पहले के जमाने में कोई नेता या कोई दल दल-बदल करता था ऐसा सुनने में बहुत कम आता था कारण अपने दल के प्रति निष्ठा और दल की नीतियों से उनकी सहमति और आस्था के कारण नेता सारी जिंदगी अपने दल के प्रति आस्थावान रहता था। इक्का दुक्का नेता ही दल बदलता था समय बदला लोगों और नेताओं का सत्ता पक्ष की तरफ झुकाव बढा। लोग सड़क पर सत्ता पक्ष के खिलाफ सड़क पर लड़ाई लड़ने और पुलिस के डंडे खाने का दम नेताओं में अब नहीं रहा। लोगों में जल्द ही आगे बढ़ने, सत्ता पक्ष में रहकर रूतबा और सत्ता का लालच लोगों में ऐसे दल में जाने के लिए प्रेरित करता है इसी कारण जब चुनाव नजदीक आता है तो नेताओं में ऐसे दल के बड़े नेताओं की परिक्रमा शूरू हो जाती है ऐसे में एक नहीं क ई ऐसे कारण सामने आये हैं जिनके कारण नेता दल-बदल करते है दल में बड़े नेताओं द्वारा उपेक्षा, टिकट चुनाव में न मिलने की उम्मीद, दल की चुनाव में जीतने की क्षीण सम्भावना या किसी दल द्वारा दिया गया आश्वासन, पद का लालच, आदि शामिल है अभी हाल ही में कुछ दलों के नेताओं का तृणमूल कांग्रेस में ऐसे राज्य के नेताओं द्वारा शामिल होना,जहां तृणमूल कांग्रेस का वजूद तक नहीं है पता करने पर पता चला कि कुछ सीट पर राज्य सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस जीत सकती है और तृणमूल अन्य राज्यों में अपना वजूद बनाना चाहता है। तो क ई नेता इसी आस में दल-बदल कर रहे हैं तो क ई क ई अन्य कारणों से सुविधा नुसार दल बदल रहे हैं इसका नजारा पांच राज्यों में आगामी कुछ महीनों में होने वाले चुनाव में मची आपाधापी में भी दिख रहा है। खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड और गोवा में साफ देखा जा रहा है कोई भी पार्टी यह अपने पुराने समर्पित नेताओं के बारे में ये नहीं सोच रही कि इनके उपर क्या गुजरेगी जब किसी अन्य दल का आया नेता तुरंत चुनावी टिकट पा लेगा। किसी को किसी की कोई चिंता नहीं, सभी पार्टियों को चुनाव जीताने वाले कंडीडेट चाहिए। नैतिकता, अनैतिकता, निष्ठा, संयम धैर्य और पार्टी के प्रति निष्ठावान होना कोई मायने नहीं रखता है चुनाव आयोग या कोई ऐसी संस्था नहीं जो इनसब पर कोई अंकुश लगा सके। इस समय उत्तर प्रदेश में सभी को भाजपा और सपा के बीच मुकाबला होना दिख रहा है। आये दिन समाचारों में दिख रहा है कि अमुक नेता इस दल में अपनी पार्टी छोड़कर गया और इस दल की इस पार्टी से तालमेल की बात चल रही है सबसे ज्यादा दल भाजपा और सपा से गठबंधन कर रहे हैं पहले से यूपी में बेहद कमजोर कांग्रेस को मजबूत करने में जीजान से प्रियंका गांधी जुटी हैं तो उन्ही के दल के कुछ नेता अनाप-शनाप बयान देकर अपनी महत्ता जताने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ कभी मजबूत रही बसपा मायावती के अदूरदर्शिता पूर्ण निर्णयों के कारण पस्त नजर आ रही है। उनके लगभग सभी बड़े नेताओं ने दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं ऐसे में कांग्रेस अगर तीसरे नंबर की पार्टी बन जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पहले और दूसरे नम्बर की लड़ाई भाजपा और सपा के बीच होनी तय है तो तीसरे और चौथे नम्बर की लड़ाई कांग्रेस और बसपा के बीच होनी है और प्रियंका गांधी की तीन सभाओं में उमड़ी भीड़ किसी को भी चौंका देगी इसीलिए मैं कांग्रेस को यूपी में बसपा से ज्यादा सीट जीतने की बात कर रहा हूँ अलबत्ता भाजपा और सपा में कौन यूपी की सत्ता पर काबिज होगा इसपर भविष्यवाणी कर पाना अभी सम्भव नहीं है क्यों कि ओपीनियन पोल दिखाने वाले भी रोज हफ्ते -हफ्ते भाजपा सपा को नजदीकी लड़ाई में ला रहे हैं तो पहले की अपेक्षा बसपा के वोट प्रतिशत में गिरावट और कांग्रेस के वोट परशेंटेज में थोड़ा -आगे बढते दिखाते जा रहे हैं फिलहाल आगे और भी ऊंच-नीच मतदाताओं में होगा और चुनाव आते आते भी यह लड़ाई चलती रहेगी। उत्तराखंड में फिलहाल भाजपा और कांग्रेस की कांटे की टक्कर है यही हाल गोवा में भी है और पंजाब फिलहाल चेन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से कांग्रेस काफी मजबूती से है लेकिन असली लड़ाई उत्तर प्रदेश में ही है देखते हैं। सम्पादकीय
आज के नेता दल-बदल क्यों करते हैं?
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