Saturday, July 27, 2024
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कांग्रेस में विद्रोह या कांग्रेस रुपी समुद्र में मंथन

आजकल कांग्रेस में 23 सीनियर नेताओं के गांधी नेहरु परिवार के विरूद्ध चिट्ठी लिख कर उसे मीडिया में लीक होने का मामला छाया हुआ है एक तरफ भाजपा नेता मजे ले लेकर न्यूज चैनलों में मजे ले रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता इस चिट्ठी को लिखने की टाइमिंग और उसे मीडिया में लीक करने के कारण उन सभी 23 नेताओं को पार्टी नेतृत्व का विरोध करने और भाजपा के मन की बात करने और उनके हाथों खेलने के कारण उन्हे पार्टी से निष्कासित करने की मांग कर रहे हैं अब इन नेताओं द्वारा चिट्ठी लिखने से उत्पन्न हुई परिस्थितियों से पूर्व उन नेताओं के नाम और उनके बैक ग्राउंड के साथ ही उनकी पूर्व की और वर्तमान की पार्टी में हैसियत और उनकी जनता में कितनी पैठ है इसे जानना बहुत जरूरी है और इनके विद्रोह का असली कारण क्या वास्तव में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए किया गया है अथवा पार्टी में उनके घटते रुतबे या दुबारा राज्यसभा आदि में एक बार फिर जाने की जद्दोजहद है। 23नेताओं में सर्वश्री गुलाम नबी आजाद, आनन्द शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरुर, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद,, भूपेंदर सिंह हुड्डा, राजेंद्र कौर भट्टल, विरप्पा मोईली, पृथ्वीराज चौहान, पी़जे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, राजबब्बर, अरविंद सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, कुलदीप शर्मा, योगानंद शास्त्री, संदीप दिक्षित हैं। इनमें से सभी के अपने -अपने दुखड़े हैं अपनी नाराजगी का कारण है इनमें से अधिकांश नेता कभी गांधी नेहरु परिवार के बेहद करीबी और विश्वास पात्र हुआ करते थे। खासकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी तक के बेहद करीब रहे ।और इसको इन्होने खूब लाभ भी उठाया, अधिकतर इनमें जनाधार विहीन होते हुए भी गांधी नेहरु परिवार की करीबी होने के कारण पार्टी के बड़े पदों पर आसीन होते रहे। कुछ अपने इलाकों में मजबूत रहे, कुछ तो पूर्णतया हवा -हवाई रहे। इधर राहुल गांधी के कांग्रेस में उदय के पश्चात ही इन नेताओं की पूछ कम होने लगी उन्होंने अपनी अलग टीम बनानी शुरू कर दी इसमें उन्होंने क ई बड़े और जनाधार वाले नेताओं की भी उपेक्षा की, जैसे भूपेंदर सिंह हुड्डा ,उनमें प्रमुख हैं उनकी उपेक्षा कर अशोक तंवर जैसे कमजोर नेता को हरियाणा का नेतृत्व देना, विधान सभा चुनाव के आखिर में सोनियां गांधी के बीच में पड़ने से भूपेंदर सिंह हुड्डा को पुनः हरियाणा का अध्यक्ष बनाया गया उन्होंने कांग्रेस की लाज तो बचाई लेकिन इतने विलम्ब के कारण कांग्रेस हरियाणा में सत्ता से दूर ही रह गई। जो कांग्रेस के लिए बड़ी क्षति थी इसी प्रकार कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी राहुल गांधी के गुडबुक में नहीं थे किंतु सोनियां गांधी ने मामला संभाल लिया था गुलाम नबी आजाद शुरू से ही हवाई नेता थे ।मुस्लिम होने का भरपूर लाभ इन्हें मिला। कपिल सिब्बल दिल्ली में अपने इलाके में इनकी पकड़ है और सुप्रीम कोर्ट के जाने माने अधिवक्ता हैं। आनन्द शर्मा, मनीष तिवारी विवेक तन्खा, अजय सिंह, मुकुल वासनिक, उद्योग पति मिलिन्द देवड़ा, राजबब्बर, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, योगानंद शास्त्री, कुलदीप शर्मा जनाधार विहीन नेता हैं इनके कांग्रेस से जाने से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता दिखाई दे रहा है। राजेंद्र कौर भट्टल और पी. जे. कुरियन कभी अपने राज्यों में काफी मजबूत हुआ करती थीं ।