अतीत के झरोखो में आजमगढ़ — vol – 2
इतिहास लेख सत्य – असत्य हो सकता है किन्तु मानव मनोविज्ञान के मापदंड अडिग विश्वनीय एवं तर्क सम्मत होते है , इसके दर्पण से कहा जा सकता है कि श्रेष्ठ ऋषियों के देहावसान के बाद ये आश्रम और भूमि उनके अयोग्य शिष्यों के हाथ में आ गये , वहाँ वदाचार भी पलने लगा फलत: क्षेत्रीय जनता ने बाहुबलियों से गुहार लगाईं होगी | उद्धार के बाद सुरक्षा के नाम पर इन बाहुबलियों ने उस पर कब्जा कर लिया होगा , यही राज्यों का प्रारम्भिक रूप जमींदारी थी | एक जमींदारी से दूसरी जमींदारी की टक्कर से युद्ध का जन्म हुआ इससे बचाव के लिए कुछ समन्वय वादियों ने सुलह – समझौते के माध्यम से राज्यों की मेडबंदी कर दी ईसा पूर्व 7वी शताब्दी में इस तरह के बटे हुए सोलह जनपदों का उल्लेख्य मिलता है | इस प्रखंड के चार मुख्य जनपद थे 1 – कोशल 2- काशी 3- मगध 4- मल्ल | इनमे भी बराबर युद्ध होते रहते थे और आजमगढ़ की भूमि इन चारो में टुकड़े – टुकड़े बटी रहती थी | इस बात बखराव् से कई भयंकर परिस्थितियों उत्पन्न हो जाती थी | घर में अगर सुन्दर लड़की उत्पन्न हो गयी तो फांसी का फंदा थी – सयानी होने के बाद वह घर के लिए विपत्ति हो जाती थी | तत्कालीन राजतंत्र में राजा कुट्निया पालते थे जो परिवारों में पैठ बनाकर सुन्दरियों की सुचना पहुचाती थी और उनके अपहरण के बाद इनाम इकराम पाती थी | इसीलिए लडकियों को पैदा होते ही गला दबा कर जमीन में गाड दिया जाता था | केवल दो तरह के लोग बेटियों को नही मारते थे 1- जो शक्ति बल में समर्थ थे 2- जो अनैतिक कार्यो के लिए लडकियों को बेच दिया करते | पुरुष भी त्रस्त थे | जब दो राज्यों के बीच युद्ध होता तो घरो के नौजवानों को जबरन पकड़कर सेना में शामिल किया जाता और दूसरे राज्यों के बीच युद्ध के लिए भेजा जाता था | तब हर आदमी की दशा कुरुक्षेत्र के अर्जुन की तरह सी हो जाती , कोशल के नौजवानों को मगध के अपने ससुर पर हाथ उठाना पड़ता | काशी के लोगो को न चाहते हुए भी मल्ल जनपद के अपने मामा फूफा पर शस्त्र चलाना पड़ता | इन युद्धों को रोकने की महत्वपूर्ण भूमिका तब इश्क निभाता था | एक राज्य की राजकुमारी से दूसरे राज्य के राजकुमार से आँख लड़ गयी आँखों की लड़ाई से तलवार की लडाईया रुक सी जाती | 543 ईसा पूर्व में बिम्बसार ( मगध ) की शादी कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन कोशला से हुआ | राज्य की वार्षिक आय मगध में चली गयी , बाद में फिर विवाद -युद्ध हुआ | राज्य पर राज्य बदलते रहे बिम्बसार के बाद अजातशत्रु – चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य और अशोक मृत्यु 232 ई पू लेकिन जनता की दशा नही बदली , वही विपत्तिया आर्थिक विपन्नता और शोषण | गाँवों के पास आत्मनिर्भरता के सिवा क्या चारा था | समाजोपयोगी जातियों का संकुलन बसाया गया , बढई,- लोहार – कुम्हार ब्राह्मण और अन्य सेवक जातिया | राज्य के कुचक्र अत्याचार हत्या बलात्कार की खबर आम जनता तक नही पहुचती पहुचती भी थी तो गुप -चुप फुसफुस और वही दफन कर दी जाती | बड़ी घटनाए ही सामने आती | बाद के शुंग – देववंश मित्रवंश और कुषाण वंश राज्य था | डा शान्ति स्वरूप जी ने अपने लेख में सर्वहितकारी 17 अक्तूबर 1977 में लिखा है कि पिछली शताब्दी में कर्निघम और कारलाइल ने जो इस परिक्षेत्र में खुदाई कराई थी उसमे कुछ प्राचीन सिक्के मिले थे जिसे मौर्यकालीन काल घोषित किया गया था | इसी खुदाई में अतरौलिया के पास देवराही में मौर्यकालीन सिक्के भी प्राप्त हुए थे इससे सिद्ध होता है कि मौर्यकाल में यह जनपद व्यवस्थित दशा में था | डा ईश्वरी प्रसाद करीब सौ वर्ष का यह अंतराल आजमगढ़ अविभाजित की भूमि सनातन बनाम बौद्ध धर्म युद्ध क्षेत्र मानते है | जनपद की उत्तरी बैल्ट गोरखपुर देवरिया बलिया सनातन ब्राह्मणों की थी जो वेद – पुराण कर्मकांड और लोकाचार से बंधी हुई जिन्दगी जीते थे शैवमत के कारण हिंसा बलि तन्त्र मन्त्र टोना टोटका के ग्रामीण – नागर रूप जनता को पकडे थे | बुद्ध ने इन अन्धविश्वासो लोकाचारो का विरोध किया तब मुख्यत: