Saturday, July 27, 2024
होमराज्यउत्तर प्रदेशअनोखा बनारस-जिया बनारस, बनारस के जीवन में मस्ती का रंग -धर्म की...

अनोखा बनारस-जिया बनारस, बनारस के जीवन में मस्ती का रंग -धर्म की नगरी

अनोखा बनारस — जिया बनारस

बनारस के मन्दिर
…………………………धार्मिक ग्रंथो की गवाही पर यह कन्फर्म हो चुका है की हिन्दुओं के पूरे तैतीस करोड़ देवता है | लेकिन आज तक इन तैतीस करोड़ देवताओं की सम्पूर्ण परिचय -तालिका किसी भी ‘धार्मिक गजेटियर ‘ में प्रकाशित नही हुई है | भारत के किसी भी पंडित ने यह दावा नही किया की मैं तैतीस करोड़ देवताओं के नाम बता सकता हूँ | धरम के नाम पर अपनी जेबे हल्की करनेवाले महानुभावो को चाहिए की वे इन देवताओं की एक सूची जरुर तैयार कराए | यह तथ्य प्रकट होना आवश्यक है की तैतीस कोटि फिगर्स में कितने अपनी उपासना करा रहे है और कितनो के सामने ‘टू लेट ‘बोर्ड लटक रहा है !
सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है की इतने देवताओं की उत्पत्ति कैसे हुई जबकि प्राचीन काल में भारत की आबादी बहुत कम रही ? धार्मिक ग्रन्थो में जब तैतीस करोड़ देवताओं की चर्चा है तब बात झूठ नही हो सकती | भारत मुख्यत:धर्म -परायण देश है | यहा की अधिकाँश: आबादी आस्तिको की है | नास्तिक तो मुर्ख होते है ,अत:उनकी चर्चा ही व्यर्थ है | इसलिए तैतीस करोड़ देवताओं के अस्तित्व के बारे में अविश्वास करने की गुंजाइश नही |
मेरे एक मित्र है ,मैंने उनसे अपनी शंका प्रकट की तो बोले -जिस प्रकार रेनाल्ड साहब ने अडतालीस भाग में ‘लन्दन रहस्य ‘लिखा है -उसे देखकर हमारे बनारसी रईस बाबू देवकीनंदन खत्री ने ‘चन्द्रकान्ता ‘और ‘भूतनाथ ‘ मिलाकर बावन भाग लिखे है ,ठीक उसी प्रकार जब आर्य अर्थात हिन्दू यहा आये तब अनार्यो के बत्तीस करोड़ देवताओं की संख्या देखकर संभव है ,उन्होंने अपने देवताओं की संख्या तैतीस करोड़ बना ली हो | यद्धपि बात कुछ जमी नही ,तथापि मेरी शंका की बोलती बन्द हो गयी |
इन देवताओं की उत्पत्ति का विषय जितना रहस्यमय है ,उतना ही इनकी आवासभूमि भी | यदि को फर्स्ट डिविजन मास्टर आफ आर्ट्स इस विषय पर थीसिस लिखे तो अनायास उसे डाक्टर की उपाधि मिल सकती है | जाति विशेष के विषय पर अन्वेषण करनेवाले विद्यार्थियों को जब स्कालरशिप मिलती है तब इस विषय पर आसानी से मिल सकती है | अब तक कतिपय देवताओं के निवास -स्थल का पता चला है ,जैसे रामचन्द्र जी का अयोध्या ,कृष्ण का मथुरा ,कामक्षा का कारूप ,जगन्नाथ का पूरी , लक्ष्मी का बम्बई ,काली का कलकक्ता ,सीता जी का जनकपुरी और शिव का काशी | मुझे आशा है ,इस सडक पर समयानुसार कोई महाशय अवश्य थीसिस का खच्चर हाकेंगे |

मन्दिरों की नगरी
………………….
काशी को साक्षात शिवपुरी कहा गया है | यहा का प्रत्येक ककंड शंकर कहा जाता है |कुछ लोग तो इसे मन्दिरों की नगरी भी कहते है | संख्या -अन्वेषकों के मतानुसार यहा मकानों से अधिक मन्दिरों की संख्या है | शायद यह बात ठीक भी है कयोंकि सडक चौड़ी करने के नाम पर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट मकान गिरा सकता है ,दूकान तुडवा सकता है और बगीचे का घेरा सडक में ले सकता है ,लेकिन मंदिर -मस्जिद का अंश छूने की हिम्मत उसमे नही है | कौन मन्दिरों के देवता और भक्तो से मुफ्त का पंगा लेने जाए !
