Sunday, September 8, 2024
होमराज्यउत्तर प्रदेशउत्तर प्रदेश की राजनीति पिछले तीस सालों से जातिवाद के मकड़जाल में...

उत्तर प्रदेश की राजनीति पिछले तीस सालों से जातिवाद के मकड़जाल में फंसी है, क्या वोटर खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारता है?

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के पतन के बाद से अबतक (लगभग 30 वर्षों से) जातिवाद का नंगा नाच होता रहा जिसका लाभ सपा और बसपा दोनों को ही मिलता रहा और यही दोनों कमोबेश सत्ता में काबिज होते रहे 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के उदय के बाद यूपी में हुए साम्प्रदायिक उभार ने जातिवादी विचारधारा को प्रभावित किया जिसके कारण यूपी में भाजपा की सरकार भारी बहुमत से बनी और मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ जी बने और उन्होंने भी अपनी पार्टी की विचारधारा को आगे बढाया ।एग्जिट पोल इस चुनाव में भी भाजपा की जीत की बात कह रहे हैं और सभी चैनल बढचढ कर भाजपा की जीत की बात तो कर रहे हैं और भाजपा मजबूत स्थिति में है भी। किंतु 2014,2017 की तत्समय की परिस्थितियों में और आज की परिस्थितियों में काफी अंतर आ चुका है। पहला मोदी जी आज भी प्रभावशाली तो हैं लेकिन पहले जैसे नहीं। पहले स्वयं भाजपा के लोग भी कहते थे मोदी जी चुनावी दौरे /रैली के बाद फिजां पूरी तरह हमारे पक्ष में हो जायेगी और ऐसा ही होता था लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा ,महाराष्ट्र , पंजाब चुनाव के बाद ये मिथक भी टूट गया। इस विधान सभा चुनाव में एक बार फिर पिछड़ा समुदाय और अल्पसंख्यक समुदाय की गोलबंदी मायावती के पराभव और कांग्रेस के पुनरोदय ने भाजपा के माथे पर शिकन ला दिया है आम आदमी पार्टी, व अन्य सिर्फ कांग्रेस का वोट काटने के लिए, गोवा में टीएमसी कांग्रेस का वोट काटने के लिए, उत्तर प्रदेश में ओबेदुल्ला ओबैसी की पार्टी सपा और कांग्रेस के वोट काटने के लिए ही चुनाव लड़ रहे हैं यह बात सभी अब जान चुके हैं। पंजाब में एक समय कांग्रेस को टक्कर दे रही थी लेकिन ईडी की मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी के भतीजे के यहाँ छापेमारी ने दलित मुख्य मंत्री चरनजीत सिंह चन्नी काफी मजबूत स्थिति में आ गए हैं। अब उत्तर प्रदेश की बात करें जहाँ पहले जातियों की जानकारी आवश्यक है क्योंकि यहाँ जाति आधारित राजनीति का बोल बाला रहा है। मुस्लिम 20फीसद,यादव0,25 फीसदी दकीलणलित जिसमें सबसे अधिक गुर्जर हैं, मल्लाह और निषाद भी गंगा के तट पर पड़ने वाले शहरों की 8-10 सीटों पर तथा कुशवाहा, लोधीी आदि क ई जातियां छिटपुट शहरों में8 -10जिलो तक सीमित हैं। दूसरी बात कांंग्रेसपार्टी इस बार संंगठन कोमजबूत *लड़की हूं, लड़़सकती हूं* के नारे के साथ 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिया है जिसका भारी असर भी उत््तरप्रदेश में पड़़ा है प्रियंका गांधी की संगठन को लेकर सड़़कपर लड़ी गई लड़ाई अब काम आ रही है जोभीअपने विधान सभा में जितनी मजबूती के साथ कांंग्रेस की लड़ाई सड़क पर उतर कर लड़ााहै उन्हें ही टिकट भी मिला है। इसलिए मेरे अनुमान के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और सपा बन कर उभरेगी लेकिन कोई भी दल सरकाार नहीं बना पायेगा। और बसपा भी 15 सीट और कांग्रेस 25-35 सीट लाएगी जो एग्जिट पोल बसपा को और कांंग्रेसको दहाई तक नहीं पहुंचा दिखा रहे हैं चुनाव बाद अगर मगर और किंतु -परंतु करते हुए अपना मुँह चुराते नजर आएंगे । सम्पादकीय – News 51.in

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments