अतीत के झरोखो में आजमगढ़ –
आजम शाह द्दितीय का साम्राज्य
दुनिया बड़ी स्वार्थी है जब लौ रसरी खेत में तब लौ दीवान – दीवान |
आजम शाह एक सुयोग्य , प्रजा वत्सल बहादुर शासक थे | उन्होंने इस्लाम धर्म के साथ हिन्दू धर्म ग्रंथो और साहित्य का आस्वादन हरजू मिश्र की संगत से प्राप्त किया था | उनको आजमगढ़ का दारा शिकोह कहा जाता था | उनकी देखरेख में श्रृंगार दर्पण ग्रन्थ की रचना हुई थी और ”बिहारी – सतसईं को संयोग – वियोग श्रृंगार नायिका – भेद नीति इत्यादि के सन्दर्भ में कर्मित कर व्याख्या प्रस्तुत की गयी है , इसे आजमखानी स्वरूप कहा गया | हरजू मिश्र ने ”अमरकोश भाषा” की रचना की ( इस सन्दर्भ में हरिऔध पत्रिका अक्तूबर 1958 ग्रन्थकीट द्वारा लिखा गया विस्तार पूर्ण लेख , बिहारी सतसईं का आजमशाही कर्म और उसके कर्ता हरजू मिश्र प्रकाशित हुआ था ) आजमशाह द्दितीय का राजपाट गौतम राजवंश के इतिहास में सुख – शान्ति , आपसी मेल – जोल , राजा – प्रजा की सुखद प्रतिक्रिया का स्वर्णिम पन्ना है | ठाकुरों की पुरानी वैमनस्यता खत्म हो गयी थी | सबकी जमीन की पैमाइश कराकर पत्थर बन्दी की गयी और समय से मालगुजारी जमा होने लगी | आजम शाह का सख्त आदेश था कि प्रजा से मालगुजारी विवेक और सहानुभूति से वसूली जाए | घरो में राजस्व के कुण्ड रखने की हिदायत की गयी जिसमे पैदावार का पाँच प्रतिशत अनाज रख दिया जाता और राज द्वारा नियत मूल्य पर व्यापारी खरीद लेते | घटतौली पर कडा दंड दिया जता | सबको धर्म निर्वाह , पूजा नमाज की पूर्ण स्वतंत्रता थी | राजा दोनों धर्मो के रस्मो रिवाजो त्योहारों में भागीदारी करते | सुनते है कि नगर की बड़ी मस्जिद उसी समय बनवाया गया था | आजम शाह ने लालगंज के पास के पल्हमेश्वरी धाम का दर्शन किया था दान दिया था , हरजू मिश्र ने माँ पल्हमेश्वरी की महिमा और महत्व का बखान किया था , इसी तर्ज पर उन्होंने हरिबंश पुर में एक पल्हमेश्वरी मंदिर बनाने की योजना रक्खी थी जो पूरी नही हो सकी लेकिन उस गाँव को आज भी पल्हनी कहा जाता है |
नाजिम फजल अली के समय में ही नजीरे बन्दोबस्त बेनी बहादुर ने मालगुजारी वसूली के लिए विभिन्न क्षेत्रो में नम्बरदारो की नियुक्ति की थी पश्चिमी हिस्से जो जौनपुर की सीमावर्ती था एक बड़े जमींदार दीदारजहाँ की देखरेख में रक्खा गया | उन्ही के नाम पर उस गाँव का नाम दीदारगंज आज भी मशहूर है | ये मूलरूप से माहुल के जमींदार थे | सरायमीर क्षेत्र का राजस्व वसूली भार मीर अब्दुल्ला सरायमिरी पर था | मुहम्मदाबाद क्षेत्र को मीर फजल अली को दिया गया | उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र को दो हिस्सों में बाटकर पंडित भीमसेन ( मधुबन ) और तुर्राब इराकी ( सगड़ी ) को सौपा गया | ये सभी नम्बरदार इतना विश्वासपात्र थे कि आजम शाह ने उन्हें अपने पद पर बनाये रखा | ये पांचो नम्बरदार बड़े धनी रईस और ईमानदार थे प्रजा इनका बड़ा आदर करती थी और श्रद्धा सहित राजस्व अदा कर देती थी | आजम शाह ने मात्र इतना सुधार करवाया की अत्यंत छोटी जोत वाले किसानो असहाय विधवाओं और सजायाफ्ता परिवारों से मालगुजारी न ली जाए , उनकी भरपाई नदी घाट के ठेके दान और राजकोष से की जाए | कहते है कि आजम शाह द्दितीय के राज्य काल में हिन्दू मुसलमान छुआछूत का भेद मिट गया था | ईद और होली दोनों सम्प्रदाय हृदय से मनाते थे |
आजम शाह द्दितीय के सुशासन और शान्ति व्यवस्था से एक ही व्यक्ति कुढ़ रहा था वह था निवर्तमान निजाम फजल अली गाजीपुरी | उसके राज्य सीमा चिरैयाकोट तक थी और यहाँ के समाचार वहाँ तक पहुचते रहते थे वह भयंकर जिद्दी सनकी और अपराधी था | वह लगातार सात साल तक सुलगता और चक्रव्यहू रचने में मशगुल रहा | 1771 ई० की गर्मियों के दिन थे एक महत्वपूर्ण पंचायत में सदारत करके आजम शाह अपने किले की तरफ अंगरक्षक के साथ आ रहे थे | कृष्ण पक्ष की अंधियारी रात थी | तब आज के मोहती घाट से नगर में आने के लिए एक बांस का पुल था लठ्ठो पर टिका हुआ | जब घोड़े पर सवार आजम शाह पुल पर बीच में पहुचे तो पुल गिर गया | अफरातफरी मच गयी राजा आजम शाह लहुलुहान मृत पड़े थे | पेट में घाव था | रहस्य रहस्य रह गया बहुतो का मत था कि उनकी हत्या हुई है पर कोई प्रमाण नही था | आजम शाह द्दितीय की हत्या या दुर्घटना एकरामपुर में हुई थी लेकिन श्री मुखराम सिंह के लेखो और रविन्द्र सनातन जी की पुस्तक में रामपुर लिखा है रामपुर जहानागंज के पास है जहाँ मुंशी प्रेमचन्द जी का ननिहाल था | जबकि एकरामपुर जिलाधिकारी बंगले से सटा पश्चिम का गाँव है | यह भूल हुई क्यो पंडित दयाशंकर मिश्र के इतिहास में टाइपिंग में गडबडी हो गयी थी लिखा है वह राजा एक रामपुर के समीप 1771 में अपने बैरी के हाथ मारा गया — इसे रामपुर मारा गया एक को छोड़ दिया गया | यह पता नही चलता कि उनका मकबरा कहाँ बना बना की नही बना | दुनिया बड़ी स्वार्थी है जब लौ रसरी खेत में तब लौ दीवान – दीवान | वैसे राज्य विध्वंश हो गया | बनता बनता राम राज्य जली हुई लंका हो गया | अव्यवस्थाए फिर सर उठाने लगी | एक लम्बी स्तब्धता पसर गयी | कर्मठ नम्बरदार भी शिथिल पड़ गये की अगले शासन की जो नीति होगी उसी आधार पर कार्य आगे बढ़ाएंगे |
प्रस्तुती – सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक
सन्दर्भ — आजमगढ़ का इतिहास — राम प्रकाश शुक्ल निर्मोही
सन्दर्भ – बिखरे हुए पन्नो पर आजमगढ़ – हरिलाल शाह