बनारस में कितने मंदिर है अथवा यहा की आबादी में कितने आस्तिक है ,इस बात का अंदाजा किसी परिवार में कुछ दिन बिना रहे नही लग सकता | गृहस्वामी रोजी -रोजगार में बरक्कत हो इस उद्धेश्य से नित्य सबेरे गंगा -स्नान कर अन्नपूर्णा के मंदिर में पंडित जी से जाप करवाते है ,दूकान में गणेश जी को माला पहनाते है ,धुप सुघाते है और अंत में ‘शुभ -लाभ ‘शब्द के आगे श्रद्दा से सर झुकाते है | गृहस्वामिनी नाती – पोते का मुंह देखने के लिए और पति -पुत्र के कुशल -मंगल के लिए दुर्गा भवानी का दर्शन करती है | साहबजादे की नसों में जवानी अंगडाइया लेती है ,इसलिए वे महावीर जी के उपासक है ,संकटमोचन के नियमित दर्शन करते है और सवा पाँव दलबेसन का जलपान करते है | पुत्रवधू माँ बनने तथा पति को वश में रखने के लिए तुलसी के पौधे को सींचती है ,पीपल के पेड़ में पानी देकर फेरा लगाती है |
प्राचीनकाल में भले ही हमारे घरो में एक कुल देवता रहे हो ,लेकिन आज एक से अधिक देवता का पूजन प्रत्येक परिवार में होता है | पता नही ,कब कौन देवता संतुष्ट होकर छप्पर फाडकर धन दे दे या मनोकामना पूरी कर दे !
कुछ लोग ऐसे भी है जो एक अरसे तक एक देवता के उपासक बने रहने के बाद जब कुछ नही पाते तब मित्रो की राय के अनुसार अपने पुराने देवता को रिटार्यड कर किसी दूसरे देवता के उपासक बन जाते है | आज जिन परिवारों में से एक से अधिक देवताओं का पूजन होता है ,वहा देवताओं का बड़ा रंग रहता है | प्रत्येक देवता का सिंहासन ,पंचपात्र ,धूपदान और पहनावा अलग -अलग होता है यहा तक की रूचि के अनुसार उन्हें नैवेद्धय भी चढाये जाते है |

मन्दिरों की अधिकता क्यों ?
यह तो हुई गृह -देवताओं की कहानी | इसके अलावा सार्वजनिक मन्दिरों की अलग कहानी है | जिस प्रकार बनारस के हर चौराहे पर खचियो डाक्टर ,दर्जनों पान वाले और सैकड़ो खोमचे वाले मिलते है ,ठीक उसी प्रकार मन्दिरों की भरमार है | काशी में प्राण त्यागना स्वर्ग में सीट रिजर्व कराने का सुगम मार्ग माना जाता है | कहा जाता है ,,ऐसे पुण्यआत्माओं के वंशज अपने बाप -दादा की स्मृति में -जो की उनकी अंतिम इच्छा रहती है -पूरी करने के लिए -मंदिर बनवा देते है | भले ही आगे चलकर उन मन्दिरों में बनारस शहर के स्थायी कोतवाल भैरवनाथ अपना अस्तबल बना ले | आज पंचकोशी में ऐसे शिव मंदिर है जहा के शिव अक्षत -फूल को कौन कहे पानी के लिए तरसते है | पंचकोशी करने वाले यात्री मंदिर तक न जाकर सडक पर से ही उनके मंदिर के सामने पानी छिडककर आगे बढ़ जाते है और रात को उन मन्दिरों में भैरवनाथ के ख़ास वाहन (कुत्ता ) सोते रहते है | चूँकि शंकर साक्षात आशुतोष है ,इसलिए केवल पानी पीकर संतुष्ट हो जाते है |
‘राजतरंगगिणी ‘ के अध्ययन से पता चलता है की प्राचीन काल में कश्मीर के प्राय:सभी नरेश अपने नाम पर ,अपनी प्रियतमा के नाम पर और अपने पूर्वजो के नाम पर मंदिर बनवाया करते थे | इस प्रकार उनके नाम देवी-देवता की कोटि में आ जाते थे | शायद उन लोगो ने गीता का अध्ययन किया था ,इसीलिए ‘नराणा च नराधिपम ‘श्लोक को यथार्थवाद का रूप दे देते रहे | यह परम्परा केवल कश्मीर में ही नही ,अपितु समस्त भारत में रही |फिर काशी जैसे मोक्ष-धाम में लोग यह परम्परा लागू कर पुण्य लुटने में पीछे क्यों रहते ? जो लोग मंदिर बनवाने में असमर्थ होते है ,वे मन्दिरों की दिवालो या फर्श