आजमगढ मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर आजमगढ -वाराणसी मार्ग पर स्थित तहसील लालगंज है जहां आजमगढ की दस विधान सभा सीट में एक लालगंज विधान सभा सीट भी है यहां तहसील लालगंज और 4 ब्लाक भी इस 351 विधान सभा में है और कमाल की बात ये है कि यह सवर्ण बाहुल्य इलाका होने के बावजूद सुरक्षित विधान सभा सीट है 1967,1969और 1974 में कांग्रेस के लोकप्रिय और सर्वसुलभ नेता त्रिवेणी राय चुनाव जीते थे और मात्र एक बार भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह बहुत मामूली वोटों से चुनाव जीते थे उसके बाद सुरक्षित सीट घोषित हो गया। सवर्ण बाहुल्य इलाका होने के बावजूद यह सपा-बसपा का गढ बना हुआ है। इमरजेंसी लगने के बाद 1977 को जनता पार्टी के इशदत्त यादव ने चुनाव जीता अवश्य लेकिन पुनः 1980 को कांग्रेस के त्रिवेणी राय पुनः चुनाव जीत गए।किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र रवींद्र राय 1982 में सहानुभूति लहर में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते लेकिन वह अपने पिता की तरह लोकप्रिय नहीं हो पाये। 1985 के विधान सभा चुनाव में जनता दल के श्री प्रकाश सिंह उर्फ़ झानू सिंह चुनाव जीत गए और 1989 का चुनाव भी उन्होने ही जीता उसके बाद सपा बसपा के उदय के बाद पहली बार गठबंधन कर1991 में चुनाव लड़ने में लालगंज की सीट बसपा को मिली और सुखदेव राजभर ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर भाजपा के श्री नरेंद्र सिंह को मात्र 24 वोटों से हरा दिया था उसके पश्चात सेमध्यावधि चुनाव 1993 में दोबारा सुखदेव राजभर पुनःइस सीट पर विजयी हुए, लेकिन 1996 में भाजपा के नरेंद्र सिंह ने बसपा के सुखदेव राजभर को हरा दिया तो बसपा ने सुखदेव राजभर को विधान परिषद् मे भेजवा दिया था। फिर 2002 और 2007 के विधान सभा चुनाव में बसपा के सुखदेव राजभर पुनः विजयी हुए।2012के विधान सभा चुनाव में सपा के बेच ई सरोज ने सपा के टिकट पर चुनाव जीता तो यह विधान सभा सीट जैसे सपा-बसपा का गढ बन गया।2017 के चुनाव में बसपा के अरिमर्दन आजाद उर्फ पप्पू आजाद ने फिर बसपा के टिकट पर चुनाव जीता तो 2022 में एक बार फिर सपा के बेच ई सरोज ने चुनाव जीत लिया। इस प्रकार देखा जाय तो यह विधान सभा क्षेत्र एक प्रकार से सपा-बसपा का गढ बन गया है। ——-सम्पादकीय, News 51.in