न ई दिल्ली – आखिर राजनितिक पार्टीयों में नेता शीर्ष नेतृत्व को क्यों बगावत की धमकी देते हैं या बगावत कर देते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है कि सत्ता धारी दल में नेता बगावत की न तो धमकी देते हैं और न ही बगावत करते हैं इन सब के जड में क्या है ? दर असल इन सबके जड में नेता ओ की बढती महत्वाकांक्षी होना सबसे प्रमुख कारण होता है। पहले तो हमें उन दलों के नेताओं की मनःस्थिति पर विचार करना आवश्यक है जो सत्ता से हट जाती हैं या कमजोर हो जाती हैं उनके नेताओं का रुतबा घटने लगता है यह बात उन्हें विचलित कर देती हैं पहले तो यह बताना आवश्यक है कि एक बार जब कोई नेता अपनी पार्टी में कोई बड़ा पद प्राप्त कर लेता है तो उसे लगता है कि वह अब प्रमोशन ही करेगा, पदावनति नहीं होगी। दूसरी बड़ी बात यह कि, नेता संवर्ग (सभी नहीं, अधिकांश) का अपना इगो बहुत ज्यादा होता है। कांग्रेस पार्टी ने देश पर सबसे ज्यादा समय तक शासन किया है और सबसे ज्यादा उसी के बड़े नेताओं ने पार्टी किसी न किसी बहाने पार्टी नेतृत्व पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोडी। वे सभी या तो दूसरे दलों में शामिल हो गए या न ई पार्टीयां बनाकर जनता के सामने आये। कुछ थकहार कर पुनः पार्टी में वापस आ गए। एकाध जनता में अपनी बात को सही ठहराने में सफल रहे, हालांकि उसमें उनके साथ समय, हालात और तत्कालीन परिस्थितियों का भी बड़ा हाथ रहा। जो नेता सफल नहीं रहे उनमें चंद्र जीत यादव, बाबू जगजीवन राम, मोहन धारिया, रामधन राम आदि फ्लाप नेताओं की लिस्ट बहुत लम्बी है सफल नेताओं में चंद्र शेखर, वीपी सिह, शरद पवार ,रामाकृष्ण हेगडे आदि। हालांकि सफल नेताओं की लिस्ट बहुत छोटी है कुछ नाम छुटे हैं मैने सिर्फ उदाहरण के लिए ये नाम लिए हैं। चंद्र शेखर जी सबसे युवा सांसद और अपनी बात बेबाकी से रखने वाले थे इंदिरा गांधी से वैचारिक मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस छोडी। उस समय देश में आपात काल के कारण जयप्रकाश नरायण जैसे (राजनीतिक नहीं) व्यक्ति की अगुवाई में चले आंदोलन में उनके साथ हो लिए। सभी जानते हैं वह प्रधान मंत्री तक बने। इसी प्रकार वीपी सिह ने बोफोर्स तोप में राजीव गांधी को सीधे दलाली का आरोप लगाकर जनता के बीच गए और लोगों को समझाने में सफल रहे कि राजीव गांधी ने बोफोर्स तोप सौदे में दलाली ली। अपने हर भाषण में जेब से एक कागज निकाल कर लोगों को दिखा कर बताते थे कि इसमें स्विस बैंक राजीव गांधी का वह एकाउंट नम्बर है जिसमें उनका बोफोर्स तोप दलाली का रुपया जमा हे।उस समय एक नारा भी चला था “राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है ” लोगों ने उनकी बात मानी और वो भी देश के प्रधान मंत्री बने यह बात अलग है जेब मे रखा स्विस बैंक का राजीव गांधी का खाता नंबर आज तक नहीं जनता को मिला। शरद पवार ने सोनियां गांधी के विदेशी होने का मुद्दा उठाया और पार्टी से अलग हुए फिलहाल महाराष्ट्र में उनकी पार्टी की शाख है। आज कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दशक से सत्ता में नहीं है और कमजोर स्थिति में है उसे मजबूत करने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी को सौंपी गई है उन्होंने कुछ महीने कांग्रेस संगठन के लिए नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और फिर संगठन में बदलाव किया जिससे वर्षों से एक ही पद पर जमे नेताओं को बदला गया ।यह सच है कि कांग्रेस के बुरे दौर में भी ये नेता दल छोड़ कर नहीं गए उनकी निष्ठा कांग्रेस में बनी रही किंतु यह भी सच है कि जब तक नौजवानो की पीढ़ी को आगे नहीं लाया जाएगा तबतक पार्टी अन्य दलों से मुकाबले में नहीं आ सकती। किंतु पुराने वफादार नेताओं का सम्मान और उचित स्थान कैसे दिया जाय यह नेतृत्व को सोचना होगा। बात कांग्रेस की इस लिए हो रही है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद सबसे ज्यादा कांग्रेस के बड़े नेताओं ने हर प्रांत में पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं । सम्पादक की कलम से……
आखिर क्यों होता है पार्टी में सिनियर नेताओं का नेतृत्व से बगावत की धमकी देना
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