पर सगमरमर का एक टुकडा चिपक्वाकर पुण्य आत्मा बन जाते है ,जैसे किसी तीर्थ यात्री के वापस आने पर पैर धुलवाने वाला बिना तीर्थ गये पुण्य का भागी बन जाता है ,बनारस के अधिकाश मन्दिरों की यही हालत है | एक ने मंदिर बनवाया :दूसरे ने फर्श ,तीसरे ने घंटा टगवाया ,चौथे ने चहारदीवारी बनवाई और पांचवे ने मरम्मत या सफेदी करवा दी | इस प्रकार मन्दिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार होता रहता है |अधिक दूर क्यों ,स्वंय काशी विश्वनाथ मंदिर की यही हालत है | जब से ज्ञानवापी के कुए में गिर पड़े ,वहा से फिर निकले नही | पुराना मंदिर मस्जिद के कारण अपवित्र हो चुका था ,इसलिए वहा से हटकर नवीन मंदिर रानी अहिल्या बाई ने बनवाया | घंटा टगवाया नेपाल नरेश ने मंदिर के उपर सोने का पत्तर चढवाया महाराज रणजीत सिंह ने और नौबत खाना बनवाया अजीमुल मुल्कअली इब्राहिम खा ने | कहने का मतलब बाबा विश्वनाथ की सारी सामग्री दान की है | रात को आरती का प्रबन्ध नाट्कोट छ्त्रवालो की ओर से होता है | यही हाल अन्नपूर्णा मंदिर का है | वहा का एक हिस्सा और मुर्तिया श्री पुरुषोत्तमदास खत्री की बनवाई हुई है |
कुछ लोग ऐसे भी है जो न तो मंदिर बनवा सकते है और ना जीर्णोद्धार करा पाते है ; ऐसे लोग मन्दिरों की दिवालो पर अपना नाम -ग्रां लिखकर भक्ति प्रदर्शित करते है | मुमकिन है ,उनका यह कार्य यमराज के पुण्यवाले खाते में दर्ज हो जाता हो !
इतिहासकारों का मत है की अकबर के शासन काल में अकेले राजा मानसिंह ने बनारस में सवा लाख मन्दिरों का निर्माण करवाया था | उनमे से अकबर के परपोते औरंगजेब और उसके सैनिको ने कितनो को तोड़ डाला ;इसका रिकार्ड किसी भी इतिहास में प्राप्य नही है | काशी के पंडित प्रत्येक मंदिर को सतयुग द्वापर और त्रेता के समय का है -बताते है | पुरातत्व वाले काशी के मन्दिरों के बारे में कहते है की सभी का निर्माण काल तीन सौ वर्ष के अंतर्गत है | केवल कर्दमेश्वर का मंदिर इसका अपवाद है | कर्दमेश्वरका मंदिर दसवी शताब्दी का है | लेकिन कुछ प्रगतिशील लोग इस प्रश्न पर शंका प्रकट करते है की तुलसीदास के युग में अर्थात सोलहवी शताब्दी के समय जब भदैनी शहर का बाहरी अंचल माना जाता था तब कर्दमेश्वर जैसे स्थान में यह मंदिर कैसे बन गया ? अभी तक यह प्रश्न ज्यो-का त्यों खड़ा है -इसे अभी हल करके बैठाया नही जा सका | कहने का मतलब पुरातत्व वालो का कथन और प्रगतिशील व्यक्तियों की शंका अपनी -अपनी जगह ठीक है | यह निर्विवाद सत्य है की बनारस में मन्दिरों की अधिकता इसलिए है की भारत के सभी धर्मप्राण व्यक्ति जिन्हें कुछ काम नही था ,यहा आकर मंदिर बनवाते रहे अथवा अपनी यह सद-इच्छा मरते समय अपने वंशजो पर प्रकट कर देते रहे ताकि उनके वंशज काशी में जाकर उनके नाम पर मंदिर जरुर बनवा दे |
यदि पुरातत्व वालो का यह विचार सही मान लिया जाए की सभी मंदिर तीन सौ साल के भीतर बने है तो यह मान लेना पडेगा की इसके पहले के सभी मंदिर या तो मस्जिद के रूप में परिणित हो गये या लुप्त हो गये ,जैसे गंजी खोपड़ी से बाल लुप्त हो जाते है | फिर इन तीन सौ वर्षो में जबकि भारत गुलाम रहा -पैसे की कमी रही ,चारो तरफ मार -काट मची हुई थी ,इतने मंदिर कैसे बन गये ? इस विषय पर कई राये है जिनमे एक राय मुझे अधिक संगत प्रतीत होती है |वह है –बनारस की गन्दगी |………………..

