए 7 सीट उत्तर प्रदेश में छोडे जाने पर मायावती का ट्वीटर पर यह कहना कि” कांग्रेस जबरदस्ती यूपी में गठबंधन हेतु सात सीटें छोड़ने की भ्रांति ना फैलाएं, हमारा गठबंधन अकेले ही बीजेपी को पराजित करने में पूरी तरह सक्षम है। “और तुरंत बाद अखिलेश यादव ने भी ट्वीट कर लगभग इसी बात को दोहराया।, यूं ही नहीं है इसके पीछे मायावती की वही पुरानी रणनीति है कि जब तक कांग्रेस कमजोर रहेगी तबतक उनकी मजबूती बनी रहेगी। इधर उन्होंने यही रणनीति अन्य राज्यों में भी पांव पसारने की नियत से कांग्रेस को न जीतने देने और कमजोर करने की कोशिश में पहले गुजरात फिर कर्नाटक बाद में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीस गढ में भी या तो गठबंधन करके या अकेले ही चुनाव लडा और क ई स्थानों पर नुकसान भी पहुंचाया । किन्तु जब बात उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में गठबंधन की आई तो मात्र दो सीट कांग्रेस को छोड़कर मायावती ने सपा और रालोद के साथ गठबंधन किया। अखिलेश यादव और अजीत सिंह उनकी बातों के विरोध न कर उनकी हां में हां मिलाई तो उसका कारण रहा मायावती का वोट बैंक। उस समय उन्हें अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध का, जहाँ मायावती को सीट मिली, वहाँ सपा नेताओं का विरोध, जहाँ सपा को सीट मिली वहाँ बसपा के बड़े नेताओं का विरोध और आर एलडी में भी भारी विरोध हो रहा है और नेता पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में जा रहे हैं। यहां तक ग़नीमत थी मायावती की सोच अपनी जगह सही थी। सब कुछ सही चल रहा था। किंतु मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को संसद के अंदर दुबारा प्रधान मंत्री बनने का आशीर्वाद देने और अखिलेश यादव द्वारा उन्हें टिकट दिऐ जानेसे और पूर्व में मायावती और भाजपा के मेल मिलाप तथा मायावती( कब किधर जाएंगी) के रवैये ने भी संशय बढा दिया है।
गठबंधन की मुसीबत की शुरुआत हुई कांग्रेस में प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की महासचिव बनकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपने से। मायावती के बारे में सभी अवगत हैं कि वह अपने समुदाय के किसी भी नेता को आगे नहीं बढने देना चाहती हैं इसी लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस समुदाय के युवाओं में बेहद लोकप्रिय चंद्र शेखर उर्फ रावण जेल में बंद रहे उस समय मायावती ने उन्हें भाजपा का एजेंट तक कहा था। उनसे मेरठ में प्रियंका गांधी का अस्पताल में मिलने जाने से मायावती का क्रोध भडक उठा।
दूसरी तरफ गठबंधन से ठुकराये जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी समझ में आ गया था कि जब तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश और बिहार में कमजोर रहेगी केन्द्र की सत्ता पर कभी काबिज नहीं हो सकती। और गठबंधन दल इसी तरह उसे किनारे रखेंगे।
उधर शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया ने भी अपना संगठन खडा कर लिया है जोअखिलेश यादव की पार्टी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। कुछ ऐसी सीटें भी हैं जहाँ शिवपाल यादव की पार्टी अच्छा कर सकती है जिससे अखिलेश यादव को परेशानी हो सकती है।
कांग्रेस के लिए अच्छी खबर यह है कि प्रियंका गांधी का उत्तर प्रदेश में दखल होने के बाद से हालात तेजी से बदल रहे हैं सपा बसपा और रालोद में गठबंधन के बाद से जिस कांग्रेस को मुकाबले से बाहर माना जा रहा था एकाएक पिछडे वर्ग को अपने साथ जोड़ने की कोशिश के साथ अल्पसंख्यकों को रिझाने में कांग्रेस जुटी है अन्य पिछडी जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले छोटे दलों से गठबंधन का प्रयोग कारगर रहा तो अल्पसंख्यकों के लिए पंजे का बटन दबाने का बड़ा विकल्प हो सकता है यह बात जमीयत -उल -कुरैश के अध्यक्ष एडवोकेट युसुफ कुरैशी के कथन से भी लगता है जिसमें उन्होंने कहा है कि मुस्लिमों ने जब से कांग्रेस छोडा है तबसे उनका इस्तेमाल वोटबैंक की तरह किया जा रहा है। खासकर जाति आधार पर बनी पार्टीयां मुस्लिम वोटों के जरिए सत्ता हासिल कर अपनी बिरादरी का ही हित साधती हैं। इधर उधर भटकते मुस्लिम समाज को ठोस सियासी मुकाम नहीं मिल पा रहा है। और इन्ही सब बातों से मायावती आशंकित हैं और कांग्रेस से कम प्रियंका गांधी की बढती गतिविधियों और लोक प्रियता से ज्यादा परेशानी हो रही है।
उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी समझ आ गया है कि यदि कांग्रेस को अपनी खोई हुई जमीन वापस पानी है तो उसे अपने पुराने गढों में मजबूती से केवल लडना ही नहीं होगा बल्कि अपने आत्म विश्वास को भी मजबूत करना होगा। यदि वह महागठबंधन बनाने की कोशिश में एक के बाद एक राज्यों में दूसरे दलों की दया कृपा पर निर्भर रहेगी तो फिर एक मजबूत राष्ट्रीय दल के रूप में कभी नहीं उभर पाएगी। उत्तर प्रदेश में गठबंधन दलों के रवैए से कांग्रेस को यह सीख तो लेनी ही पडेगी।
एक मजबूत राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस का उभरना इसलिए भी आवश्यक है क्यों कि अन्य कोई विपक्षी दल मेरे विचार में इस स्थिति में नही है ।कांग्रेस अध्यक्ष को प्रियंका गांधी की भूमिका को मात्र उत्तर प्रदेश तक सीमित न रखकर बिहार और पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश,मध्य प्रदेश में भी कुछ रैलियां करायें,ताकि उनकी लोक प्रियता का लाभ कांग्रेस अधिक से अधिक ले सके।
सम्पादकीय —

पिछला लेख
अगला लेख
RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments