Thursday, December 5, 2024
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उ.प्र.की 17 जातियों अनुसूचित वर्ग में शामिल करने की सभी अधिसूचनाएं रद्द की-इसके राजनीतिक मायने

प्रयागराज (उ. प्र.) 1सितम्बर- माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के मुख्य न्याय मूर्ति राजेश बिंदल और न्याय मूर्ति जे.जे.मुनीर की खंडपीठ ने गोरखपुर की डा. भीमराव अम्बेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिती की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद इस संम्बंध में जारी सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दिया। और तल्ख टिप्पणी भी सरकारों के कामकाज पर करते हुए कहा कि संवैधानिक अधिकार न होने के बावजूद जानते बूझते भी उत्तर प्रदेश में राजनैतिक लाभ लेने के लिए बार-बार अनुसूचित जातियों की सूची में बदलाव किया जा रहा था। संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत यह अधिकार केवल संसद को है न कि प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार को। मालूम हो कि पहले अखिलेश यादव की सरकार ने 21 व 22 दिसम्बर 2016 में ठीक चुनाव के पहले दो अधिसूचना जारी की थी फिर 24 जून 2019 में योगी सरकार ने हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला देकर अधिसूचना जारी की। और लगभग डेढ दर्जन पिछड़ी वर्ग में आने वाली जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने संम्बंधी आदेश जारी किया। बाद हाईकोर्ट ने अखिलेश सरकार की अधिसूचना के अमल पर रोक लगाई थी और योगी सरकार के आदेश पर भी रोक लगी। अब इन सब के बाद एक रास्ता सुप्रीम कोर्ट में जाने का अखिलेश यादव और योगी सरकार के पास बचा है। और अंत में मामला केंद्र सरकार के पास जाना है। एक तथ्य स्पष्ट है कि दोनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और योगी आदित्य नाथ यह बात भली- भांति जानते थे कि उन्हें इस तरह का कोई आदेश या अधिसूचना जारी कर अनुसूचित वर्ग में छेड़ छाड़ का अधिकार नहीं है किंतु दोनों मात्र जनता का वोट उत्तर प्रदेश चुनाव में पाने के लिए यह दांव चले थे। अब मामला भाजपा की केन्द्र सरकार के पास आ गया है इस आदेश का सबसे अधिक लाभ भाजपा की केन्द्र सरकार को मिलना है और वह संसद के जरिए इसका लाभ उठाने का अवश्य ही प्रयास करेगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत से ज्यादा पिछड़े वर्ग के लोग हैं इसका लाभ अखिलेश यादव को मिलना था अब नहीं मिलेगा।

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