पूर्वीकोशल और मल्ल गणराज्य गोरखपुर देवरिया पश्चिमी बिहार के ब्राह्मणों ने प्रतिक्रिया स्वरूप मांस भक्षण अपनाया | एक और वे वर्णित विधियों के अनुसार दोनों कानो पर जनेऊ लपेट कर शौच जाते इक्कीस बार मिटटी से हाथ साफ़ करते बगैर सिला वस्त्र पहनते गाय के खुर बराबर चुटिया रखते कई घंटे पूजा विधान का निर्वाह करते लेकिन भोजन में मछली चिड़िया और गोश्त खाते थे | यह प्रवृत्ति मिश्रान ,मलान में घुस आई | लेकिन फूंक से जंगल में लगी आग बुझाई नही जा सकती | अनैतिक धोखेबाज ठग कर्मकांडीयो ने सनातन धर्म का रूप बिगाड़ दिया था कि जनता अन्दर – अन्दर ज्वालामुखी बन गयी और बौद्ध धर्म इस जनपद में प्रतिष्ठित हो गया | अंचल का पूर्वी छोर जहाँ सनातनीगढ़ था वही महागोठ ( महगोठ + गोठा +गोठा )में विशाल बौद्धगढ बन गया | आज इस स्थल की बौद्ध प्रतिष्ठा मान्य है वहाँ एक होटल तथागत स्थापित हो चूका है | कुशीनगर के पास एक गाँव सठियांव है और आजमगढ़ में भी सठियांव है ये दोनों श्रेष्ठिग्राम के तदभव रूप है | यहाँ बौद्धों को आर्थिक सहायता देने वाले बड़े – बड़े सेठ थे उस समय यह सठियांव मुहम्मदाबाद से फूलपुर तक फैला हुआ था सठियांव में गन्ने तिलहन हथकरघा के व्यापार संकुल थे , रानी की सराय – सेठवल सेठअवली + सेठो की परिवृति में गुड फूलपुर में धातु उद्योग चलते थे | देवलास में कुछ मुर्तिया मिली थी जिन्हें बुद्ध से संयुकत किया गया | जिले के अन्य क्षेत्रो में माहुल तक मूर्तिखंड मिले है और तो और लालगंज के पास प्ल्मेहशवरी मन्दिर की मूर्ति को भी राहुल जी ने बुद्ध की मूर्ति कहा | महराजगंज के पास भैरो स्थान के बड़े कुओं को जबकि दक्ष के यज्ञ विध्वंश से जोड़ा जाता रहा है या दशरथ द्वारा खुदवाए कुपो का नाम दिया जाता रहा है राहुल जी ने बौद्ध बिहार के संडास बताये | बौद्ध धर्म ने पूरे संसार में इतनी व्यापकता हासिल की की सनातनी धर्म ने भी बुद्ध का एक अवतार स्वीकार कर लिया | उस समय आजमगढ़ का नजारा क्या रहा होगा ? लोग क्या पहनते ओढ़ते रहे होंगे ? कैसी सवारिया पर आते जाते रहे होंगे ? मनोरंजन व्यापार बाजार दृश्य कैसा रहा होगा ? चन्द्रगुप्त 320 ई.पू के बाद कुमारगुप्त स्कन्दगुप्त इत्यादि हुए जिनका विवरण आजमगढ़ की विभिन्न पुस्तको में दिया गया है | इसी बीच 410 ईस्वी के समय में फाहियान ने भारत यात्रा की थी अपनी यात्रा में वह रामजानकी मार्ग से होता जनपद के पूर्वी भाग से गुजरता सारनाथ गया था उसने तत्कालीन समाज का चित्रण किया है | 465 ई में हूणों के आक्रमण हुआ और हिन्दू साम्राज्य की उपसाहरित कड़ी के रूप में सम्राट हर्षवर्धन का साम्राज्य हुआ जिसकी पूर्वी राजधानी कुडधानी ( कुडधानी – कुडाकुचाई ) आदि थी यही एक खेत में उसका तामपत्र मिला था जिसका विवरण दयाशंकर मिश्र के इतिहास में है | उस तामपत्र की भाषा संस्कृत में है लेकिन संस्कृत जनभाषा नही रही होगी कारण यह कि पाली के प्रभाव से बौद्ध युग से ही भाषा में बदलाव आने लगे थे , फिर प्राकृत और फिर अपभ्रंश भाषा बनती गयी | नागर भाषा से काटकर जनभाषा की अपनी बोली में बोलने के प्रयास में अपभ्रंश की ग्राम्य शाखा भी पूरब पश्चिम के स्टाइल में बात गयी | प्छुअहिया बोली मथुरा तक सिमट कर शौर सेनी और पूरबहिया कोशल – काशी – पटना मगध तक फैलकर मागधी हो गयी | भौगोलिक सांस्कृतिक और स्थानीय प्रभावों के कारण और स्थानीय के कारण कोशल के आसपास की अवधि | काशी पश्चिम बिहार बलिया आरा छपरा की स्टाइल भोजपुरी और पटना और उसके अगल बगल की मागधी मैथली इत्यादि हो गयी | 997 ई में महमूद गजनवी के आक्रमण से लेकर 1024 ई में सोमनाथ मंदिर के आक्रमण तक इन बोलियों ने तुरकाना मेल मिलावट से बचने के लिए अपनी बोली को अपने में सिमटाकर स्वरूप को मजबूत कर लिया | ग्यारहवी शताब्दी में भोजपुरी इस क्षेत्र में बोली जाती थी | गुरु गोरखनाथ की रचनाओं में प्रबल भोजपुरी की झलक है | संत वाणी के कारण उसका रूप बदल गया है |
प्रस्तुती – सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक
सन्दर्भ — आजमगढ़ का इतिहास — रामप्रकाश शुक्ल निर्मोही