भट्टल तो पंजाब की मुख्यमंत्री तक रह चुकी हैं किन्तु आज के समय में कुरियन और भट्टल काफी बुजुर्ग हो चुके हैं, वीरप्पा मोईली कभी कर्नाटक में पिछडों के बहुत बड़े नेताओं में एक थे किन्तु आज आभा विहीन हैं। कभी रेणुका चौधरी आंध्र प्रदेश में फायर ब्रांड नेता थीं और कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री तक रह चुकी हैं आज भी अपने क्षेत्र की बड़ी नेता हैं जितिन प्रसाद भी अपने इलाके बड़े नेता हैं उनकी अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ है संदीप दिक्षित अपनी माता शीला दीक्षित की छाया मात्र हैं किंतु अरमान बड़े हैं। अब बात राहुल गांधी की कर लेते हैं। जबसे राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान मिली उन्होंने पुराने और हवाई नेताओं को महत्व देना कम कर दिया न ई पीढी को आगे बढाने की सनक ने भी पुराने कांग्रेसी नेताओं की नींद ही उड़ा दी। बेहद जोशीले और बेधड़क होकर अपनी बात बिना डरे भाजपा सरकार में भी कहते हैं किंतु अति उत्साह में कभी -कभी ऐसा बोल जाते हैं जो पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर देती है वह विपक्ष के इकलौते नेता हैं जो इस सरकार की आलोचना करने से घबराते नहीं हैं बाकी सभी दलों के नेताओं ने डर के कारण चुप्पी साध रखी है। किंतु राहुल गांधी में कमियां भी बहुत हैं जैसे पार्टी का मजबूत संगठन राज्यों में खड़ा नहीं कर पाये जो किसी भी पार्टी की जान हुआ करती है। बड़े राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में कांग्रेस का मजबूत संगठन न खड़ा कर पाना उनकी बड़ी विफलता है दूसरे उनका अक्खड़पन, जिसके कारण आसाम जैसा राज्य कांग्रेस के हाथ से निकल गया। (बदरूद्दीन की पार्टी से तालमेल न करना), माधव राव सिंधिया प्रकरण पर समय रहते कदम न उठाने की गलती करना)। राहुल गांधी गांधी स्वयंम हर काम करना चाहते हैं। जबकि राज्य सरकार की आलोचना वहां के राज्य स्तरीय नेताओं और प्रवक्ताओं द्वारा किया जाना चाहिए, स्वयं करते हैं। राहुल गांधी को अपनी इन कमियों को दूर करना होगा। और ऐसे मामले पर (बेरोजगारी, महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी और लोकतंत्र पर कुठाराघात, महिलाओं पर अत्याचार और उनकी समस्याओं को हल करने केलिए उनका दिल जीतना, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग को अपने अल्पसंख्यकों को पार्टी में भरोसा दिलाने का प्रयास करना चाहिए। न कि चीन और पाकिस्तान जैसे मामलों पर अनाप-शनाप बयान बाजी करना चाहिए, विदेश मामलों के लिए एक अलग विंग बनाना चाहिए जो विदेशी मामलों पर विचार कर मीडिया में अपनी बात रखे। हर मामले में राहुल गांधी को बयानबाजी से बचना चाहिए। विशेष कर राज्य स्तरीय मामलों में राज्य नेताओं को अपनी बात कहने के लिए निर्देश देना चाहिए। जरा प्रियंका गांधी पर भी बात कर ली जाय। उत्तर प्रदेश की कमान सम्भालने के बाद उन्होंने संगठन पर ध्यान दिया। वह इस बात से अच्छी तरह से अवगत हैं कि बिना मजबूत संगठन खड़ा किए कुछ भी सम्भव नहीं है निष्क्रय संगठन को बदल कर वर्षों से जमे मठाधीशों को हटा कर नया संगठन खडा किया आज उत्तर प्रदेश में अकेली विपक्षी दलों में मात्र कांग्रेस है जो सरकार के खिलाफ सड़क पर लड़ती दिख रही है। मेरा यह स्पष्ट मानना है कि जब बिखराव या विद्रोह होता है तो उससे लाभ और हानि दोनों स्थिति बनने के चांस रहते हैं अब देखना दिलचस्प होगा कि सोनियां गांधी कोई कठोर निर्णय शीघ्र लेती हैं या सदा की भांति अनिर्णय की स्थिति बनाए रखती हैं। जल्द निर्णय न लेना घातक भी हो सकता है अभी स्थिति गांधी नेहरु परिवार के नियंत्रण में है क्यों कि सभी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और मनमोहन सिंह सहित सभी एमपी गांधी नेहरु परिवार के पक्ष में जमकर खड़े हैं ।और न ई पीढी के नेताओं को आगे बढ़ने का बेहतरीन अवसर है इसलिए सोनियां गांधी को बिना दबाव में आये कठोर निर्णय शीघ्र ही लेना पार्टी हित में होगा अर्थात कांग्रेस रुपी समुद्र में मंथन से हो सकता है कुछ अच्छा ही निकल कर आये। क्योंकि कांग्रेस को शून्य से ही शुरूआत करनी है। सोनियां गांधी अस्वस्थता के कारण ज्यादा सक्रिय नहीं रह पा रही हैं। इस लिए पूर्णकालिक अध्यक्ष की भी शीघ्र आवश्यकता है।

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