बनारस में गन्दगी
बनारस में गन्दगी के दो कारण है —पहला नगरपालिका की असीम ‘कार्यपटुता ‘ और दुसरा बनारसियो की आदत | बनारस की किसी गली से आप गुजरिये उतर के सभी त्रिमुहानी ,कोना अथवा सन्नाटे वाले स्थानों में कर्मनाशा बहती है | सेंट से तर रुमाल भी नाक पर बिलबिलाने लगता है | कुछ प्रमुख स्थानों में नगरपालिका का कूड़ा गोदामघर है -जैसे बैंक वाले बड़े -बड़े फर्मो का रखते है | आपको जानकर आश्चर्य होगा की जिस तरह बैंकवाले उतना ही माल पार्टी को उठाने देते है जितने माल का भुगतान पार्टी करती है ,ठीक उसी प्रकार नगरपालिका भी जब जितना जरूरत समझती है उतना ही कूड़ा इकठ्ठा करती है और उठाती है | नगरपालिका की सरकारी गाडी (कूड़ा ढोने वाली भैसा गाडी ) जिस वक्त किसी संकरी गली से गुजरती है ,ट्रैफिक रुक जाता है |
नगरपालिका की इस आदत को छुडाने के लिए नागरिको ने दुसरा कदम अख्तियार किया | जिन क्षेत्रो में कूड़े का अम्बार लगा रहता था ,वहा के नागरिक पहले उन कुडो के उपर दरी बिछाकर नगरपालिका के मेम्बरों और चेयरमैन को बुलाकर सभा करवाते रहे | इससे भी जब समस्या हल नही हुई तो चंदा इकठ्ठा कर एक दिन वहा एक मन्दिर बनवा दिया | फिर उसमे किसी देवता को प्रतिष्ठित कर दिया | इनमे महावीर जी ,चौरा माई ,और शंकर प्रमुख है | इसके बाद कुछ लोग नियमित रूप से वहा पूजा -पाठ हवन करने लगे | कथाये हुई | अरसे तक भीड़ -भाड़ होती रही | इस प्रकार वह स्थान पवित्र हो गया | इतनी गनीमत है की नगरपालिका के अधिकाँश अधिकारी आस्तिक है ,खासकर कूड़ा -अधिकारी;इसलिए जो -जो स्थान इस तरह पवित्र होते गये ,उन्हें पुन: अपवित्र करने की चेष्ठा नही की गयी |इस प्रकार बनारस में मन्दिरों की संख्या बढती गयी |

काशी के प्रमुख मन्दिर
……………………….
बनारस में सिर्फ विश्वनाथ मन्दिरही नही है ,बल्कि समस्त भारत के देवी -देवता और तीर्थ स्थान भी है | यदि आप चारो धाम नही कर सकते अथवा समस्त देवी -देवता के दर्शन से वंचित है तो आज ही काशी चले आये | बद्रीनाथ ,केदारनाथ ,रामेश्वर ,जग्रन्नाथ, कामक्षा,पशुपतिनाथ ,कृष्ण कन्हैया ,द्वाराकाधीश ,महालक्ष्मी और दुर्गा आदि के मंदिरों को देख लीजिये | गंगोत्री ,पुष्कर ,वैधनाथ ,भास्कर और मानसरोवर आदि तीर्थ स्थान देख लीजिये |
तुलसीदास जी का बनवाया हुआ संकटमोचन का मन्दिर जहा का बेसन का लड्डू परम प्रसिद्ध है ,गोपाल मन्दिर का थोर (एक प्रकार की मिठाई ) बिना दांत का व्यक्ति खा जाता है और दुर्गा जी का मन्दिर जहा राम जी की सेना रहती है — बनारस के प्रमुख मन्दिरों में है | काशी करवट का शिव मन्दिर तो इतना प्रसिद्द है की दोपहर के वक्त शिवजी बिजली की रौशनी में दर्शन देते है | यहा का इतिहास आज भी बड़े -बुढो की जबान पर है | बराहिदेवी के मन्दिर में औरते नही जाने पाती | कहा जाता है किसी समय वे एक लड़की को निगल गयी थी | चूँकि उनके मुँह में उस लड़की की चुनरी लटकी हुई थी ,इसलिए यह पता चला गया की वे निगल गयी है ,वरना लड़की का गायब होना रहस्य बना रह जाता | इस घटना के बाद से औरते उपर से दर्शन करती है ,केवल पुरुष भीगे हुए वस्त्र पहनकर नीचे जाते है | काशी में आदि विश्वेश्वर का मन्दिर है जहा गोपाष्टमी के समय शहर की वारागनाएमुफ्त में आकर मनोविनोद करती है | पास ही सत्यनारायण मन्दिर में श्रावण के झूले में भगवान का ऐसा लाजबाब श्रृंगार होता है की देखकर भगवान के भाग्य पर ईर्ष्या होती है | लाट ,भूत आनन्द और बटुक आदि आठ भैरव ,सोलह विनायक और नवदुर्गा के मंदिर अपने -अपने मौसम में बनारस के नागरिको को बुलाते है |
काशी में कला की दृष्टि से दो मन्दिर दर्शनीय है | एक भारतमाता का मन्दिर ,दुसरा नेपाली मन्दिर | यह तो अपनी -अपनी भावना है की कुछ लोग मन्दिरों का निर्माण बेकार समझते है , पोगापंथी समझते है | उनका ख्याल है की मंदिरों में अनाचार होते है | लेकिन आस्तिकजन ऐसा नही मानते | ये दोनों मन्दिर जीवन के लिए एक दर्शन है | एक से देशभक्ति ,दूसरे से काम -जीवन की शिक्षा मिलती है | बनारस में दो मन्दिर ऐसे भी है जिनके पास बैंक है | उनमे एक रमापति और दुसरा शिव बैंक है | इन बैंको में राम नाम और शिव नाम जमा होते है -उतार दिए जाते है | सोचिये ,विश्व में ऐसे बैंक भला कही है ?
इन मन्दिरों के अलावा कुछ ऐसे मंदिर है जिनकी पूजा वे लोग करते है जो अच्छे मन्दिरों में जा नही पाते अथवा बड़े देवताओं पर जिनका विश्वास नही होता | ऐसे लोग मुड़ीकट्टा बाबा ,भैसासूर बाबा ,ताडदेव ,पीरबाबा ,और बेचुवीर आदि स्थानों में जाकर शराब -गांजा भी चढाते है ,पराठे और मोहनभोग का भी भोग लगाते है | इनके देवता सब कुछ प्रेम से दिया नैवेद्ध स्वीकार कर लेते है | बरसात के मौसम में ये सभी देवता कजरी सुनते है ,वेश्या का नाच देखते है और भजन भी सुनते है | देवता श्रद्धा के प्रेमी होते है वस्तु के नही || इन देवताओं के उपासको की संख्या भी कम नही है |
अब तो पूज्य करपात्री जी काशी में व्यक्तिगत विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण कर चुके और उधर विश्विधालय में नगर का सबसे ऊँचे शिखर वाला विश्वनाथ मन्दिर बन गया है | इस प्रकार अब बनारस में तीन -तीन विश्वनाथ मन्दिर बन गये | एक सभी हिन्दुओं का दुसरा सवर्ण हिन्दुओं का और तीसरा विश्विधालय के छात्रो का |अब किसी को विश्वनाथ जी से शिकायत नही रहेगी की महाराज ,मुझे आपका दर्शन नही मिलता |
सुनील दत्ता … स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी छायाकार
.आभार विश्वनाथ मुखर्जी “” बना रहे बनारस से ”

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments