आगरा रेड फोर्ट में — भाग एक
24 सितम्बर हम सब भाई एह्तेशाम और मारुफ़ भाई से मिलने के बाद सीधे राज के छोटे भाई के घर पहुचे रात वही पर व्यतीत हुआ दूसरे दिन हम लोग अंशुल के यहाँ गये वहाँ पर राज को शहीद मेला की वेव साईट की प्रगति देखनी थी , सारा काम सम्पन्न होने के बाद वापसी फिर यमुना एक्सप्रेसवे की तरफ बढ़ लिए , उस दिन बारिश भी जमकर हो रही थी , मुझे आगरा का रेड फोर्ट देखना था जब मैंने राज से कहा तो उन्होंने कहा ताजमहल क्यो नही ? मैंने हँसकर जबाब दिया किले में बहुत कुछ मिलेगा , हम सब किरण पाल जी की चर्चा करते हुए यमुना एक्सप्रेस वे पार किया संशय की स्थिति में आगे बढ़ते रहे अन्तोगत्वा राज ने एक ढाबा खोज ही लिया , हम लोग सडक से उतर कर कटीले तारो को पार करके चाय पिने नीचे उतरे संयोग से चाय मिल गयी , फिर यात्रा आगे बढ़ चली , आगरा के मुहाने पर जब हम सब पहुचे तो राज ने पूछा क्या ख्याल है हमने कहा जो आप सब का गाडी आगरे किले की तरफ मुड गयी हम सब रेड फोर्ट पर खड़े थे अचानक सामने एक टूरिस्ट गाइड आ गया , कम बहस में वो किला घुमाने के लिए राजी हो गया हम सब साथ निकल लिए |
{आगरा रेड फोर्ट }
आगरा किला खासकर तीन मुग़ल बादशाहों ने पूरा किया इसकी शुरुआत अकबर ने किया था यह किला इमारतो तथा महलो का म्यूजियम है , इसको अकबर , शाहजहाँ , औरंगजेब द्वारा बनवाया गया था |
आगरा किला यमुना नदी के बायीं तट पर बनाया गया है जो कि आगरा शहर के पूर्वी तरफ है | यहाँ दीवारे मोटे तथा शक्तिशाली लाल पत्थरों से बने गयी है | यह कहावत है कि अकबर ने यह किला पुराने बादलगढ़ के किले के स्थान पर बनवाया | इस किले की बाहर की दीवार 40 फीट ऊँची है और अन्दर की 70 फीट | आगरा का किला दो बड़ी खाइयो से घिरा था | इन दोनों में से अन्दर वाली खाई अब भी मौजूद है , लेकिन बाहर वाली खाई को भर दिया गया है और अब वहाँ सडक है | दोनों खाइयो में डरावने तथा खतरनाक कछुओ और एनी जिव जन्तुओ से भरी थी ताकि कोई दुश्मन इस खाई को आसानी से न पार कर सके | यह किला सन १५६५ में बनना शुरू हुआ और इसे बनाने में साथ साल लगे | इसे बनवाने कि जिम्मेदारी कासिम खान को सौपी गयी जो कि अकबर की सेना का मुख्य गवर्नर था | इस इमारत को बनाने में 35 लाख रूपये लगे थे | प्रसिद्ध साहित्यकार अबुल -फजल ने इस के बारे में कहा है कि इस किले में कम से कम 500 इमारते थी , लेकिन दुर्भाग्यवश अब कुछ ही इमारते बच गयी है नादिरशाह के आक्रमण में इस किले को नष्ट करने की कोशिश की गयी , फिर मराठो तथा जातो ने हमला किया कुछ राजाओं ने तो ताज तथा ने मुग़ल इमारतो में ”भूसा ‘ भर दिया था |
”अमर सिंह गेट ”
किले के दक्षिण तरफ यह गेट स्थित है जो आम जनता के लिए खुला है | अमर सिंह गेट बादशाह , शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था | इसका नाम राजपूत के बहादुर राव अमर सिंह राठौर जो कि जोधपुर के राजा था , उनके नाम पर रखा गया था | वो शाहजहाँ के दरबार के मान सबदर थे | सन 1644 में सलाबत खान , राज्य के रक्षक अमर सिंह राठौर की बेइज्जती की , इसलिए गुस्से में आकर उन्होंने सलाबत खान का क़त्ल कर दिया , वो भी मुगलों के दरबार में | इस कारण मुग़ल सेना उनके खिलाफ हो गयी | इस कारण वो अपने घोड़े पर सवार होकर किले की दीवारों की ओर दौड़ते हुए उन्हें फाँद कर जहाँ छलाँग मारी वही अमर सिंह गेट का निर्माण हुआ उन्होंने वो खाई अपने घोड़े की मदद से पार की , जो कि उसे कुछ किलोमीटर तक ही साथ दे पाया , यह घटना सिकन्दरा के पास हुई | घटना को तजा रखने के लिए यहाँ एक घोड़े का बुत बनवा कर उसे स्थापित किया गया दूसरा गुरु ताल और सिकन्दरा के बीच , जहाँ उस घोड़े की मौत हुई थी | आज उस घोड़े का बुत अपनी गर्दन के बगैर आज भी मौजूद है , यह गर्दन अब भी आगरा किले के म्यूजियम में मौजूद है | सुनील कबीर स्वतंत्र पत्रकार , दस्तावेजी प्रेस छायाकार